बालुरघाट: दक्षिण दिनाजपुर के बालुरघाट का नौ महीने का बच्चा राजर्षि मंडल (बदला हुआ नाम) स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है. इस दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार का इलाज काफी महंगा है. इलाज के लिए एक इंजेक्शन की आवश्यकता होती है जिसकी कीमत 17.5 करोड़ रुपये है. हां, आपने सही सुना. ऐसे में नन्हें राजर्षि के परिवार की नींद उड़ गई है क्योंकि अगर बच्चे का 2 साल का होने तक इलाज नहीं कराया गया तो उसकी मौत हो सकती है. पिता ध्रुबा मंडल और मां संगीता पहले ही सोशल मीडिया पर एक संदेश पोस्ट कर अपने इकलौते बेटे की जान बचाने के लिए आर्थिक मदद मांग चुके हैं. मां ने कहा कि उनके इकलौते बच्चे को सिर्फ प्रधानमंत्री ही बचा सकते हैं.
बालुरघाट शहर के मंगलपुर इलाके के निवासी ध्रुबा मंडल भारतीय सेना में हैं. पत्नी संगीता मंडल गृहिणी हैं. राजर्षि के जन्म के बाद से परिवार को बच्चे में असामान्यताएं नजर आईं. बच्चे का परिवार पिछले अप्रैल में बालुरघाट में एक बाल रोग विशेषज्ञ के पास गया. वहां डॉक्टर की सलाह से बच्चे का जेनेटिक अध्ययन किया गया. उसके बाद बच्चे को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक न्यूरोलॉजिकल बीमारी का पता चला.
दुर्लभ बीमारी के बारे में सुनकर परिवार हैरान रह गया. बच्चे को उचित इलाज के लिए पहले कोलकाता और फिर नई दिल्ली के एम्स ले जाया गया. लेकिन जांच के बाद डॉक्टरों ने वही बीमारी बताई- स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1. स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-1 एक खतरनाक बीमारी है. उपचार के बिना कई प्रभावित बच्चे 2 वर्ष की आयु से पहले ही मर जाते हैं. इस बीमारी से पीड़ित बच्चे बैठ तो सकते हैं, लेकिन बिना सहायता के उनके लिए खड़ा होना या चलना मुश्किल हो जाता है.
डॉक्टरों का कहना है कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) एक आनुवंशिक बीमारी है, जो विशेष रूप से मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में मोटर न्यूरॉन तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाती है. मोटर न्यूरॉन्स हाथ, पैर, छाती, गले, मुंह और जीभ की गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं. इसके साथ ही मोटर न्यूरॉन्स चलने, बात करने, निगलने और सांस लेने जैसी मांसपेशियों की गतिविधियों को भी नियंत्रित करते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक, यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि अगर समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो पीड़ित की जान पर बन आती है. यह बीमारी गायब जीन के कारण होता है. इसे सर्वाइवल मोटर न्यूरॉन जीन वन (एसएमएन-1) के नाम से जाना जाता है. यह आम तौर पर मोटर न्यूरॉन्स के लिए आवश्यक प्रोटीन का उत्पादन करने का काम करता है.
डॉक्टरों ने यह भी कहा कि अगर दो साल की उम्र के भीतर ठीक से इलाज नहीं किया गया तो नौ महीने के बच्चे को बचाना संभव नहीं है. लेकिन स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक इस बीमारी का इलाज बहुत महंगा है. डॉक्टरों ने बताया, इस बीमारी के लिए एक ही इंजेक्शन इस्तेमाल होता है, जिसे ज़ोल्गेन्स्मा कहते हैं. कीमत करीब 17.5 करोड़ रुपये है और यह इंजेक्शन भारत में उपलब्ध नहीं है और इसे विदेश से आयात करना पड़ता है.
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एक सैनिक के लिए इतना खर्च उठाना नामुमकिन है. जिससे बच्चे का परिवार असहाय है. लेकिन बच्चे के पिता आर्मीमैन ध्रुबा मंडल किसी भी तरह से हार मानने से इनकार करते हैं. उन्होंने अपने बेटे की दुर्लभ बीमारी के इलाज के लिए सोशल मीडिया पर सभी से अपील की. मेरे बेटे में बीमारी के सभी लक्षण मौजूद हैं. उसने कहा कि मुझे समझ नहीं आ रहा कि हम इतनी बड़ी रकम कैसे जुटाएं. बच्चे की मां संगीता मंडल ने दावा किया कि केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही मेरे बेटे की जान बचाने में मदद कर सकते हैं.