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बंगाल चुनाव-2021 में नैतिक मूल्यों में बड़ी गिरावट देख रहे हैं अनिवासी बंगाली

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Published : Mar 23, 2021, 10:24 PM IST

हां वे गैर-निवासी बंगाली हैं. पेशेवर मांगों के लिए उन्हें मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में बसने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर भी वे अपने गृह राज्य के प्रति भावुक हैं. 'ईटीवी भारत' ने आगामी पश्चिम बंगाल चुनावों के बारे में ऐसे गैर-निवासी बंगालियों के एक वर्ग से बात की. सभी ने चुनावों के दौरान हो रहे घटनाक्रम पर भारी नाराजगी जताई.

Bengal elections
Bengal elections

कोलकाता : उनका पश्चिम बंगाल से गहरा नाता है. कोलकाता अब भी उनके प्रेम का शहर बना हुआ है. वे कोलकाता से हजारों किलोमीटर दूर हो सकते हैं लेकिन उनका जज्बा पश्चिम बंगाल के विकास पर अपडेट रहने के लिए खुद को प्रेरित करता है.

उनके अनुसार पश्चिम बंगाल में राजनीति का मौजूदा चलन न केवल राजनीतिक नैतिकता का पतन प्रदर्शित करता है बल्कि समग्र नैतिक मूल्यों में भी भारी गिरावट दर्शाता है. गैर-निवासी बंगालियों ने भी सभी राजनीतिक दलों के बीच फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्तियों को उम्मीदवार के रूप में पेश करने की प्रवृत्ति पर काफी निराशा जताई.

उन्होंने सवाल किया कि इनमें से कितने लोग हैं जो एक और सुनील दत्त बन सकते हैं. जिन्होंने अपने अभिनय करियर के साथ राजनीतिक गतिविधियों को मिक्स नहीं किया.

शिक्षा का राजनीतिकरण

नई दिल्ली के शिक्षाविद् चिराश्री दास गुप्ता, जिन्होंने अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की है, उन्हें लगता है कि शिक्षा पाठ्यक्रम का राजनीतिकरण बंगाल के लिए सदियों से अभिशाप रहा है. यह अभिशाप अभी भी जारी है. वाम मोर्चे के शासन के दौरान शिक्षा का विमुद्रीकरण हुआ.

2011 के बाद सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि आंदोलन पर एक अलग अध्याय स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि अगर शासन में बदलाव हुआ तो पाठ्यक्रम का भगवाकरण हो सकता है.

निवेशकों के लिए खराब माहौल

दासगुप्ता की तरह सम्राट सान्याल ने भी अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की है. लेकिन अब वे मुंबई में अग्रणी बहुराष्ट्रीय बैंक में उपाध्यक्ष हैं.

उनके अनुसार जीवन के हर क्षेत्र का अत्यधिक राजनीतिकरण अंततः राज्य के भविष्य को प्रभावित कर रहा है.

उन्होंने कहा कि सिंगूर से टाटा मोटर्स के निकलने या इंफोसिस और विप्रो के पीछे हटने के बाद सेज की स्थिति ने पश्चिम बंगाल को निवेशक समुदाय के लिए खराब स्थिति पैदा कर दी. लेकिन जिस बात से मैं हैरान हूं वह यह है कि पश्चिम बंगाल में कोई भी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंभीरता से नहीं बोल रहा है.

कीचड़ उछालने की राजनीति

कल्लोल नंदी जो मुंबई से बाहर रहते हैं और वर्तमान में अग्रणी भारतीय विनिर्माण समूह के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंडल का नेतृत्व कर रहे हैं ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पश्चिम बंगाल के लोगों को बुरा और बदतर के बीच विकल्प के साथ छोड़ दिया गया है. उन्होंने कहा कि चूंकि उन्हें अच्छा नहीं मिल रहा है, इसलिए वे बुरे का विरोध कर रहे हैं. बंगाल में इस बार का चुनावी अभियान कीचड़ उछालने वाला और क्षुद्र राजनीति का प्रदर्शन है.

