नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संजय किशन कौल ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को कभी काम करने का मौका नहीं दिया गया, जिससे राजनीतिक हलकों में नाराजगी पैदा हुई और उच्च न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज में बाधा उत्पन्न हुई. वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम बनाया था. एनजेएसी को न्यायिक नियुक्तियां करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इसमें प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और प्रधान न्यायाधीश द्वारा नामित दो अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति, प्रधानमंत्री तथा लोकसभा में नेता विपक्ष शामिल थे.
हालांकि, अक्टूबर 2015 में उच्चतम न्यायालय ने एनजेएसी अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था. पच्चीस दिसंबर को सेवानिवृत्त होने वाले न्यायमूर्ति कौल ने एक साक्षात्कार में कहा कि यह स्वीकार करना होगा कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ समस्या है और यह कहना वास्तविक नहीं होगा कि यह सुचारू रूप से काम कर रही है. न्यायमूर्ति कौल शीर्ष अदालत की उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने मौजूदा कानूनों के तहत समलैंगिक जोड़ों को विवाह का अधिकार देने से इनकार कर दिया था.
उन्होंने कहा कि संबंधित मामला पूरी तरह से कानूनी नहीं है, लेकिन इसमें सामाजिक मुद्दे शामिल हैं, और सरकार समलैंगिकों को भविष्य में ऐसा अधिकार देने के मामले में कानून ला सकती है. न्यायमूर्ति कौल ने कहा, 'इसे (एनजेएसी) प्रयोग के लिए लंबित रखा जा सकता था. इसे कभी भी काम करने का मौका नहीं दिया गया. जब इसे रद्द किया गया तो राजनीतिक हलकों में गुस्सा था कि संसद के एक सर्वसम्मत निर्णय को इस तरह से खारिज कर दिया गया और न्यायाधीश व्यवस्था को बदलने नहीं दे रहे हैं. इससे एनजेएसी के बाद (कॉलेजियम) प्रणाली के कामकाज में कुछ बाधा आई.'
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ने कहा, 'अगर लोग कहते हैं कि यह (कॉलेजियम) सुचारू रूप से काम करती है, तो यह एक तरह से अवास्तविक होगा क्योंकि यह कोई तथ्य नहीं है. यह उन नियुक्तियों की संख्या से परिलक्षित होता है, जो लंबित हैं. आज तक भी कुछ नाम जिनकी अनुशंसा की गई थी, वे लंबित हैं. हमें यह स्वीकार करना होगा कि प्रणाली में दिक्कत है. यदि हम समस्या के प्रति अपनी आंखें बंद कर लेंगे, तो हम समाधान तक नहीं पहुंच पाएंगे. आपको पहले समस्या को स्वीकार करना होगा और उसके बाद ही आप समाधान निकाल सकते हैं.'
न्यायमूर्ति कौल एक साल से अधिक समय तक उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम के सदस्य रहे. उन्होंने कहा कि वर्तमान में कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है और इसे उसी रूप में लागू किया जाना चाहिए, जैसा यह है. उन्होंने कहा, 'आगे का रास्ता क्या होना चाहिए, यह कहना बहुत मुश्किल है. क्योंकि कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है, इसलिए कॉलेजियम प्रणाली, जैसी कि यह है, लागू की जानी चाहिए. अगर संसद त्रुटि पाए जाने का संज्ञान लेते हुए कल अपने विवेक से कहती है कि कोई अन्य प्रणाली होनी चाहिए, तो ऐसा करना उसका काम है, हम ऐसा नहीं कर सकते. इसलिए, हमारी जिम्मेदारी है कि मौजूदा कानून का पालन किया जाए.'
सरकार के पास कॉलेजियम की लंबित सिफारिशों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लंबित नियुक्तियों की संख्या से मतभिन्नता प्रतिबिंबित होती है. वर्ष 2014 में पारित एनजेएसी अधिनियम प्रधान न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी सिफारिश करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का प्रावधान करता था.
क्या मामलों के निपटारे में देरी का मतलब आम वादकारियों को न्याय से वंचित करना है, उन्होंने कहा, 'ऐसा ही है. लेकिन क्या किया जा सकता है? क्या कोई न्यायाधीश एक दिन में सौ मुकदमे निपटा सकता है? नहीं...' सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों के जिम्मेदारी ग्रहण करने के मुद्दे पर, न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि उन्हें यह प्राप्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस मुद्दे को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए.
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में छह साल और 10 महीने से अधिक के अपने कार्यकाल में न्यायमूर्ति कौल कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे, जिनमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने और पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखने का निर्णय शामिल है.
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