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वाइब्रेंट विलेज योजना: 1962 भारत-चीन युद्ध में उत्तराखंड ये दो गांव हो गए थे वीरान, अब बनेंगे टूरिज्म हब

उत्तराखंड के नेलांग और जादूंग गांवों को वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत विकसित किया जा रहा है. ये दोनों गांव 1962 भारत-चीन युद्ध के गवाह हैं. युद्ध के बाद 61 साल से दोनों गांव वीरान हैं.

nelang and jadung villages
नेलांग और जादूंग गांव
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Published : Aug 8, 2023, 9:03 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड): साल 1962... यह साल इसलिए भी सभी को याद रहता है क्योंकि 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था. उत्तराखंड की सीमाएं अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से लगती हैं. लिहाजा, इस युद्ध का असर यहां के सीमावर्ती गांव पर भी देखा गया था. आज भी युद्ध के बाद वीरान उत्तराखंड से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं इसका जीता जागता उदाहरण हैं. लेकिन अब उन सीमाओं से संटे गांवों को दोबारा से बसाने की कवायद शुरू हो चुकी है. उत्तरकाशी जिले के नेलांग और जादूंग गांव को बसाने के साथ ही सुख सुविधा देने के लिए तेजी से कार्ययोजना पर काम शुरू हो चुका है.

nelang and jadung villages
1960 भारत-चीन युद्ध के बाद से वीरान हैं नेलांग और जादूंग गांव

मोबाइल कनेक्टिविटी से कवायद शुरू: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की एक सीमा चीन और दूसरी पड़ोसी राज्य हिमाचल से मिलती है. 1962 के युद्ध में उत्तरकाशी के नेलांग और जादूंग गांव के लोगों ने बहुत कुछ खोया. लेकिन अब 60 साल से अधिक समय बीतने के बाद कहीं जाकर ये आस जगी है कि इन गांव को फिर से बसाया जा रहा है. केंद्र की योजना के तहत गांव को विकसित करने से पहले वीरान हो चुके गांव तक मूलभूत सुविधा पहुंचाई जा रही है. इसके तहत राज्य सरकार द्वारा बीएसएनएल को कई अलग-अलग स्थान पर जगह दी गई है. ताकि जल्द से जल्द मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की सुविधा सुचारू हो सके. उत्तरकाशी के 71 स्थानों पर ये नेटवर्क टावर लगने हैं. इससे न केवल सेना को फायदा मिलेगा, बल्की आने वाले समय में पर्यटकों की आमद भी बढ़ेगी.

nelang and jadung villages
वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत इन गांवों को विकसित करने की प्रक्रिया जारी है.
ये भी पढ़ेंः नेलांग-जाडुंग गांव को दोबारा बसाने की कवायद महज घोषणा तक सीमित, ग्रामीणों ने मांगा मुआवजा

गांव के इतिहास और मौजूदा हालात: उत्तरकाशी के गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आने वाले नेलांग और जादूंग गांव समुंद्र तल से 11,400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. 1962 से तिब्बत और भारत के बीच व्यापारिक तालमेल के लिए ये दोनों गांव सबसे बड़े गवाह हैं. इन गांव में जाने का फिलहाल एक बेहद पुराना मार्ग है, जहां पर एक छोटा सा लकड़ी का पुल बना हुआ है. पुल मुख्यालय की सड़क से इन गांवों को जोड़ता है. फिलहाल इन गांवों के आसपास सेना का कैंप स्थापित किया गया है. बेहद खूबसूरत और चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा यह क्षेत्र आने वाले समय में पर्यटन के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. यही कारण है कि वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत इन दोनों गांव को सबसे पहले विकसित किया जा रहा है. 1962 के बाद इन गांव में किसी भी नागरिक को जाने की अनुमति नहीं थी. लेकिन साल 2022 के बाद विशेष परमिट लेकर पर्वतारोही पहुंचने लगे हैं.

nelang and jadung villages
युद्ध के दौरान गांव के वासियों को अन्य गांव में शिफ्ट कर दिया गया था.

