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OBC आरक्षण : केंद्र का MP मामले में पारित आदेश वापस लेने का SC से अनुरोध

केंद्र ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग (SEC) को निर्देश देने वाले अपने आदेश को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. शीर्ष अदालत से स्थानीय निकाय चुनावों को चार महीने के लिए टालने का निर्देश देने और राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट के साथ आने तथा राज्य निर्वाचन आयोग को तदनुसार चुनाव कराने का निर्देश देने का आदेश देने का भी आग्रह किया है.

OBC reservation Centre moves SC, seeks recall of Dec 17 order passed in MP matter
ओबीसी आरक्षण: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, मप्र मामले में पारित 17 दिसंबर के आदेश को वापस लेने की मांग की
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Published : Dec 27, 2021, 5:11 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को निर्देश देने वाले अपने 17 दिसंबर के आदेश को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख किया है. केंद्र ने स्थानीय निकाय में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर मतदान प्रक्रिया पर रोक लगाने और सामान्य वर्ग के लिए उन सीटों को फिर से अधिसूचित करने के निर्देश देने संबंधी आदेश वापस लेने के लिए उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर की है.

केंद्र ने अपनी अर्जी में कहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का उत्थान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है और स्थानीय स्वशासन में ओबीसी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व सत्ता के विकेंद्रीकरण और शासन को जमीनी स्तर तक ले जाने के 'उसके उद्देश्य, मंशा और प्रयोजन को हरा देता है.'

इसने शीर्ष अदालत से स्थानीय निकाय चुनावों को चार महीने के लिए टालने का निर्देश देने और राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट के साथ आने तथा राज्य निर्वाचन आयोग को तदनुसार चुनाव कराने का निर्देश देने का आदेश देने का भी आग्रह किया है.

आवेदन में केंद्र ने शीर्ष अदालत से अंतरिम उपाय के रूप में चुनाव प्रक्रिया को स्थगित करने का अनुरोध किया है. केंद्र ने उस मामले में भी पक्षकार बनाने का अनुरोध किया है जिसमें शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर को आदेश पारित किया था.

17 दिसंबर के आदेश में तीन शर्तों का जिक्र

शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर के आदेश में 2010 के संविधान पीठ के फैसले का उल्लेख किया था जिसमें तीन शर्तों का जिक्र किया गया था. इसमें राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की समकालीन सख्त प्रयोग आश्रित जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना शामिल थी. ओबीसी श्रेणी के लिए इस तरह के आरक्षण का प्रावधान करने से पहले इसका पालन किया जाना आवश्यक है. बाद में, न्यायालय ने कहा था कि तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भी इसे दोहराया था.

केंद्र ने मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध करते हुए अपने आवेदन में कहा, 'वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दे बहुत सार्वजनिक महत्व के हैं और पूरे देश में चुनावों में ओबीसी आरक्षण के कार्यान्वयन के मुद्दे का समूचे भारत पर असर होगा.'

सरकार ने 17 दिसंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध करते हुए अपने आवेदन में कहा है कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व या ओबीसी के गैर-प्रतिनिधित्व का दो गुना प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

उसने कहा, 'पहला, ओबीसी श्रेणी (obc reservation) से संबंधित व्यक्तियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्वाचित पदों पर चुने जाने के अवसर से वंचित किया जा रहा है और दूसरा, इस तरह का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व या गैर-प्रतिनिधित्व ओबीसी समुदाय के मतदाताओं को उनमें से किसी एक को निर्वाचित कार्यालयों के लिए चुनने से वंचित करता है.'

अर्जी में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने यह आदेश ऐसे समय में दिया है जब ओबीसी समुदाय के लोगों के प्रतिनिधित्व के साथ चुनाव प्रक्रिया चल रही थी.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में OBC आरक्षण नहीं मिलेगा

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : केंद्र ने मध्य प्रदेश राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) को निर्देश देने वाले अपने 17 दिसंबर के आदेश को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का रुख किया है. केंद्र ने स्थानीय निकाय में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर मतदान प्रक्रिया पर रोक लगाने और सामान्य वर्ग के लिए उन सीटों को फिर से अधिसूचित करने के निर्देश देने संबंधी आदेश वापस लेने के लिए उच्चतम न्यायालय में अर्जी दायर की है.

केंद्र ने अपनी अर्जी में कहा है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग का उत्थान सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रही है और स्थानीय स्वशासन में ओबीसी का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व सत्ता के विकेंद्रीकरण और शासन को जमीनी स्तर तक ले जाने के 'उसके उद्देश्य, मंशा और प्रयोजन को हरा देता है.'

इसने शीर्ष अदालत से स्थानीय निकाय चुनावों को चार महीने के लिए टालने का निर्देश देने और राज्य सरकार को आयोग की रिपोर्ट के साथ आने तथा राज्य निर्वाचन आयोग को तदनुसार चुनाव कराने का निर्देश देने का आदेश देने का भी आग्रह किया है.

आवेदन में केंद्र ने शीर्ष अदालत से अंतरिम उपाय के रूप में चुनाव प्रक्रिया को स्थगित करने का अनुरोध किया है. केंद्र ने उस मामले में भी पक्षकार बनाने का अनुरोध किया है जिसमें शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर को आदेश पारित किया था.

17 दिसंबर के आदेश में तीन शर्तों का जिक्र

शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर के आदेश में 2010 के संविधान पीठ के फैसले का उल्लेख किया था जिसमें तीन शर्तों का जिक्र किया गया था. इसमें राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की समकालीन सख्त प्रयोग आश्रित जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना शामिल थी. ओबीसी श्रेणी के लिए इस तरह के आरक्षण का प्रावधान करने से पहले इसका पालन किया जाना आवश्यक है. बाद में, न्यायालय ने कहा था कि तीन न्यायाधीशों की पीठ ने भी इसे दोहराया था.

केंद्र ने मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध करते हुए अपने आवेदन में कहा, 'वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दे बहुत सार्वजनिक महत्व के हैं और पूरे देश में चुनावों में ओबीसी आरक्षण के कार्यान्वयन के मुद्दे का समूचे भारत पर असर होगा.'

सरकार ने 17 दिसंबर के आदेश को वापस लेने का अनुरोध करते हुए अपने आवेदन में कहा है कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व या ओबीसी के गैर-प्रतिनिधित्व का दो गुना प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

उसने कहा, 'पहला, ओबीसी श्रेणी (obc reservation) से संबंधित व्यक्तियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के माध्यम से निर्वाचित पदों पर चुने जाने के अवसर से वंचित किया जा रहा है और दूसरा, इस तरह का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व या गैर-प्रतिनिधित्व ओबीसी समुदाय के मतदाताओं को उनमें से किसी एक को निर्वाचित कार्यालयों के लिए चुनने से वंचित करता है.'

अर्जी में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने यह आदेश ऐसे समय में दिया है जब ओबीसी समुदाय के लोगों के प्रतिनिधित्व के साथ चुनाव प्रक्रिया चल रही थी.

पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनाव में OBC आरक्षण नहीं मिलेगा

(पीटीआई-भाषा)

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