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पश्चिम बंगाल : NHRC टीम के सदस्य ने बताया चुनाव बाद हिंसा का सच

पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के बाद हिंसा (Bengal post poll violence) के मामले सामने आए थे. कोलकाता हाई कोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक टीम इसकी जांच के लिए तीन दिनों तक पश्चिम बंगाल में थी. इस दौरान मंगलवार को एनएचआरसी की टीम के सदस्य और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ रशीद पर हमला हुआ. आतिफ रशीद ने 'ईटीवी भारत' के संवाददाता मोहम्मद तौसीफ को बताया बंगाल हिंसा का सच.

आतिफ रशीद
आतिफ रशीद
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Published : Jul 1, 2021, 5:29 PM IST

नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजे आने के बाद कई जगहों पर हिंसा के मामले सामने आए थे. कोलकाता हाई कोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की एक टीम इन मामलों की जांच करने तीन दिन के लिए पश्चिम बंगाल गई थी.

इस दौरान मंगलवार को एनएचआरसी की टीम के सदस्य और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ रशीद पर हमला हुआ. आतिफ रशीद ने 'ईटीवी भारत' से कहा कि मंगलवार को वह कोलकाता से सटे जादवपुर पहुंचे और लगभग 40 परिवारों से मिले, उनके बयान रिकॉर्ड किए. हकीकत ये है कि पीड़ितों के मुकदमें तक दर्ज नहीं किए गए हैं.

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत

उन्होंने बताया कि वह लोग लगभग 2 महीनों से अपने घरों से दूर हैं और उनके घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है. आतिफ रशीद ने बताया कि हमलावर यह नहीं चाहते थे कि किसी भी तरह से उस जगह के को मोबाइल में रिकॉर्ड किया जा सके.

'पुलिस ने साथ नहीं दिया तो जान बचाकर भागे'

जब उन्होंने पड़ोसियों से खाली टूटे-फूटे घरों के रहने वालों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह कई महीनों से लापता हैं. आतिफ रशीद ने बताया कि जब उन्होंने देखा कि स्थानीय पुलिस भी उनका साथ नहीं दे रही है तब उन्होंने अपनी जान बचाकर भागने का फैसला किया.

आतिफ रशीद ने कहा कि वहां पर पीड़ितों को स्थानीय पुलिस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. इस घटना के बाद उनका भी भरोसा वहां की स्थानीय पुलिस से उठ चुका है और यदि उन्हें दोबारा वहां जाने के लिए कहा जाएगा तो नहीं जाएंगे. उन्होंने कहा कि पुलिस के इस बर्ताव की जांच होनी चाहिए.

आतिफ रशीद के मुताबिक हिंसा का शिकार हुए यह सभी लोग दलित समाज के हैं और उन्होंने हाल ही में संपन्न हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया था. इसी कारण उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. उनके मुकदमे तक दर्ज नहीं किए गए हैं.

'पुलिस ने कहा, लोगों ने काल्पनिक बयान दिए'
बतौर एनएचआरसी सदस्य आतिफ रशीद ने जब स्थानीय पुलिस से जानकारी मांगी तो बताया गया कि उन लोगों द्वारा दिए गए बयान काल्पनिक हैं, इस प्रकार की कोई घटना नहीं घटी है.

आतिफ रशीद ने बताया कि जब वह शानू नामक पीड़ित के साथ घटनास्थल पर पहुंचे तो उसके बयान सही साबित हुए. उन्होंने पाया कि वहां पर कई मकान या तो जला दिए गए थे या तोड़ दिए गए थे.

'नहीं दी गई पर्याप्त सुरक्षा'
आतिफ रशीद के मुताबिक उन्होंने अपने दौरे की जानकारी ठीक 1 घंटे पहले लोकल पुलिस से साझा कर दी थी लेकिन सुरक्षा के लिए सिर्फ दो 2 सिपाही दिए गए. इस दौरान टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने कार्यालय से निकलकर हमला करने की कोशिश की. पीड़ित शानू और सीआरपीएफ के जवानों के साथ मारपीट की.

गौरतलब है कि उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 18 जून को एनएचआरसी के अध्यक्ष को निर्देश दिया था कि वह राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन करें. पीठ ने मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है.