रोंगपा और भोटिया जनजाति: 1962 युद्ध से पहले उत्तरकाशी के नेलांग और जादूंग गांव में रोंगपा या भोटिया जनजाति के लोग रहा करते थे. युद्ध के दौरान उन्हें बगोरी गांव में शिफ्ट किया गया, तब से कई परिवार आज भी वहीं रह रहे हैं. युद्ध के बाद नेलांग और जादूंग गांव के घरों में भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल ने अपनी चौकियां बना ली थी. आज भी इस गांव में कई बंकर और घरों को आईटीबीपी इस्तेमाल कर रही है. साल 2015 के बाद यहां स्थित भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग यानी गरतांग गली को भी दोबारा से ठीक किया गया है.

nelang and jadung villages
आज भी नेलांग और जादूंग गांव के लोग साल में एक बार गांव आकर पूजा करते हैं.
ये भी पढ़ेंः PM मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट से वाइब्रेंट होंगे विलेज, देश के सीमांत गांवों की बदलेगी तस्वीर, सीमाएं होंगी मजबूत

मुख्यसचिव स्तर से चल रही कार्रवाई: उत्तरकाशी के इन दोनों गांव को बसाने और सुविधाएं पहुंचाने के लिए साल 2022 के बजट में केंद्र सरकार ने बकायदा वाइब्रेंट विलेज योजना के नाम पर बजट रखा था. इसके बाद राज्य सरकार के साथ पत्राचार किया गया. उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने इस मामले में गंगोत्री नेशनल पार्क के उपनिदेशक और आइटीबीपी सहित आर्मी के अधिकारियों के साथ बैठक की. बैठक में क्षेत्र से प्रतिबंध को हटाने पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए.

nelang and jadung villages
आज भी गांव में 1962 युद्ध के सबूत मौजूद हैं.

उत्तराखंड सरकार का मॉडल गांव: उत्तराखंड सरकार भी इन गांवों को जल्द-जल्द से बसाना चाहती है. सरकार इन गांवों को मॉडल गांव की तरह विकसित करने पर भी विचार कर रही है. इससे गंगोत्री नेशनल पार्क आने वाले पर्यटकों को ऐतिहासिक जगह पर रुकने का मौका मिलेगा. राज्य सरकार इन क्षेत्रों में होमस्टे योजना के साथ-साथ कैंपिंग योजना भी विकसित कर रही है.

उत्तराखंड टूरिज्म को बढ़ावा: उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के गांवों को डेवलप करना केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता है. इससे यहां पर्यटकों की आमद बढ़ेगी और टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा. 1962 के युद्ध से पहले और युद्ध के बाद की स्थिति की लोगों को जानकारी मिलेगी.
ये भी पढ़ेंः अब देश और दुनिया से जुड़ेंगे नेलांग और जादूंग गांव, जल्द शुरू होगी BSNL की मोबाइल टावर सेवा

देहरादून (उत्तराखंड): साल 1962... यह साल इसलिए भी सभी को याद रहता है क्योंकि 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था. उत्तराखंड की सीमाएं अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से लगती हैं. लिहाजा, इस युद्ध का असर यहां के सीमावर्ती गांव पर भी देखा गया था. आज भी युद्ध के बाद वीरान उत्तराखंड से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमाएं इसका जीता जागता उदाहरण हैं. लेकिन अब उन सीमाओं से संटे गांवों को दोबारा से बसाने की कवायद शुरू हो चुकी है. उत्तरकाशी जिले के नेलांग और जादूंग गांव को बसाने के साथ ही सुख सुविधा देने के लिए तेजी से कार्ययोजना पर काम शुरू हो चुका है.

nelang and jadung villages
1960 भारत-चीन युद्ध के बाद से वीरान हैं नेलांग और जादूंग गांव

मोबाइल कनेक्टिविटी से कवायद शुरू: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की एक सीमा चीन और दूसरी पड़ोसी राज्य हिमाचल से मिलती है. 1962 के युद्ध में उत्तरकाशी के नेलांग और जादूंग गांव के लोगों ने बहुत कुछ खोया. लेकिन अब 60 साल से अधिक समय बीतने के बाद कहीं जाकर ये आस जगी है कि इन गांव को फिर से बसाया जा रहा है. केंद्र की योजना के तहत गांव को विकसित करने से पहले वीरान हो चुके गांव तक मूलभूत सुविधा पहुंचाई जा रही है. इसके तहत राज्य सरकार द्वारा बीएसएनएल को कई अलग-अलग स्थान पर जगह दी गई है. ताकि जल्द से जल्द मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट की सुविधा सुचारू हो सके. उत्तरकाशी के 71 स्थानों पर ये नेटवर्क टावर लगने हैं. इससे न केवल सेना को फायदा मिलेगा, बल्की आने वाले समय में पर्यटकों की आमद भी बढ़ेगी.

