हैदराबाद: नेल्सन मंडेला, नाम ही काफी है. वो शख्सियत जो दुनिया के सबसे बड़े और नामी नेताओं की फेहरिस्त में हमेशा आगे की कतार में रहेंगे. महात्मा गांधी की तरह उनकी सोच, उनके विचार और उनकी जिंदगी का सफरनामा लोगों को आज भी प्रेरित करता है. इसीलिये शायद उन्हें अफ्रीका का गांधी कहा जाता है.
कहानी नेल्सन रोलीहल्ला मंडेला की
साल 1918, मोहनदास करमचंद गांधी ने किसानों की हालत सुधारने का बीड़ा उठाया और गुजरात के खेड़ा में बड़ा आंदोलन चलाया था. उसी साल 18 जुलाई को नेल्सन रोलिहल्लाह मंडेला का जन्म दक्षिण अफ्रीका के केप ईस्टर्न में हुआ. सही पढ़ा आपने, यही पूरा नाम था उस शख्सियत का जिसे बाद में दुनिया ने नेल्सन मंडेला के नाम से जाना. वो अपने पिता की चार पत्नियों में से तीसरी पत्नी की पहली संतान थे. उनके कुल 13 भाई-बहन थे. हर साल 18 जुलाई को मंडेला दिवस के रूप में मनाया जाता है.
शुरुआती पढ़ाई के बाद नेल्सन मंडेलो ने बीए किया और फिर जोहान्सबर्ग में वकालत की. जहां उनकी मुलाकात उस रंगभेद के रोग से हुई जो उनके देश को खोखला कर चुकी थी.1944 में उन्होंने अफ़्रीकी नेशनल कांग्रेस की सदस्यता ली और अगले कुछ सालों में वो नेशनल कांग्रेस के बड़े ओहदों तक पहुंचे.1953 में पहली बार जेल गए और फिर अपने आंदोलनों की वजह से उन पर देशद्रोह का मुकदमा चला और 1956 में उन्हें पांच साल की सज़ा सुनाई गयी. पांच अगस्त, 1962 को देशव्यापी हड़ताल और राजद्रोह के जुर्म में उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया, देशद्रोह का आरोप लगा और फिर वे 27 साल तक जेल में रहे.
रंगभेद के बेड़ियों में जकड़े देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने
मंडेला के जेल जाने के बाद उनकी लोकप्रियता पूरी दुनिया में फैलती रही. दक्षिण अफ्रीका रंगभेद इतना चरम पर था कि उस दौर में अश्वेतों को गोरों के साथ बैठने तक की इजाजत नहीं थी. जिसके खिलाफ नेल्सन मंडेला ने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की और काले गोरे के भेद को मिटाने के लिए आंदोलन चलाया. अब रंगभेद के खिलाफ दुनिया भर में आवाजें उठने लगी थी. हालांकि दक्षिण अफ्रीका पर किसी तरह के प्रतिबंध नहीं लगाए गए थे लेकिन दबाव बढ़ने लगा था. नेल्सन मंडेला का चेहरा दुनिया भर में रंगभेद के खिलाफ अभियान का प्रतीक बन गया. नेल्सन मंडेला की दशकों लंबी लड़ाई का ही नतीजा था कि नेल्सन मंडेला उस देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने जहां रंगभेद अपने चरम पर था.
रिहा होने के बाद राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की तैयारी के साथ नेल्सन मंडेला ने कई देशों का दौरा किया और दुनिया भर के कई नेताओं से मिले. दक्षिण अफ्रीका के पहले लोकतांत्रिक चुनाव 27 अप्रैल 1994 को संपन्न हुए. दक्षिण अफ्रीका की बहुसंख्यक अश्वेत जनता ने पहली बार लंबी कतारों में खड़े होकर वोट डाला. मंडेला देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने, 1999 में कार्यकाल खत्म हुआ तो स्वेच्छा से पद छोड़ दिया.
मंडेला ने साल 2004 में 85 साल की आयु में सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने का फैसला किया. अब उनका इरादा अपना बाकी जीवन अपने परिवार, मित्रों और शांति में बिताने का था. फेफड़ों की बीमारी के चलते उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था, 5 दिसंबर 2013 को उन्होंने आखिरी सांस ली.
