पटना : बिहार की सियासत में राजनीति मछली पकड़ने का काम कर रही है. मछली छोटी है कि बड़ी, इस पर भी चर्चा शुरू हुई. मछली पकड़ने के लिए जैसे ही राजनीति आगे बढ़ी, बिहार की मछलियां भी कहने लगी कि हमें सियासत का हिस्सा मत बनाइए लेकिन अब राजनीति है तो हिस्सेदारी होगी ही. क्योंकि जीवन के अंतिम हिस्से में भी एक अंश रह जाता है, जिसे मीना अंश कहते हैं. संभवतः राजनीति में भी बिहार का यह मीना अंश है जिसमें आरजेडी (RJD) के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने मछली पकड़ी तो मछली छोटी निकल गई तो बयान दे दिए कि सत्ता में आएंगे तो सभी वैसी बड़ी मछलियों को पकड़ लेंगे जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी हैं. यहां से मछली सियासत शुरू हुई और बिहार की सियासी मछली ने बिहार के राजनेताओं की जुबान पर मछली राजनीति ला दी है. बिहार की राजनीति अब मछली मछली और मछली सियासत कर रही है.
सियासत के केंद्र में मछली
दरअसल, बिहार में 2 सीटों पर उपचुनाव (By-elections) चल रहा है. बिहार की राजनीति अपने हाथ में जनता को ले आए और राजनेता अपने तरीके से जनता को अपने वादों के जाल में फंसा कर जीत का सेहरा अपने सिर पर बांधे. इसके लिए जनता के बीच हर चारा डाला जा रहा है. अब राजनेताओं की मर्जी है, इसलिए जो मन में आता है करने लगते हैं. लालू के छोटे बेटे और आरजेडी के सबसे बड़े रहनुमा तेजस्वी यादव को मछली पकड़ने की सूझी तो गाड़ी रुकवा कर मछली पकड़ने लगे. 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में जीत के लिए पूरा दम लगा चुके सभी राजनैतिक दलों को इसी बात का सबसे बड़ा समीकरण खड़ा करना है कि तारापुर और कुशेश्वरस्थान (Tarapur and Kusheshwarsthan) की सीट पार्टी के खाते में आ जाए. इसके लिए बंसी में कौन सा चारा लगा कर फेंका जाए कि जीत दिलाने वाली जनता मछली की तरह फंस जाए. अब तेजस्वी यादव ने मछली पकड़ने के लिए बंसी तो लगा दी, लेकिन हाथ छोटी मछली लगी तो संतोष में कह दिए कि सरकार बनेगी तो बड़ी मछलियों को पकड़ लूंगा. तेजस्वी यादव के इस बयान ने बिहार की राजनीति में सियासी तूफान ला दिया और विरोधी (सत्ता पक्ष) ने बहुत सारे सवाल तेजस्वी के सामने खड़ा कर दिए, क्योंकि विपक्ष की राजनीति और भ्रष्टाचार का मुद्दा दोनों तेजस्वी यादव के साथ कुछ इस कदर जुड़ा है जैसे बिहार की राजनीति में लालू यादव (Lalu Yadav) का नाम. अभी मछली सियासत में जिस तरीके की राजनीति घुस गई है और राजनीति ने इस सियासी मछली को पकड़ लिया है, 2 सीटों पर घमासान होना लाजमी है क्योंकि प्रचार का अभी एक स्वरूप और है जिसने रफ्तार नहीं पकड़ी है.
सियासी फसल अभी पकी नहीं
मछली वाली राजनीति में तेजस्वी यादव का वह अंदाज दिखा, जिसमें जब लालू यादव मुख्यमंत्री हुआ करते थे और उनका दरबार लगता था. दानापुर दियारा से लेकर नकटा दियारा के लोग तरह-तरह की मछली लेकर लालू के दरबार में पहुंचते थे. कहा जाता है कि लालू यादव मछलियों के शौकीन भी खूब थे, क्योंकि मछली वाली सियासत लालू यादव के समय से चली आ रही है तो जिस विरासत की सियासत को तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं उसमे मछली वाली राजनीति को छोड़ दें यह संभव नहीं है. पकड़ने की कोशिश तो तेजस्वी ने लालू यादव के उस अंदाज का भी किया है कि लालू के रास्ते पर जा रहे थे तो गेहूं की लगी फसल को बैठकर देखने लगे. तेजस्वी यादव भी बैठकर फसल को देखा, लेकिन मामला फसल का निकल गया. लालू यादव जिस फसल को देखे थे, वह कटने के लिए तैयार थी और लालू यादव ने उस फसल को खूब काटा, लेकिन तेजस्वी यादव जिस फसल के पास बैठे थे, धान के खेत का था और उसमें हरियाली भी बहुत है. मामला साफ है कि फसल अभी पकी नहीं. अगर पिता वाली राजनीति को तेजस्वी यादव साधना चाह रहे थे तो लालू यादव ने जिस फसल को छुआ, था वह पक चुकी थी. जबकि तेजस्वी यादव ने जिस फसल को छुआ है, उसमें भी हरियाली ज्यादा है और वह पकी नहीं है. पकने के पहले हरियाली वाली जिस राजनीतिक मछली की सियासत तेजस्वी यादव ने कर डाला वह चर्चा में तो जरूर है, लेकिन जीत कितना दिला पाएगी या नहीं कहा जा सकता. क्योंकि कई ऐसी कहानी तेजस्वी यादव ने अपने तरीके से बनाई है, जो विपक्ष के लिए मजबूत हथकंडा भी है और तेजस्वी के लिए राजनीति में चुप हो जाने वाला एक सवाल भी.
