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तुर्की के 'कश्मीर राग' पर बोले पूर्व उच्चायुक्त, यह कोई नई बात नहीं, वे हमेशा मुद्दा उठाते हैं

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Published : Sep 22, 2021, 7:04 PM IST

Updated : Sep 22, 2021, 7:53 PM IST

पाकिस्तान में पूर्व उच्चायुक्त जी पार्थसारथी ने बुधवार को कहा कि तुर्की द्वारा कश्मीर मुद्दे को वैश्विक मंच पर उठाने में कोई नई बात नहीं है. तुर्की इसे हर साल करता है. इस मुद्दे पर वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट.

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नई दिल्ली : तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन द्वारा एक बार फिर उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में अपने संबोधन में कश्मीर के मुद्दे का उल्लेख करने के बाद पाकिस्तान में पूर्व उच्चायुक्त ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है.

मंगलवार को यूएनजीए की आम बहस में अपने संबोधन में एर्दोगन ने कहा कि हम 74 वर्षों से कश्मीर में चल रही समस्या को पार्टियों के बीच बातचीत के माध्यम से और प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के ढांचे के भीतर हल करने के पक्ष में अपना रुख बनाए हुए हैं.

इस मसले पर पार्थसारथी ने कहा कि भारत को बदले में उत्तरी साइप्रस में तुर्की के कब्जे पर टिप्पणी करनी चाहिए. पार्थसारथी ने कहा कि भारत ने बार-बार उत्तरी साइप्रस में तुर्की के कब्जे का विरोध किया है.

पिछले साल भी एर्दोगन ने जनरल डिबेट में अपने पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो बयान में जम्मू-कश्मीर का जिक्र किया था. पाकिस्तान के करीबी सहयोगी तुर्की ने कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है. भारत ने इसे पूरी तरह से अस्वीकार्य करार दिया, जिसमें तुर्की को अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान करने के लिए सीखने के लिए कहा था.

विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान द्वारा इतने खुले तौर पर किए जा रहे सीमा पार आतंकवाद को सही ठहराने के लिए तुर्की द्वारा बार-बार किए गए प्रयासों को खारिज कर दिया था. उन्होंने दोहराया कि भारत की आंतरिक सुरक्षा आज का मुद्दा है और मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसका जिक्र करेंगे.

1974 में तुर्की के आक्रमण के बाद पूर्वी भूमध्यसागरीय द्वीप साइप्रस को विभाजित कर दिया गया था जिसके उत्तरी भाग पर तुर्की का कब्जा है. तुर्की ने तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस (TRNC) की स्थापना की, जिसने दोनों पक्षों के बीच एक लंबे सैन्य गतिरोध की शुरुआत को चिह्नित किया. TRNC को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए ओआरएफ में अनुसंधान निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के एजेंडे को देखते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाना कोई बहुत बड़ा आश्चर्य नहीं है. उनके लिए इन मुद्दों को उठाना अनिवार्य है और वह करेंगे ऐसा करना जारी रखेंगे.

निश्चित रूप से कश्मीर के मुद्दे को उठाने वाला तुर्की वास्तव में भारत के लिए मायने नहीं रखता है लेकिन अब जब हम भारत के पड़ोस में तालिबान के उदय को देख रहे हैं, तो भारत के खिलाफ कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों के गिरोह बनने का खतरा है.

पंत ने कहा कि पाकिस्तान का तालिबान और चीन का तालिबान-पाक गठजोड़ का समर्थन करना भारत के लिए तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे को उठाने से कहीं बड़ा मुद्दा है.

यह भी पढ़ें-कश्मीर मामले पर तुर्की की टिप्पणी पर भारत ने दिया करारा जवाब

भारत साइप्रस गणराज्य की स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और एकता का लगातार समर्थन करता रहा है. इससे पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने न्यूयॉर्क में साइप्रस के इस समकक्ष निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स के साथ एक द्विपक्षीय बैठक की, जिसके दौरान उन्होंने इसका पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

नई दिल्ली : तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन द्वारा एक बार फिर उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में अपने संबोधन में कश्मीर के मुद्दे का उल्लेख करने के बाद पाकिस्तान में पूर्व उच्चायुक्त ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है.

मंगलवार को यूएनजीए की आम बहस में अपने संबोधन में एर्दोगन ने कहा कि हम 74 वर्षों से कश्मीर में चल रही समस्या को पार्टियों के बीच बातचीत के माध्यम से और प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के ढांचे के भीतर हल करने के पक्ष में अपना रुख बनाए हुए हैं.

इस मसले पर पार्थसारथी ने कहा कि भारत को बदले में उत्तरी साइप्रस में तुर्की के कब्जे पर टिप्पणी करनी चाहिए. पार्थसारथी ने कहा कि भारत ने बार-बार उत्तरी साइप्रस में तुर्की के कब्जे का विरोध किया है.

पिछले साल भी एर्दोगन ने जनरल डिबेट में अपने पहले से रिकॉर्ड किए गए वीडियो बयान में जम्मू-कश्मीर का जिक्र किया था. पाकिस्तान के करीबी सहयोगी तुर्की ने कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है. भारत ने इसे पूरी तरह से अस्वीकार्य करार दिया, जिसमें तुर्की को अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान करने के लिए सीखने के लिए कहा था.

विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान द्वारा इतने खुले तौर पर किए जा रहे सीमा पार आतंकवाद को सही ठहराने के लिए तुर्की द्वारा बार-बार किए गए प्रयासों को खारिज कर दिया था. उन्होंने दोहराया कि भारत की आंतरिक सुरक्षा आज का मुद्दा है और मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसका जिक्र करेंगे.

1974 में तुर्की के आक्रमण के बाद पूर्वी भूमध्यसागरीय द्वीप साइप्रस को विभाजित कर दिया गया था जिसके उत्तरी भाग पर तुर्की का कब्जा है. तुर्की ने तुर्की गणराज्य उत्तरी साइप्रस (TRNC) की स्थापना की, जिसने दोनों पक्षों के बीच एक लंबे सैन्य गतिरोध की शुरुआत को चिह्नित किया. TRNC को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए ओआरएफ में अनुसंधान निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के एजेंडे को देखते हुए कश्मीर का मुद्दा उठाना कोई बहुत बड़ा आश्चर्य नहीं है. उनके लिए इन मुद्दों को उठाना अनिवार्य है और वह करेंगे ऐसा करना जारी रखेंगे.

निश्चित रूप से कश्मीर के मुद्दे को उठाने वाला तुर्की वास्तव में भारत के लिए मायने नहीं रखता है लेकिन अब जब हम भारत के पड़ोस में तालिबान के उदय को देख रहे हैं, तो भारत के खिलाफ कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों के गिरोह बनने का खतरा है.

पंत ने कहा कि पाकिस्तान का तालिबान और चीन का तालिबान-पाक गठजोड़ का समर्थन करना भारत के लिए तुर्की के राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर के मुद्दे को उठाने से कहीं बड़ा मुद्दा है.

यह भी पढ़ें-कश्मीर मामले पर तुर्की की टिप्पणी पर भारत ने दिया करारा जवाब

भारत साइप्रस गणराज्य की स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और एकता का लगातार समर्थन करता रहा है. इससे पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने न्यूयॉर्क में साइप्रस के इस समकक्ष निकोस क्रिस्टोडौलाइड्स के साथ एक द्विपक्षीय बैठक की, जिसके दौरान उन्होंने इसका पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

Last Updated : Sep 22, 2021, 7:53 PM IST
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