पढ़ें- बंगाल चुनाव बाद हिंसा : एनएचआरसी की समिति रविवार से शिकायतकर्ताओं से अभिवेदन प्राप्त करेगी

उच्च न्यायालय ने 21 जून को राज्य सरकार के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया जिसमें उसने समिति गठित करने के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था.

नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजे आने के बाद कई जगहों पर हिंसा के मामले सामने आए थे. कोलकाता हाई कोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की एक टीम इन मामलों की जांच करने तीन दिन के लिए पश्चिम बंगाल गई थी.

इस दौरान मंगलवार को एनएचआरसी की टीम के सदस्य और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष आतिफ रशीद पर हमला हुआ. आतिफ रशीद ने 'ईटीवी भारत' से कहा कि मंगलवार को वह कोलकाता से सटे जादवपुर पहुंचे और लगभग 40 परिवारों से मिले, उनके बयान रिकॉर्ड किए. हकीकत ये है कि पीड़ितों के मुकदमें तक दर्ज नहीं किए गए हैं.

ईटीवी भारत से विशेष बातचीत

उन्होंने बताया कि वह लोग लगभग 2 महीनों से अपने घरों से दूर हैं और उनके घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया है. आतिफ रशीद ने बताया कि हमलावर यह नहीं चाहते थे कि किसी भी तरह से उस जगह के को मोबाइल में रिकॉर्ड किया जा सके.

'पुलिस ने साथ नहीं दिया तो जान बचाकर भागे'

जब उन्होंने पड़ोसियों से खाली टूटे-फूटे घरों के रहने वालों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वह कई महीनों से लापता हैं. आतिफ रशीद ने बताया कि जब उन्होंने देखा कि स्थानीय पुलिस भी उनका साथ नहीं दे रही है तब उन्होंने अपनी जान बचाकर भागने का फैसला किया.

आतिफ रशीद ने कहा कि वहां पर पीड़ितों को स्थानीय पुलिस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है. इस घटना के बाद उनका भी भरोसा वहां की स्थानीय पुलिस से उठ चुका है और यदि उन्हें दोबारा वहां जाने के लिए कहा जाएगा तो नहीं जाएंगे. उन्होंने कहा कि पुलिस के इस बर्ताव की जांच होनी चाहिए.

आतिफ रशीद के मुताबिक हिंसा का शिकार हुए यह सभी लोग दलित समाज के हैं और उन्होंने हाल ही में संपन्न हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार किया था. इसी कारण उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. उनके मुकदमे तक दर्ज नहीं किए गए हैं.

'पुलिस ने कहा, लोगों ने काल्पनिक बयान दिए'
बतौर एनएचआरसी सदस्य आतिफ रशीद ने जब स्थानीय पुलिस से जानकारी मांगी तो बताया गया कि उन लोगों द्वारा दिए गए बयान काल्पनिक हैं, इस प्रकार की कोई घटना नहीं घटी है.

आतिफ रशीद ने बताया कि जब वह शानू नामक पीड़ित के साथ घटनास्थल पर पहुंचे तो उसके बयान सही साबित हुए. उन्होंने पाया कि वहां पर कई मकान या तो जला दिए गए थे या तोड़ दिए गए थे.

'नहीं दी गई पर्याप्त सुरक्षा'
आतिफ रशीद के मुताबिक उन्होंने अपने दौरे की जानकारी ठीक 1 घंटे पहले लोकल पुलिस से साझा कर दी थी लेकिन सुरक्षा के लिए सिर्फ दो 2 सिपाही दिए गए. इस दौरान टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने कार्यालय से निकलकर हमला करने की कोशिश की. पीड़ित शानू और सीआरपीएफ के जवानों के साथ मारपीट की.

गौरतलब है कि उच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 18 जून को एनएचआरसी के अध्यक्ष को निर्देश दिया था कि वह राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों की जांच के लिए एक समिति का गठन करें. पीठ ने मामले पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है.

पढ़ें- बंगाल चुनाव बाद हिंसा : एनएचआरसी की समिति रविवार से शिकायतकर्ताओं से अभिवेदन प्राप्त करेगी

उच्च न्यायालय ने 21 जून को राज्य सरकार के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया जिसमें उसने समिति गठित करने के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था.

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