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भोपाल के सरकारी अस्पताल का कारनामा, पुरुषों के सामने हो गई डिलीवरी, टांके लगाए तो पेट में कपड़ा छोड़ा

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Published : May 23, 2023, 8:19 PM IST

मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर कई जिलों से अलग-अलग खबरें सामने आती है. इस बार राजधानी भोपाल के कोलार स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की लापरवाही का नजारा देखने मिला. जहां एक गर्भवती के साथ अस्पताल प्रबंधन ने लापरवाही करते पुरुषों के सामने डिलीवरी कराई और टांके के बाद पेट में ही बैंडेज छोड़ दिया. जिसके चलते महिला की जान पर बन आई.

Negligence of Kolar Government Hospital
गजब का कारनामा
पीड़िता का बयान

भोपाल। इस खबर को इसलिए पढ़िए कि सरकारी अस्पताल में सरकारी योजनाओं में मुफ्त डिलीवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को कैसे इंसान नहीं भेड़ बकरी समझा जाता है. इस खबर को इसलिए पढ़िए ताकि आप जान सकें कि मरीजों की जिंदगी से खेला कैसे जा रहा है. लापरवाही की हद कहां तक है. भोपाल के कोलार इलाके के सामुदायिक केन्द्र में एक गर्भवती को जनरल वार्ड में दर्द का इंजेक्शन देकर नर्स मरीज को भूल गई. बच्चा बाहर आ गया ये बताने के बाद भी नहीं आई और जनरल वार्ड में पुरुषों के सामने महिला की डिलीवरी हो गई. जिस वक्त महिला खून से लथपथ बिस्तर में पड़ी थी, तब नर्स स्टॉफ रुम में सुस्ता रही थी. डॉक्टर ड्यूटी के बाद घर जा चुकी थी. पुरुषों के सामने हुई इस डिलीवरी में इतनी ही लापरवाही नहीं हुई बल्कि डिलीवरी के बाद टांके लगाते हुए नर्सों ने पेट में बैन्डेज भी छोड़ दिया.

जनरल वार्ड में पुरुषों के सामने हो गई डिलीवरी: कोलार इलाके में रहने वाली 27 वर्ष की शिखा राजपूत अब खतरे से बाहर हैं, लेकिन दर्द उठने से लेकर अपनी पहली डिलीवरी और उसके बाद के छह दिन किसी नरक से कम नहीं थे. शिखा कोलार के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से डिलीवरी के दौरान इलाज ले रही थी. लिहाजा जब नौ महीने पूरे हुए उसके बाद भी इसी अस्पताल में गई जो मैटरिनिटी डैडिकेटेड अस्पताल है. शिखा बताती हैं, उस दिन मुझे हल्का-हल्का दर्द हो रहा था. मैने डॉक्टर को दिखाया उन्होंने चैकअप किया और फिर कहा कि मेरी तो ड्यूटी खत्म हो गई या तो किसी प्राइवेट अस्पताल में चले जाओ या फिर तुम्हारी डिलेवरी नर्स करवा देगी. डॉक्टर चली गई, मुझे जनरल वार्ड में भर्ती कर दिया गया. मेरे पति देवेन्द्र राजपूत से इंजेक्शन बुलवाए गए. मुझे दर्द के इंजेक्शन भी दे दिए. लेकिन कोई नर्स देखने भी नहीं आई. मेरी मां नर्स को कई बार बुलाने गई कि दर्द हो रहा है, बच्चा बाहर आ रहा लेकिन नर्स ये कहकर टालती रही कि अभी टाइम लगेगा. शिखा बताती हैं जब मेरी मां ने उन्हें कहा कि अब तो डिलीवरी हो ही गई अब तो आ जाइए तब आईं, उस समय तक तो मैं सिर से पांव तक खून में लथपथ पड़ी हुई थी. वो तो बच्ची बच गई वरना तो नीचे भी गिर सकती थी. शिखा की ये पहली डिलेवरी थी. वो कहती है मैं ये कभी नहीं भूल पाऊंगी. डॉक्टर से लेकर नर्सों तक की ऐसी लापरवाही कि मेरी तो जान पर बन आई थी.

copy of complaint
शिकायत की कॉपी
  1. बेदर्द प्रशासन! अस्पताल के बाहर रात भर दर्द से कराहती रही महिला, बाइक की आड़ में दिया बच्चे को जन्म
  2. देखो सरकार विकास की तस्वीरें! नहीं मिली एंबुलेंस, ठेले पर शव ले गए परिजन, वीडियो वायरल

