भरतपुर. अमूमन काली मां की मूर्ति को रौद्र रूप में ही देखा जाता है, लेकिन राजस्थान के भरतपुर जिले में काली मां का एक ऐसा मंदिर है, जिसमें काली मां बाल स्वरूप में विराजमान हैं. काली मां का यह मंदिर भरतपुर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है. माना जाता है कि यह मंदिर भरतपुर की स्थापना से भी प्राचीन है. इतना ही नहीं काली मां की यह मूर्ति भाव भंगिमा भी बदलती रहती है.
शहर के काली बगीची क्षेत्र में स्थित काली मां का कई वर्ष पुराना मंदिर है. मंदिर के पुजारी सुभाष चंद्र शर्मा ने बताया कि मंदिर में काली मां की प्राचीन मूर्ति स्थापित है. मूर्ति की खास बात यह है कि यह बाल स्वरूप में है, जबकि काली मां की मूर्ति अधिकतर रौद्र रूप में ही देखी जाती है. पुजारी सुभाष चंद्र शर्मा का दावा है कि काली मां की मूर्ति बाल स्वरूप शायद ही कहीं देखी जाती हैं.
भरतपुर की स्थापना से भी प्राचीन : पुजारी शर्मा ने बताया कि मूर्ति का असली समय तो किसी को नहीं पता, लेकिन पूर्वजों की मान्यता है कि यह मूर्ति भरतपुर की स्थापना से भी पहले की और सैकड़ों वर्ष प्राचीन है. यह काले पत्थर से निर्मित मूर्ति है, जो कि मंदिर में बहुत ही प्राचीन बरगद के वृक्ष के नीचे स्थापित है. मूर्ति का भी असली समय नहीं पता, लेकिन किदवंतिया हैं कि मुस्लिम शासकों के समय में हिंदू मंदिरों और मूर्तियों को खंडित किया जा रहा था. उस समय किसी व्यक्ति ने इस मूर्ति को खंडित होने से बचाने के लिए बरगद के पेड़ के नीचे जमीन में छुपाया था. ये बाद में खुदाई के समय यहां मिली.
बदलती है भाव भंगिमा : पुजारी शर्मा ने बताया कि इस मूर्ति की खास बात यह है कि मूर्ति के चेहरे को अलग-अलग दिशा से देखने पर यह अलग-अलग रूप में नजर आती है. मूर्ति का चेहरा भाव भंगिमा बदलता हुआ दिखता है. पुजारी ने बताया कि नवरात्र के अवसर पर यहां पर विशेष आयोजन होते हैं. श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है. इसी मंदिर की वजह से क्षेत्र को काली बगीची क्षेत्र के नाम से भी पहचाना जाता है. श्रद्धालुओं में काली मां के प्रति अपार श्रद्धा है और लोगों की यहां हर मन्नत पूरी होती है.