लखनऊ : रामनगरी के पश्चिमी-दक्षिणी कोने पर स्थित रानोपाली में उदासीन ऋषि संगत आश्रम है. कहा जाता है कि वन गमन से पहले श्रीराम ने रानोपाली में ही राजसी वस्त्र त्यागकर वनवासी वेश धारण किया था. जहां आज यह आश्रम है, वहां महारानी कैकेई का निजी भवन था. त्रेता में श्रीराम इसी महल से पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन के लिए रवाना हुए थे.

यहां से जुड़ी एक कहानी और है. कहा जाता है कि 17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रानोपाली में बाबा संगत बख्श ने धूनी रमाई थी. जब आश्रम में बाबा के डेरा डालने की खबर तत्कालीन नवाब आसिफुद्दौला तक पहुंची तो उन्होंने अपने सैनिकों को सतर्क कर दिया. नवाब ने सैनिकों को बाबा को वहां से हटाने का आदेश दिया. आदेश के बाद जब-जब नवाब आसिफुद्दौला के सैनिक आश्रम में पहुंचे तो उन्हें बाबा संगत बख्श का सिर और धड़ अलग दिखाई देता. सैनिकों ने यह जानकारी नवाब आसिफुद्दौला को दी.
नवाब ने दी थी एक हजार बीघा जमीन
जब यह घटनाक्रम चल रहा था, तब नवाब की बेगम की तबीयत ज्यादा खराब थी. नवाब आसिफुद्दौला इस कारण परेशान रहता था. इसके बाद नवाब आसिफुद्दौला खुद बाबा के आश्रम में पहुंच गया. नवाब के पहुंचते ही बाबा संगत बख्श ने कहा कि तुम्हें मुझसे क्या परेशानी है. अपनी एक समस्या से निपट नहीं पा रहे हो और हमें हटाने के लिए परेशान हो. बाबा की बात को सुनते नवाब नतमस्तक हो गया. इसके बाद बाबा के आशीर्वाद से बेगम स्वस्थ हो गई. इस चमत्कार के बाद नवाब ने एक हजार बीघा जमीन आश्रम को दे दी. इस आदेश को नवाब ने ताम्रपत्र के जरिये भी जारी किया था. यह ताम्रपत्र अभी भी आश्रम के पास है.
सरकार को दान में दी थी 45 सौ बीघा जमीन
बाबा संगत बख्श के बाद बाबा माधवराम और बाबा नारायण राम ने पूरे देश में इस आश्रम की शाखाएं स्थापित कीं. तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की मां भी उनकी शिष्या थीं. सन 1912 में बाबा केशव राम आश्रम के महंत बने और 1923 तक आश्रम के प्रमुख रहे. उन्होंने तत्कालीन जिलाधिकारी के.के. नैयर को 45 सौ बीघा जमीन दे दी थी. मगर बाद में प्रशासन ने जमीन आश्रम को लौटा दी.
बाबा कल्याण दास ने दिया आश्रम को भव्य रूप
सन् 2005 अमरकंटक के प्रसिद्ध संत तपस्वी कल्याण दास को आश्रम के महंत दामोदरदास ने महंती सौंप दी. बाबा कल्याण दास ने आश्रम का पुनर्निर्माण कराया, जो आज भव्यता का गवाह बना हुआ है. 2016 में कल्याण दास ने डॉ. भरत दास को आश्रम का महंत नियुक्त किया. महंत डॉ. भरत दास ने बताया कि बाबा संगत बख्श की समाधि की चौखट में लगे पत्थर में प्रसिद्ध इतिहासकार धनदेव का अभिलेख उकरा हुआ है, जो पाली लिपि में है. आश्रम परिसर में ही गुरुसर नामक का तालाब है. मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने वनगमन से पूर्व इस तालाब में स्नान किया था. त्रेता युग से ही भक्तों की श्रद्धा आश्रम से जुड़ी है.