टांके लगाए तो पेट में बैंडेज छोड़ दिया: लावरवाही और एक गर्भवती की जिंदगी से खेलने का ये खेल यहीं तक नहीं था. दो दिन बाद जब छुट्टी करवा कर शिखा को घर लाया गया तो नई परेशानी शुरु हुई. शिखा पेशाब नहीं कर पा रही थी. शिखा के पति देवेन्द्र ने अब फिर उसी अस्पताल का रुख करना ठीक नहीं समझा और उसे प्राइवेट अस्पताल में लेकर गए. देवेन्द्र बताते हैं मैं सुनकर हैरान रह गया जब डॉक्टर ने चैकअप के बाद देखा कि टांकों में से कोई कपड़ा निकल रहा है. उन्होंने कहा कि पेट में कुछ कपड़ा है. जो अंदर छूट गया था. छह दिन से भीतर पड़ा ये कपड़ा बदबू मारने लगा था. इसी की वजह से शिखा की जान पर बन आई थी. वो बाथरुम नहीं जा पा रही थी. प्राइवेट अस्पताल की डॉक्टर ने बाकायदा पर्चे पर लिखकर दिया है कि पेट में कपड़ा छूटा था. देवेन्द्र कहते हैं जब इस बारे में अस्पताल में बताया तो उनका कहना था कि ऐसे कपड़े छूट जाते हैं, कई बार मरीज को कुछ हुआ तो नहीं ना, ठीक है तो क्यों चिंता कर रहे हैं.

अस्पताल प्रबंधन को दी लिखित शिकायत: देवेन्द्र राजपूत ने इस पूरे मामले में लिखित शिकायत सामुदायिक केन्द्र में दी है. ईटीवी भारत ने सामुदायिक केन्द्र से संपर्क किया लेकिन बातचीत नहीं हो सकी. देवेन्द्र राजपूत ने सामुदायिक केन्द्र की चिकित्सा अधिकारी को लिखे इस पत्र में अनुरोध किया है कि जिम्मेदारों पर तुरंत कार्रवाई की जाए.

मांओं के लिए देश दूसरे नंबर का असुरक्षित राज्य एमपी: ये जो घटना है. मध्यप्रदेश के मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों की तस्दीक हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि कैसे मध्यप्रदेश मातृ मृत्यु दर के मामलों में देश में दूसरे नंबर का असुरक्षित राज्य है. जहां 2018 – 2020 तीन सालों में मातृ मृत्यु दर 163 से बढ़कर 173 हो चुका है. इन आंकड़ों का अर्थ है कि प्रति एक लाख मांओं में से 173 माताएं संकट से गुजरती हैं.

पीड़िता का बयान

भोपाल। इस खबर को इसलिए पढ़िए कि सरकारी अस्पताल में सरकारी योजनाओं में मुफ्त डिलीवरी के लिए आने वाली गर्भवती महिलाओं को कैसे इंसान नहीं भेड़ बकरी समझा जाता है. इस खबर को इसलिए पढ़िए ताकि आप जान सकें कि मरीजों की जिंदगी से खेला कैसे जा रहा है. लापरवाही की हद कहां तक है. भोपाल के कोलार इलाके के सामुदायिक केन्द्र में एक गर्भवती को जनरल वार्ड में दर्द का इंजेक्शन देकर नर्स मरीज को भूल गई. बच्चा बाहर आ गया ये बताने के बाद भी नहीं आई और जनरल वार्ड में पुरुषों के सामने महिला की डिलीवरी हो गई. जिस वक्त महिला खून से लथपथ बिस्तर में पड़ी थी, तब नर्स स्टॉफ रुम में सुस्ता रही थी. डॉक्टर ड्यूटी के बाद घर जा चुकी थी. पुरुषों के सामने हुई इस डिलीवरी में इतनी ही लापरवाही नहीं हुई बल्कि डिलीवरी के बाद टांके लगाते हुए नर्सों ने पेट में बैन्डेज भी छोड़ दिया.

