नई दिल्ली : जर्मनी के नौसेना प्रमुख ने यूक्रेन और रूस संबंधी टिप्पणियों के कारण इस्तीफा दे दिया. वाइस-एडमिरल के-अचिम ने भारत में मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस एंड स्ट्रेटेजिक एनालिसिस (MPIDSA) में एक बयान दिया था. उनकी टिप्पणी के बाद अंतरराष्ट्रीय हंगामा हुआ.
वाइस एडमरिल के अचिम शोएनबैक ने भारत में आयोजित एक समारोह में शुक्रवार को कहा था कि रूस ने 2014 में जिस क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा किया था, वह यूक्रेन को वापस नहीं मिलेगा. उन्होंने कहा था कि रूस को चीन के खिलाफ एक ही पक्ष रखना महत्वपूर्ण है. उन्होंने साथ ही कहा था कि रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन 'सम्मान' के हकदार हैं.
पुतिन से जुड़ा बयान देने के बाद वाइस एडमरिल के अचिम शोएनबैक का चौंकाने वाला इस्तीफा इस बात का संकेत है कि नाटो और पश्चिमी देश रूस के खिलाफ अपना रुख सख्त कर रहे हैं. बता दें कि रूस ने पिछले कुछ हफ्तों में यूक्रेन के साथ लगी सीमा पर अपने एक लाख सैनिकों को तैनात किया है. रूस की इस पहल को यूक्रेन पर आक्रमण करने के इरादे (intention to invade Ukraine) के रूप में देखा जा रहा है.
बता दें कि यूक्रेन सोवियत गणराज्य (Soviet republic of USSR) से अलग होने के बाद अलग राष्ट्र बना है. रूस और यूक्रेन के संबंध 2014 के बाद बिगड़ने लगे जब, रूस ने यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर आक्रमण और कब्जा किया.
जर्मनी फिलहाल पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल की उस नीति को संशोधित करने का प्रयास कर रहा है, जिसमें रूस पर बहुत सख्त न होने का रवैया अपनाया गया था. जर्मनी के भीतर, चांसलर ओलाफ स्कोल्ज के नेतृत्व वाली सेंटर लेफ्ट सरकार, रूस से संबंधित मानवाधिकारों के मुद्दों से बेहद चिंतित है. ओलाफ स्कोल्ज की सरकार उदारवादियों और ग्रीन्स पार्टियों से ज्यादा प्रभावित है.
नाटो और यूरोपीय संघ रूस द्वारा संभावित आक्रमण पर कैसी प्रतिक्रिया दें ? दोनों पक्षों में इस पर दृढ़ विभाजन है. जर्मन नौसेना प्रमुख का इस्तीफा उस विचार का दबदबा दिखाता है, जो रूस के खिलाफ मजबूत कार्रवाई चाहता है.
गौरतलब है कि बुधवार को, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (US President Joe Biden) ने नाटो रैंकों में एकता की कमी (lack of unity in the NATO ranks) को स्वीकार किया था. उन्होंने कहा था, नाटो में सभी देशों का एक ही पृष्ठ पर रहना बहुत महत्वपूर्ण है. मैं यही करने में काफी समय बिता रहा हूं. देशों के बीच मतभेद हैं. बाइडेन ने कहा था कि नाटो में इस बात पर मतभेद हैं कि देश क्या करने को तैयार हैं ? यह इस पर निर्भर करता है कि वास्तव में क्या होता है.
नाटो का विरोध करने के मामले में रूस सबसे आगे दिख रहा है. रूस के नाटो विरोध से एक नए शीत युद्ध की शुरुआत का मार्ग प्रशस्त होने की आशंका है. बता दें कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ पहला शीत युद्ध (1947-1991) दुनिया दो हिस्सों में बंटती दिखी. एक हिस्सा वह था जिसका नेतृत्व पूर्व या सोवियत ब्लॉक कर रहा था, दूसरा अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी ब्लॉक था.