जैसे 'बापू' हैं महात्मा गांधी, वैसे ही 'पिता' हैं मंडेला
-मोहनदास करमचंद गांधी हमारे राष्ट्रपिता हैं और उन्हें बापू कहकर बुलाया जाता था. इसी तरह दक्षिण अफ्रीका के लोग नेल्सन मंडेला को प्यार से 'मदीबा' कहते थे. स्थानीय भाषा में मदीबा का मतलब पिता होता है.
- रंगभेद के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए मंडेला ने वकालत का रास्ता चुना और वो दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत वकील बने.
-रंगभेद के कारण ही दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम 21 सालों तक अंतरराष्ट्रीय पटल पर कोई मैच नहीं खेल पाई. उसपर बैन लगाया गया था.
-रंगभेद के खिलाफ नेल्सन मंडेला का आंदोलन महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अहिंसा से प्रेरित था. भले उन्होंने एक हिंसक क्रांति का भी आह्वान किया था. 1961 में उन्होंने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की सशस्त्र शाखा का गठन किया, जिसके वो कमांडर भी थे. वो क्यूबा के आंदोलन से भी प्रभावित थे लेकिन सबसे बड़ी प्रेरणा और ताकत उन्हें गांधीवाद से ही मिली.
- नेल्सन मंडेला को साल 1962 में सरकार के खिलाफ साजिश का दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई गई. मंडेला 27 साल जेल में रहे.
- अपनी सजा के दौरान उन्हें रॉबेन द्वीप के कारागार में भी रखा गया जहां उन्हे कोयले की खदान में काम करना पड़ा था.
-जेल में लिखी गई उनकी जीवनी साल 1994 में प्रकाशित हुई जिसका नाम 'लॉन्ग वीक टू फ्रीडम' था.
-27 साल जेल में रहने के बाद 1990 में उनकी रिहाई हुई और 1994 में दक्षिण अफ्रीका में पहली बार रंगभेद रहित चुनाव हुए. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस को जीत मिली और मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने.
- नेल्सन मंडेला को 1993 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. इससे पहले साल 1990 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी नवाजा गया. ये सम्मान पाने वाले दूसरे गैर-भारतीय शख्स हैं.
-नेल्सन मंडेला ने तीन शादियां की थी, कहते हैं कि 23 साल की उम्र में वो शादी के डर से जोहानिसबर्ग भाग गए थे. 1944 में उन्होंने अपनी सहयोगी की बहन इवलिन मेस से पहली शादी की, देशद्रोह के मुकदमे के दौरान उनकी मुलाकात नोमजामो विनी से हुई और 1961 में उनसे शादी की. मंडेला ने 1998 में अपने 80वें जन्मदिन के दिन ग्रेस मेकल से तीसरी शादी की थी.
-नेल्सन मंडेला को खेलों में भी रुचि थी. बाॉक्सिंग का शौक और क्रिकेट मैच के अलावा साल 2010 में फुटबॉल विश्वकप की नुमाइंदगी दक्षिण अफ्रीका को दिलाने में उन्होंने पहल की थी. दक्षिण अफ्रीका में 2010 विश्व कप के समापन समारोह में शिरकत भी की थी.
नेल्सन मंडेला के अनमोल बोल
-बॉक्सिंग के शौकीन मंडेला ने अपनी जीवनी 'लॉन्ग वॉक टू फ्रीडम' में लिखा कि 'बॉक्सिंग में कोई भेदभाव नहीं है. रिंग के अंदर ओहदा, उम्र, रंग और सम्पत्ति कोई मायने नहीं रखते'
-मंडेला कहते थे कि 'दुनिया की कोई भी ताक़त दबे-कुचले लोगों के उस आन्दोलन को मिटा नहीं सकती जिसमें उन्होंने जनता विरोधी सत्ता को उखाड़ फेंकने का संकल्प किया हो.'
-'जब कोई सरकार निहत्थे लोगों के शांतिपूर्ण आन्दोलन को दबाने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दे तो यह मान लेना चाहिए कि सरकार को उस आन्दोलन की ताक़त समझ में आ गयी है.'
-'विकास और शांति को अलग नहीं किया जा सकता. शांति और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के बगैर कोई भी देश अपने गरीब और पिछड़े हुए नागरिकों को मुख्य धारा में लाने के लिए कुछ नहीं कर सकता.'
ये भी पढ़ें: 125 साल पहले इन दो भाइयों ने कराई थी सिनेमा से हमारी पहचान