जनरल वार्ड में पुरुषों के सामने हो गई डिलीवरी: कोलार इलाके में रहने वाली 27 वर्ष की शिखा राजपूत अब खतरे से बाहर हैं, लेकिन दर्द उठने से लेकर अपनी पहली डिलीवरी और उसके बाद के छह दिन किसी नरक से कम नहीं थे. शिखा कोलार के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से डिलीवरी के दौरान इलाज ले रही थी. लिहाजा जब नौ महीने पूरे हुए उसके बाद भी इसी अस्पताल में गई जो मैटरिनिटी डैडिकेटेड अस्पताल है. शिखा बताती हैं, उस दिन मुझे हल्का-हल्का दर्द हो रहा था. मैने डॉक्टर को दिखाया उन्होंने चैकअप किया और फिर कहा कि मेरी तो ड्यूटी खत्म हो गई या तो किसी प्राइवेट अस्पताल में चले जाओ या फिर तुम्हारी डिलेवरी नर्स करवा देगी. डॉक्टर चली गई, मुझे जनरल वार्ड में भर्ती कर दिया गया. मेरे पति देवेन्द्र राजपूत से इंजेक्शन बुलवाए गए. मुझे दर्द के इंजेक्शन भी दे दिए. लेकिन कोई नर्स देखने भी नहीं आई. मेरी मां नर्स को कई बार बुलाने गई कि दर्द हो रहा है, बच्चा बाहर आ रहा लेकिन नर्स ये कहकर टालती रही कि अभी टाइम लगेगा. शिखा बताती हैं जब मेरी मां ने उन्हें कहा कि अब तो डिलीवरी हो ही गई अब तो आ जाइए तब आईं, उस समय तक तो मैं सिर से पांव तक खून में लथपथ पड़ी हुई थी. वो तो बच्ची बच गई वरना तो नीचे भी गिर सकती थी. शिखा की ये पहली डिलेवरी थी. वो कहती है मैं ये कभी नहीं भूल पाऊंगी. डॉक्टर से लेकर नर्सों तक की ऐसी लापरवाही कि मेरी तो जान पर बन आई थी.

copy of complaint
शिकायत की कॉपी
  1. बेदर्द प्रशासन! अस्पताल के बाहर रात भर दर्द से कराहती रही महिला, बाइक की आड़ में दिया बच्चे को जन्म
  2. देखो सरकार विकास की तस्वीरें! नहीं मिली एंबुलेंस, ठेले पर शव ले गए परिजन, वीडियो वायरल

टांके लगाए तो पेट में बैंडेज छोड़ दिया: लावरवाही और एक गर्भवती की जिंदगी से खेलने का ये खेल यहीं तक नहीं था. दो दिन बाद जब छुट्टी करवा कर शिखा को घर लाया गया तो नई परेशानी शुरु हुई. शिखा पेशाब नहीं कर पा रही थी. शिखा के पति देवेन्द्र ने अब फिर उसी अस्पताल का रुख करना ठीक नहीं समझा और उसे प्राइवेट अस्पताल में लेकर गए. देवेन्द्र बताते हैं मैं सुनकर हैरान रह गया जब डॉक्टर ने चैकअप के बाद देखा कि टांकों में से कोई कपड़ा निकल रहा है. उन्होंने कहा कि पेट में कुछ कपड़ा है. जो अंदर छूट गया था. छह दिन से भीतर पड़ा ये कपड़ा बदबू मारने लगा था. इसी की वजह से शिखा की जान पर बन आई थी. वो बाथरुम नहीं जा पा रही थी. प्राइवेट अस्पताल की डॉक्टर ने बाकायदा पर्चे पर लिखकर दिया है कि पेट में कपड़ा छूटा था. देवेन्द्र कहते हैं जब इस बारे में अस्पताल में बताया तो उनका कहना था कि ऐसे कपड़े छूट जाते हैं, कई बार मरीज को कुछ हुआ तो नहीं ना, ठीक है तो क्यों चिंता कर रहे हैं.

अस्पताल प्रबंधन को दी लिखित शिकायत: देवेन्द्र राजपूत ने इस पूरे मामले में लिखित शिकायत सामुदायिक केन्द्र में दी है. ईटीवी भारत ने सामुदायिक केन्द्र से संपर्क किया लेकिन बातचीत नहीं हो सकी. देवेन्द्र राजपूत ने सामुदायिक केन्द्र की चिकित्सा अधिकारी को लिखे इस पत्र में अनुरोध किया है कि जिम्मेदारों पर तुरंत कार्रवाई की जाए.

मांओं के लिए देश दूसरे नंबर का असुरक्षित राज्य एमपी: ये जो घटना है. मध्यप्रदेश के मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों की तस्दीक हैं. ये आंकड़े बताते हैं कि कैसे मध्यप्रदेश मातृ मृत्यु दर के मामलों में देश में दूसरे नंबर का असुरक्षित राज्य है. जहां 2018 – 2020 तीन सालों में मातृ मृत्यु दर 163 से बढ़कर 173 हो चुका है. इन आंकड़ों का अर्थ है कि प्रति एक लाख मांओं में से 173 माताएं संकट से गुजरती हैं.

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