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राज्यसभा में न्यायिक नियुक्ति विधेयक पेश, जानिए सबकुछ इसके बारे में - कार्यपालिका की भागीदारी

न्यायिक नियुक्ति विधेयक (एनजेएसी) राज्यसभा में पेश किया गया. उच्च सदन में राज्यसभा सांसद विकास रंजन भट्टाचार्य ने विधेयक पेश किया. इस विधेयक का उद्देश्य उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को नियंत्रित करना था.

NJAC
राज्यसभा में न्यायिक नियुक्ति विधेयक पेश
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Published : Dec 10, 2022, 10:05 PM IST

नई दिल्ली : राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति को विनियमित करने के लिए एक बार फिर राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया गया. सीपीआई (एम) के बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने इसे प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में पेश किया.

11 अगस्त 2014 को तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा बिल पेश किया गया था और 13 अगस्त को लोकसभा में और 14 अगस्त को राज्यसभा में एक अधिनियम के रूप में पारित किया गया था. लेकिन इस अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. 16 अक्टूबर, 2015 को 5 जजों की संविधान पीठ ने इसे रद्द कर दिया था.

जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस चमलेश्वर की 5 जजों की बेंच ने इसे 4:1 के बहुमत से खारिज कर दिया था.

अदालत ने कहा था कि न्यायपालिका सरकार के प्रति ऋणी होने का जोखिम नहीं उठा सकती है और यह माना था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भागीदारी कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करेगी जो संविधान की मूल संरचना बनाती है. हालांकि अदालत ने यह भी स्वीकार किया था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के भीतर मुद्दे हैं.

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग : यह एक निकाय होगा जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (पदेन अध्यक्ष), दो अन्य वरिष्ठतम SC न्यायाधीश (पदेन), कानून मंत्री (पदेन) और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे, जिन्हें सीजेआई, पीएम और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली समिति द्वारा नामित किया जाएगा. नामांकन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक समुदाय/महिलाओं से होगा और उनका कार्यकाल तीन वर्ष का होगा. साथ ही कोई पुनर्नामांकन नहीं होगा.

निकाय न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार होगा और मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेगा जिसका नेतृत्व CJI करते हैं और इसमें SC के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं. ये सरकार को पदोन्नति और स्थानांतरण के लिए नामों की सिफारिश करते हैं.

एनजेएसी में रिक्ति उत्पन्न होने की स्थिति में केंद्र इसका संदर्भ देगा. कार्यकाल पूरा होने के कारण होने वाली रिक्ति के मामले में NJAC को 6 महीने पहले संदर्भ दिया जाएगा और मृत्यु या इस्तीफे के कारण रिक्तियों के मामले में 30 दिनों के भीतर. NJAC सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को CJI, SC के न्यायाधीशों, HC के मुख्य न्यायाधीश और HC के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करेगा. यह न्यायाधीशों के स्थानांतरण के लिए भी सिफारिशें करेगा.

यदि NJAC के दो सदस्य किसी सिफारिश पर सहमत नहीं होते हैं, तो उस व्यक्ति की नियुक्ति नहीं की जाएगी. अध्यक्ष NJAC को सिफारिश पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकते हैं.

न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में विवाद : हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने NJAC को रद्द करने के फैसले के लिए SC के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की थी. उन्होंने इसे संसदीय संप्रभुता के साथ 'गंभीर समझौता' और लोगों के जनादेश की अवहेलना करार दिया था. बाद में जब शीर्ष अदालत में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों पर सरकार के बैठने के मामले की सुनवाई हुई, तो अदालत ने बयानों की निंदा की थी और कहा था कि इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए. इसने एजी से ऐसे बयानों के बारे में सरकार को निराशा व्यक्त करने के लिए कहा था.

नियुक्तियों को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में ठन गई है. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भी अपने एक भाषण में कहा था कि 'लोग कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं और संविधान के मुताबिक सरकार को नियुक्तियां करनी चाहिए.' कोर्ट ने रिजिजू के बयानों पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए और जब तक नियुक्तियों को लेकर कानून है, तब तक उसका पालन किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह जब सरकार कानून बनाती है और उसके पालन की उम्मीद करती है, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट भी अपने कानून से यही उम्मीद करता है और अगर कोई समस्या आती है तो वह इसकी जांच पास कर सकता है.