भ्रष्टाचार को लेकर घेरे में तेजस्वी भी
भ्रष्टाचार की मछली भ्रष्टाचार के मामले पर जिस तरीके की बात तेजस्वी ने कही कि अभी तो छोटी मछली हाथ लगी है, लेकिन सरकार में आएंगे तो बड़ी मछलियों को पकड़ेंगे. उसके बाद जेडीयू (JDU) और बीजेपी (BJP) राजनीतिक रूप से मुखर हो गए. जेडीयू के कई नेताओं ने साफ तौर पर आरोप लगा दिया कि भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी मछली तेजस्वी के घर में ही पड़ी है. वह मछली जेल में भी रही है, फिलहाल थोड़े दिनों के लिए बाहर है. खुद जिस तालाब में तेजस्वी यादव डुबकी लगा रहे हैं, उसमें भ्रष्टाचार तक तो आकंठ में हैं बेनामी संपत्तियों का जाल और टिकट बेचने का आरोप है. ऐसे में तेजस्वी यादव आरोप लगा रहे हैं कि बड़ी मछलियों को पकड़ेंगे, लेकिन पहले यह बता दें कि उनके घर में भ्रष्टाचार की कमाई से जो पैसा आया है उसको पकड़ने के लिए क्या करेंगे. क्योंकि कोई ऐसा नहीं है, जिन पर भ्रष्टाचार का दाग न हो. चाहे तेजस्वी हो या उनका हर रिश्तेदार, अब इस सियासी मछली ने पानी से बाहर आते ही छटपटाना शुरू कर दिया और भ्रष्टाचार के मुद्दे ने सियासत की एक नई जगह पकड़ ली.
रोजगार ने नीतीश को किया लाचार!
बिहार में तेजस्वी यादव ने 2020 के चुनाव में रोजगार को अपना मुद्दा बनाया. युवा राजनीति को जगह देने की कोशिश की और रोजगार को दाना बनाकर हाथ में बंसी लेकर बिहार में निकल पड़े. हालांकि यह भी उतना ही बड़ा सत्य है कि रोजगार का मुद्दा इतना बड़ा बना कि तेजस्वी यादव के सामने नीतीश कुमार की बड़ी वाली सियासत छोटी दिखने लगी और 2017 में आरजेडी से गठबंधन तोड़कर बीजेपी के साथ आने के बाद उसका खामियाजा भी नीतीश कुमार को भरना पड़ा और पार्टी नीतीश के बिहार में आने के बाद से सबसे कम सीट पर जाकर सिमट गई. इसकी बड़ी वजह तेजस्वी यादव की वह सियासी मछली ही है, जो रोजगार की बंसी बन कर युवाओं के बीच चली गई थी.
मुद्दों की मछली हाथ से फिसली
तेजस्वी के हाथ में सियासत को लेकर चलने की एक बड़ी मछली भी आई थी और उसकी वजह थी मजबूत गठबंधन का खड़ा होना. कभी आरजेडी की बंसी के नीचे जीतनराम मांझी थे, उपेंद्र कुशवाहा थे, मुकेश सहनी थे, कांग्रेस थी और वामदल भी थे लेकिन आज की तारीख में यह सभी बिखर चुके हैं. संभवत: राजनीति में जिस दाने को डालकर तेजस्वी यादव को इन सभी लोगों को एक साथ रखना था, उसको वो रख नहीं पाए. यही वजह है कि सियासत में उनके यहां छोटी मछली आ गई. वह बड़े गठबंधन की बात जरूर करते थे, लेकिन जरूरत की राजनीति ने बिहार में कुछ इस कदर पैर फैलाया कि जहां भी हाथ डाला गया, मामला छोटा ही निकला. कांग्रेस से गठबंधन को लेकर भी विवाद हुआ, मांझी से विवाद हुआ, सहनी अलग चले गए और वाम दल अपने तरीके की राजनीति कर रहे हैं. अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस सियासत को तेजस्वी यादव को करना था और मुद्दों की जिन मछली को पकड़ना था, वह तमाम चीजें उनके हाथ से निकल गई. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तेजस्वी यादव ने जिस बात को छेड़ा है, उसने उनकी राजनीति इस तरह फंस गई है कि मंच से उसका जवाब चाहे जिस रूप में दें लेकिन सियासत में उसका स्वरूप उन्हें ही खेलता दिख रहा है. यही वजह है कि जेडीयू कहने लगी है कि बड़ी मछली तेजस्वी के हाथ नहीं आने वाली है. छोटी ही मछली हाथ लगेगी, क्योंकि बड़ी राजनीति करने के लिए तेजस्वी यादव ने कुछ बड़ा किया ही नहीं. यही वजह है कि आज उनके घर के बड़े भी नाराज हैं.
कौन सा रंग दिखाएगी मछली?
बहरहाल, बिहार की सियासत में 2 सीटों पर होने वाला उपचुनाव नई राजनीति लिखेगा, यह तो तय है. अब जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा, यह तो जनता तय करेगी लेकिन सियासत में मछली और मछली वाली सियासत 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के बाद भी बिहार की राजनीति में जिंदा रहेगी यह बिल्कुल तय है, क्योंकि सियासत है. इसमें तालाब से निकाली जाने वाली मछली भले मर जाए, लेकिन जब वह सियासी मछली बन जाए तो वह सदियों तक जिंदा रहती है और सियासत में कहानी भी कहती है. अब पकड़ी तो सियासी मछली तेजस्वी यादव ने है, लेकिन सियासत में मछली कौन सा रंग दिखाएगी, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा और मतदान के उस स्वरूप में भी जिसमें जाति और जीत दोनों बिहार के पर्याय हैं. अब देखना है कि इसमें से तेजस्वी के हाथ लगता क्या है.