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नई फिल्म नीति : क्या संभव होगा कश्मीर घाटी में बंद पड़े सिनेमाघरों का कायाकल्प ?

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने नई फिल्म नीति के तहत पुराने सिनेमाघरों के पुनर्वास या कायाकल्प (rehabilitate) के लिए कुछ रियायतें दी हैं. पिछले तीन दशकों से प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण घाटी के सिनेमाघर बंद हैं. अब इनकी हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि यह किसी भूतिया घर जैसा एहसास दिलाते हैं. बदलते हालात में कश्मीर के युवा फिल्म निर्माताओं का कहना है कि सिनेमाघरों के पुनरुद्धार से कश्मीर की सभ्यता को बढ़ावा मिल सकता था और कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर फिल्में बनाई जा सकती थीं. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या नई फिल्म नीति कार्यान्वित होने के बाद जम्मू-कश्मीर में बंद पड़े सिनेमा घर दोबारा शुरू होंगे ?

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Published : Sep 14, 2021, 9:56 PM IST

नई फिल्म नीति
नई फिल्म नीति

श्रीनगर : 1990 के दशक में श्रीनगर में कई बड़े सिनेमाघर हुआ करते थे. इस प्रदेश में फिल्म के दीवाने अच्छी खासी संख्या में रहते थे. श्रीनगर शहर के खास इलाके में 'फिरदौस' नाम का सिनेमा हॉल हुआ करता था. लाल चौक क्षेत्र में रिगल, पैलेडियम और नीलम सिनेमा बहुत लोकप्रिय थे. इन सिनेमा घरों में हिंदी सिनेमा बड़े पर्दे पर दिखाए जाते थे. हालांकि, दुर्भाग्य से बदलते हालात में अब ये सिनेमाघर वीरान हो चुके हैं.

कश्मीर घाटी में बंद पड़े सिनेमाघरों का कायाकल्प ?

गौरतलब है कि 1990 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के बाद से, इन सिनेमाघरों को सेना ने अपने कब्जे में ले लिया है. इसके बाद घाटी में सिनेमा शिविर बन गए हैं. अब हालात बदल रहे हैं तो घाटी के फिल्म निर्माता और फिल्म प्रेमी चाहते हैं कि घाटी में सिनेमाघर बने. नए निर्माण न होने की सूरत में सिनेप्रेमियों की मांग है कि वही पुराने सिनेमाघर दोबारा शुरू किए जाएं.

लाल चौक में रीगल सिनेमा का नाम अब एक ब्लैक होल पर दिखाई देता है. इसे आज एक व्यावसायिक परिसर में बदला जा रहा है. फिरदौस सिनेमा की हालत खस्ता है जहां एक गार्ड इस जर्जर इमारत पर नजर रख रहा है. हालांकि, नई फिल्म नीति इन सिनेमाघरों को दोबारा शुरू करने की मांग करती है. हालांकि, इन सिनेमाघरों के मालिक नई फिल्म नीति के मुद्दे बात करने से इनकार करते दिखते हैं.

रीगल सिनेमा के एक कर्मचारी ने कहा कि अगर सिनेमाघरों को बहाल करना होता तो पुराने सिनेमाघरों को कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में क्यों तब्दील किया जाता ? इनका कहना है कि अन्य सिनेमाघरों के मालिक अब इन सिनेमाघरों के जीर्णोद्धार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.

यह भी पढ़ें- Covaxin WHO Nod : नीति आयोग सदस्य बोले, जल्द सकारात्मक फैसले की उम्मीद

बता दें कि कश्मीर घाटी की अपार सुंदरता के कारण फिल्म निर्माता इस लोकेशन के लिए अक्सर आकर्षित होते हैं. इस साल भी कई जाने-माने फिल्म अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं ने कश्मीर में कई फिल्मों की शूटिंग की है.

श्रीनगर : 1990 के दशक में श्रीनगर में कई बड़े सिनेमाघर हुआ करते थे. इस प्रदेश में फिल्म के दीवाने अच्छी खासी संख्या में रहते थे. श्रीनगर शहर के खास इलाके में 'फिरदौस' नाम का सिनेमा हॉल हुआ करता था. लाल चौक क्षेत्र में रिगल, पैलेडियम और नीलम सिनेमा बहुत लोकप्रिय थे. इन सिनेमा घरों में हिंदी सिनेमा बड़े पर्दे पर दिखाए जाते थे. हालांकि, दुर्भाग्य से बदलते हालात में अब ये सिनेमाघर वीरान हो चुके हैं.

कश्मीर घाटी में बंद पड़े सिनेमाघरों का कायाकल्प ?

गौरतलब है कि 1990 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद की शुरुआत के बाद से, इन सिनेमाघरों को सेना ने अपने कब्जे में ले लिया है. इसके बाद घाटी में सिनेमा शिविर बन गए हैं. अब हालात बदल रहे हैं तो घाटी के फिल्म निर्माता और फिल्म प्रेमी चाहते हैं कि घाटी में सिनेमाघर बने. नए निर्माण न होने की सूरत में सिनेप्रेमियों की मांग है कि वही पुराने सिनेमाघर दोबारा शुरू किए जाएं.

लाल चौक में रीगल सिनेमा का नाम अब एक ब्लैक होल पर दिखाई देता है. इसे आज एक व्यावसायिक परिसर में बदला जा रहा है. फिरदौस सिनेमा की हालत खस्ता है जहां एक गार्ड इस जर्जर इमारत पर नजर रख रहा है. हालांकि, नई फिल्म नीति इन सिनेमाघरों को दोबारा शुरू करने की मांग करती है. हालांकि, इन सिनेमाघरों के मालिक नई फिल्म नीति के मुद्दे बात करने से इनकार करते दिखते हैं.

रीगल सिनेमा के एक कर्मचारी ने कहा कि अगर सिनेमाघरों को बहाल करना होता तो पुराने सिनेमाघरों को कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में क्यों तब्दील किया जाता ? इनका कहना है कि अन्य सिनेमाघरों के मालिक अब इन सिनेमाघरों के जीर्णोद्धार में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.

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बता दें कि कश्मीर घाटी की अपार सुंदरता के कारण फिल्म निर्माता इस लोकेशन के लिए अक्सर आकर्षित होते हैं. इस साल भी कई जाने-माने फिल्म अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं ने कश्मीर में कई फिल्मों की शूटिंग की है.

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