पढ़ें- केंद्र सरकार को किसी भी तरह से न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करने नहीं देना चाहिएः राघव चड्ढा

नई दिल्ली : राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति को विनियमित करने के लिए एक बार फिर राज्यसभा में एक विधेयक पेश किया गया. सीपीआई (एम) के बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने इसे प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में पेश किया.

11 अगस्त 2014 को तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा बिल पेश किया गया था और 13 अगस्त को लोकसभा में और 14 अगस्त को राज्यसभा में एक अधिनियम के रूप में पारित किया गया था. लेकिन इस अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी. 16 अक्टूबर, 2015 को 5 जजों की संविधान पीठ ने इसे रद्द कर दिया था.

जस्टिस मदन लोकुर, जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस चमलेश्वर की 5 जजों की बेंच ने इसे 4:1 के बहुमत से खारिज कर दिया था.

अदालत ने कहा था कि न्यायपालिका सरकार के प्रति ऋणी होने का जोखिम नहीं उठा सकती है और यह माना था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भागीदारी कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करेगी जो संविधान की मूल संरचना बनाती है. हालांकि अदालत ने यह भी स्वीकार किया था कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली के भीतर मुद्दे हैं.

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग : यह एक निकाय होगा जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (पदेन अध्यक्ष), दो अन्य वरिष्ठतम SC न्यायाधीश (पदेन), कानून मंत्री (पदेन) और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे, जिन्हें सीजेआई, पीएम और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली समिति द्वारा नामित किया जाएगा. नामांकन अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक समुदाय/महिलाओं से होगा और उनका कार्यकाल तीन वर्ष का होगा. साथ ही कोई पुनर्नामांकन नहीं होगा.

निकाय न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए जिम्मेदार होगा और मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेगा जिसका नेतृत्व CJI करते हैं और इसमें SC के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं. ये सरकार को पदोन्नति और स्थानांतरण के लिए नामों की सिफारिश करते हैं.

एनजेएसी में रिक्ति उत्पन्न होने की स्थिति में केंद्र इसका संदर्भ देगा. कार्यकाल पूरा होने के कारण होने वाली रिक्ति के मामले में NJAC को 6 महीने पहले संदर्भ दिया जाएगा और मृत्यु या इस्तीफे के कारण रिक्तियों के मामले में 30 दिनों के भीतर. NJAC सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश को CJI, SC के न्यायाधीशों, HC के मुख्य न्यायाधीश और HC के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करेगा. यह न्यायाधीशों के स्थानांतरण के लिए भी सिफारिशें करेगा.

यदि NJAC के दो सदस्य किसी सिफारिश पर सहमत नहीं होते हैं, तो उस व्यक्ति की नियुक्ति नहीं की जाएगी. अध्यक्ष NJAC को सिफारिश पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकते हैं.

न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में विवाद : हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने NJAC को रद्द करने के फैसले के लिए SC के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की थी. उन्होंने इसे संसदीय संप्रभुता के साथ 'गंभीर समझौता' और लोगों के जनादेश की अवहेलना करार दिया था. बाद में जब शीर्ष अदालत में नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों पर सरकार के बैठने के मामले की सुनवाई हुई, तो अदालत ने बयानों की निंदा की थी और कहा था कि इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए. इसने एजी से ऐसे बयानों के बारे में सरकार को निराशा व्यक्त करने के लिए कहा था.

नियुक्तियों को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में ठन गई है. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने भी अपने एक भाषण में कहा था कि 'लोग कॉलेजियम सिस्टम से खुश नहीं हैं और संविधान के मुताबिक सरकार को नियुक्तियां करनी चाहिए.' कोर्ट ने रिजिजू के बयानों पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए और जब तक नियुक्तियों को लेकर कानून है, तब तक उसका पालन किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह जब सरकार कानून बनाती है और उसके पालन की उम्मीद करती है, उसी तरह सुप्रीम कोर्ट भी अपने कानून से यही उम्मीद करता है और अगर कोई समस्या आती है तो वह इसकी जांच पास कर सकता है.

पढ़ें- केंद्र सरकार को किसी भी तरह से न्यायाधीशों की नियुक्ति को नियंत्रित करने नहीं देना चाहिएः राघव चड्ढा

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