नाटो समेत अधिकांश पश्चिमी देशों के खिलाफ जाते हुए (against the grain) जर्मनी के नौसेना प्रमुख वाइस एडमरिल के अचिम शोएनबैक ने शुक्रवार को घोषणा की थी कि क्रीमिया पर रूस का कब्जा अच्छी घटना है. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 'सम्मान के हकदार' हैं.
गौरतलब है कि जर्मनी की इंडो-पैसिफिक रणनीति (Germany's Indo-pacific strategy) पर MPIDSA में एक भाषण देते हुए, जर्मन नौसेना प्रमुख ने कहा था, क्या रूस वास्तव में देश को एकीकृत करने के लिए यूक्रेन पर कब्जा करना चाहता है ? ऐसा नहीं है. यह बकवास है.' (Does Russia really wants small and tiny strip of Ukraine soil, integrate the country. No, this is nonsense.)
जर्मन नौसेना प्रमुख ने कहा था, शायद पुतिन दबाव डाल रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि वह ऐसा कर सकते हैं. वह यूरोपीय संघ की राय को विभाजित करते हैं. पुतिन वास्तव में सम्मान चाहते हैं. मेरी राय में किसी को सम्मान देना कोई बड़ी कीमत चुकाना नहीं है. उसे वह सम्मान देना आसान है. शायद वे सम्मान के हकदार भी हैं.
उन्होंने कहा था, भारत और जर्मनी को भी रूस की जरूरत है. हमें चीन के खिलाफ रूस की जरूरत है. जर्मन नेवी चीफ ने कहा था कि भले ही चीन में लोकतंत्र न हो, लेकिन द्विपक्षीय साझेदार के रूप में रूस के पास चीन के रूप में एक मौका होगा. रूस भारत और जर्मनी के एक साथ रहने से रूस को चीन से दूर रखने में मदद मिलेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि चीन को रूस के संसाधनों की जरूरत है.
जर्मन नेवी चीफ के इस्तीफे के बाद सियासी और सामरिक घटनाक्रमों के मद्देनजर नाटो में एकजुटता की स्पष्ट कमी दिखती है. इसके अलावा, जो बात वास्तव में इस बार अलग है वह रूस और चीन के बीच सामान्य उद्देश्यों का होना है. रूस और चीन स्पष्ट रूप से पश्चिम के खिलाफ हैं, दोनों के उद्देश्य एक समान हैं. इससे नए शीत युद्ध की आशंका में घातक आयाम जुड़ सकता है.
गौरतलब है कि भारत दौरे पर शोएनबैक के बयानों से यूक्रेन में नाराजगी देखी गई. यूक्रेन ने अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए जर्मनी के राजदूत को तलब किया था. शोनएबैक को बर्लिन में भी आलोचनाएं झेलनी पड़ीं. शोएनबैक ने शनिवार देर रात इस्तीफा देते हुए कहा कि वह 'बिना सोचे-समझे दिए गए अपने बयानों' के कारण जर्मनी और उसकी सेना को और नुकसान होने से बचाना चाहते हैं. जर्मन नौसेना ने एक बयान में बताया कि रक्षा मंत्री क्रिस्टीन लैम्ब्रेक्ट ने शोएनबैक का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है और नौसेना के उप प्रमुख को अंतरिम प्रमुख बना दिया है.
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जर्मन सरकार ने जोर देकर कहा कि वह यूक्रेन पर रूसी सैन्य खतरे के मामले पर अपने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) सहयोगियों के साथ एकजुट होकर खड़ा है. उसने चेतावनी दी कि यदि रूस यूक्रेन में कोई सैन्य कार्रवाई करता है तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी होगी, लेकिन अन्य नाटो देशों के विपरीत बर्लिन ने कहा कि वह यूक्रेन को घातक हथियारों की आपूर्ति नहीं करेगा, क्योंकि वह तनाव बढ़ाना नहीं चाहता है.
(एजेंसी इनपुट)