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वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत इन गांवों को विकसित करने की प्रक्रिया जारी है.
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गांव के इतिहास और मौजूदा हालात: उत्तरकाशी के गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आने वाले नेलांग और जादूंग गांव समुंद्र तल से 11,400 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. 1962 से तिब्बत और भारत के बीच व्यापारिक तालमेल के लिए ये दोनों गांव सबसे बड़े गवाह हैं. इन गांव में जाने का फिलहाल एक बेहद पुराना मार्ग है, जहां पर एक छोटा सा लकड़ी का पुल बना हुआ है. पुल मुख्यालय की सड़क से इन गांवों को जोड़ता है. फिलहाल इन गांवों के आसपास सेना का कैंप स्थापित किया गया है. बेहद खूबसूरत और चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों से घिरा यह क्षेत्र आने वाले समय में पर्यटन के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. यही कारण है कि वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत इन दोनों गांव को सबसे पहले विकसित किया जा रहा है. 1962 के बाद इन गांव में किसी भी नागरिक को जाने की अनुमति नहीं थी. लेकिन साल 2022 के बाद विशेष परमिट लेकर पर्वतारोही पहुंचने लगे हैं.

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युद्ध के दौरान गांव के वासियों को अन्य गांव में शिफ्ट कर दिया गया था.

रोंगपा और भोटिया जनजाति: 1962 युद्ध से पहले उत्तरकाशी के नेलांग और जादूंग गांव में रोंगपा या भोटिया जनजाति के लोग रहा करते थे. युद्ध के दौरान उन्हें बगोरी गांव में शिफ्ट किया गया, तब से कई परिवार आज भी वहीं रह रहे हैं. युद्ध के बाद नेलांग और जादूंग गांव के घरों में भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल ने अपनी चौकियां बना ली थी. आज भी इस गांव में कई बंकर और घरों को आईटीबीपी इस्तेमाल कर रही है. साल 2015 के बाद यहां स्थित भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग यानी गरतांग गली को भी दोबारा से ठीक किया गया है.

nelang and jadung villages
आज भी नेलांग और जादूंग गांव के लोग साल में एक बार गांव आकर पूजा करते हैं.
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मुख्यसचिव स्तर से चल रही कार्रवाई: उत्तरकाशी के इन दोनों गांव को बसाने और सुविधाएं पहुंचाने के लिए साल 2022 के बजट में केंद्र सरकार ने बकायदा वाइब्रेंट विलेज योजना के नाम पर बजट रखा था. इसके बाद राज्य सरकार के साथ पत्राचार किया गया. उत्तराखंड के मुख्य सचिव ने इस मामले में गंगोत्री नेशनल पार्क के उपनिदेशक और आइटीबीपी सहित आर्मी के अधिकारियों के साथ बैठक की. बैठक में क्षेत्र से प्रतिबंध को हटाने पर कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए.

nelang and jadung villages
आज भी गांव में 1962 युद्ध के सबूत मौजूद हैं.

उत्तराखंड सरकार का मॉडल गांव: उत्तराखंड सरकार भी इन गांवों को जल्द-जल्द से बसाना चाहती है. सरकार इन गांवों को मॉडल गांव की तरह विकसित करने पर भी विचार कर रही है. इससे गंगोत्री नेशनल पार्क आने वाले पर्यटकों को ऐतिहासिक जगह पर रुकने का मौका मिलेगा. राज्य सरकार इन क्षेत्रों में होमस्टे योजना के साथ-साथ कैंपिंग योजना भी विकसित कर रही है.

उत्तराखंड टूरिज्म को बढ़ावा: उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के गांवों को डेवलप करना केंद्र और राज्य सरकार की प्राथमिकता है. इससे यहां पर्यटकों की आमद बढ़ेगी और टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा. 1962 के युद्ध से पहले और युद्ध के बाद की स्थिति की लोगों को जानकारी मिलेगी.
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