मसूरी (उत्तराखंड): मसूरी के पास झरीपानी गांव में पुराने रेलवे स्कूल के पास आपको पुराने समय की भव्य इमारत के खंडहर नजर आएंगे. चूने और मोर्टार से बनी इमारत के जीर्ण-शीर्ण मेहराब और रेलिंग फेयरलॉन पैलेस (Fairlawn Palace) नेपाली राजघराने के निर्वासित सदस्य देव शमशेर राणा (Dev Shamsher Rana) के गौरवशाली दिनों की याद दिलाते हैं, जिन्होंने शाही परिवार में कलह के बाद मसूरी क्षेत्र को अपना दूसरा घर बना लिया था (ranas made mussoorie their second home).
फेयरलॉन पैलेस कभी महाराजा देव शमशेर जंग बहादुर राणा का घर था, जो केवल 144 दिनों के लिए नेपाल के प्रधानमंत्री रहे उसके बाद उनके भाई चंद्र शमशेर राणा ने 1901 में तख्तापलट कर दिया था. शायद अपने समय से बहुत पहले ही उदार देव शमशेर ने दासता (गुलामी) को समाप्त कर दिया था. उन्होंने एक अखबार शुरू किया और महिलाओं के लिए एक कॉलेज की स्थापना की.
जब वह दार्जिलिंग भागकर गए तो अंग्रेजों ने उन्हें वहां अधिक समय तक रहने की इजाजत नहीं दी, क्योंकि यह नेपाल सीमा के करीब था. इसके बजाय उन्होंने उन्हें दो विकल्प दिए पहला दिल्ली में जमीन (जहां बाद में कनॉट प्लेस बना) और दूसरा मसूरी में जगह, इस पर महाराजा देव शमशेर जंग बहादुर राणा ने मसूरी चुना. इसकी वजह ये थी कि यह पहाड़ी इलाका उसी तरह का था जैसा कि वह अपने देश में छोड़ आए थे. यहां पर रिज, शानदार दृश्य, बड़ा बगीचा और भरपूर पानी वाली जगह उन्हें बेहद पसंद आई. हालांकि इस पहाड़ी क्षेत्र को भारी कीमत लगाकर समतल करना पड़ा. उनके बेटे जगत शमशेर याद करते हैं कि तब तीन लाख रुपये लगे थे.
पास के सेंट जॉर्ज कॉलेज के आयरिश पेट्रीशियन ब्रदर्स की थोड़ी सी मदद से देव ने अपने बड़े परिवार के साथ बसने के लिए एक नेपाली शैली का महल बनाया. इसमें वह बारह बेटे, चार बेटियों और आने-जाने वाले मेहमानों के साथ रहते थे. शाही परिवार अपनी जरूरत का लगभग सब सामान लाया था, जिसमें प्रसिद्ध नौलखा हार भी शामिल था. मोती की कई लड़ियों वाला हार, जिसे नाना साहेब से लिया गया था जब उन्होंने 1857 की घटनाओं के बाद शरण मांगी थी. हार को आम के अचार की एक बोतल में सावधानी से छुपाया गया था.
देव शमशेर राणा के जीवन भर अपने भाई चंद्र के साथ संबंध ठीक नहीं रहे. लेकिन अलग हुए भाई कई साल बाद कलकत्ता (आज के समय कोलकाता) में फिर मिले. तब जो वार्तालाप हुआ उसमें चंद्र ने शिकायत की, 'योर हाईनेस, आप बच गए और मुझसे छल किया.' इस पर देव ने कहा, 'योर हाइनेस, आपने मेरे हक का राज्य मुझसे छल करके ले लिया, जैसे को तैसा.'
लेखकों ने राणाओं के शराब, महिलाओं और गीत प्रेम के संबंध में बहुत कुछ लिखा है. शराब और परिभ्रमण के बीच, निर्वासितों ने अपने दिनों के दौरान शतरंज के खेल खेले. पचास की उम्र में देव को दौरा पड़ा और उन्होंने अपने भाई को लिखा: 'मैं बूढ़ा हो रहा हूं और अब टूट गया हूं. दुआ कीजिए कि मरने से पहले मैं एक बार फिर अपने देश को देख सकूं.' लेकिन ऐसा हो नहीं सका. 20 फरवरी 1914 को 52 वर्ष की आयु में देव शमशेर की मौत रहस्यमय तरीके से 'अपनी ही बंदूक' से हुई.
अपनी पुस्तकों के लिए सामग्री की तलाश में मैंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के पूर्व कमांडेंट लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) आर.के. जसबीर सिंह से संपर्क किया. अपनी पत्नी के घर (फेयरलॉन) को याद करते हुए उन्होंने लिखा, 'फेयरलॉन एक शानदार संरचना थी जिसमें नेपाली और यूरोपीय डिजाइनों का बेहतरीन समावेश था - जो देहरादून तक मुख्य सड़क तक फैला हुआ था. उस स्थान पर सौ से अधिक नौकर-चाकर थे. अपने सुनहरे दिनों में हर कोई फेयरलॉन जाता था. 1950 के दशक में जगत शमशेर, मसूरी से नेपालगंज चले गए.
वह फेयरलॉन का जीवन और आत्मा थे - सेंस ऑफ ह्यूमर के साथ सभी प्रकार के व्यावहारिक चुटकुलों से प्यार करने वाले. कोई भी चीज उन्हें विचलित नहीं करती थी, उन्हें अक्सर लाफिंग बुद्धा कहा जाता था. 'मुझे बताया गया है कि अपने बाद के वर्षों में उन्होंने योग की ओर रुख किया और शाकाहारी बन गए. यह एक नेपाली के बारे में कहा जा रहा है! जहां ऐसा व्यक्ति मिलना असंभव है जो मांस, शराब और महिलाओं के बिना रह सकता है. 1957 में काठमांडू में निधन होने से पहले 'मसूरी राणा' (Mussoorie Rana) को दूसरों में पूरी तरह से शामिल होने से मांसाहारी भोजन के नुकसान के लिए अधिक से अधिक जाना जाता है.
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फेयरलॉन पैलेस भाई-बहनों के बीच बंटा हुआ था. इसका मदालसा हाउस तिब्बती भिक्षुणी विहार है, मुख्य भवन एक स्कूल है और पीछे की ओर एक पिन-कुशन आवास परिसर है. क्या राणा अंतत: घर आ गए हैं?