यह भी पढ़ें-छत्तीसगढ़ : नक्सलियों ने बस को उड़ाया, पांच जवान शहीद, कई घायल

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद पश्चिम बंगाल अभी भी पीछे है. और राजनीति सस्ते हथकंडे अपना रही है.

कोलकाता : उनका पश्चिम बंगाल से गहरा नाता है. कोलकाता अब भी उनके प्रेम का शहर बना हुआ है. वे कोलकाता से हजारों किलोमीटर दूर हो सकते हैं लेकिन उनका जज्बा पश्चिम बंगाल के विकास पर अपडेट रहने के लिए खुद को प्रेरित करता है.

उनके अनुसार पश्चिम बंगाल में राजनीति का मौजूदा चलन न केवल राजनीतिक नैतिकता का पतन प्रदर्शित करता है बल्कि समग्र नैतिक मूल्यों में भी भारी गिरावट दर्शाता है. गैर-निवासी बंगालियों ने भी सभी राजनीतिक दलों के बीच फिल्मी दुनिया की मशहूर हस्तियों को उम्मीदवार के रूप में पेश करने की प्रवृत्ति पर काफी निराशा जताई.

उन्होंने सवाल किया कि इनमें से कितने लोग हैं जो एक और सुनील दत्त बन सकते हैं. जिन्होंने अपने अभिनय करियर के साथ राजनीतिक गतिविधियों को मिक्स नहीं किया.

शिक्षा का राजनीतिकरण

नई दिल्ली के शिक्षाविद् चिराश्री दास गुप्ता, जिन्होंने अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की है, उन्हें लगता है कि शिक्षा पाठ्यक्रम का राजनीतिकरण बंगाल के लिए सदियों से अभिशाप रहा है. यह अभिशाप अभी भी जारी है. वाम मोर्चे के शासन के दौरान शिक्षा का विमुद्रीकरण हुआ.

2011 के बाद सिंगूर और नंदीग्राम में भूमि आंदोलन पर एक अलग अध्याय स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि अगर शासन में बदलाव हुआ तो पाठ्यक्रम का भगवाकरण हो सकता है.

निवेशकों के लिए खराब माहौल

दासगुप्ता की तरह सम्राट सान्याल ने भी अपनी स्कूली और उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की है. लेकिन अब वे मुंबई में अग्रणी बहुराष्ट्रीय बैंक में उपाध्यक्ष हैं.

उनके अनुसार जीवन के हर क्षेत्र का अत्यधिक राजनीतिकरण अंततः राज्य के भविष्य को प्रभावित कर रहा है.

उन्होंने कहा कि सिंगूर से टाटा मोटर्स के निकलने या इंफोसिस और विप्रो के पीछे हटने के बाद सेज की स्थिति ने पश्चिम बंगाल को निवेशक समुदाय के लिए खराब स्थिति पैदा कर दी. लेकिन जिस बात से मैं हैरान हूं वह यह है कि पश्चिम बंगाल में कोई भी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर गंभीरता से नहीं बोल रहा है.

कीचड़ उछालने की राजनीति

कल्लोल नंदी जो मुंबई से बाहर रहते हैं और वर्तमान में अग्रणी भारतीय विनिर्माण समूह के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंडल का नेतृत्व कर रहे हैं ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि पश्चिम बंगाल के लोगों को बुरा और बदतर के बीच विकल्प के साथ छोड़ दिया गया है. उन्होंने कहा कि चूंकि उन्हें अच्छा नहीं मिल रहा है, इसलिए वे बुरे का विरोध कर रहे हैं. बंगाल में इस बार का चुनावी अभियान कीचड़ उछालने वाला और क्षुद्र राजनीति का प्रदर्शन है.

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उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद पश्चिम बंगाल अभी भी पीछे है. और राजनीति सस्ते हथकंडे अपना रही है.

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