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कैप्टन राम सिंह ठाकुर : स्वतंत्रता संग्राम की यज्ञाग्नि में दी आहुति, 'जन-गण-मन...' को किया संगीतबद्ध

अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजाद कराने में असंख्य वीर सपूतों ने सर्वोच्च बलिदान दिया है. ऐसे ही एक सपूत हैं हिमाचल में जन्मे राम सिंह ठाकुर. वे महज 14 साल की उम्र में अंग्रेजों की गोरखा राइफल्स में शामिल हो गए थे. भारत के राष्ट्रगान, 'जन गण मन...' की धुन तैयार करने का श्रेय भी राम सिंह ठाकुर को ही जाता है. आपको बता दें कि राम सिंह ठाकुर का उत्तराखंड से भी नाता है. माना जाता है कि उनके दादा 1890 में उत्तराखंड से निकलकर हिमाचल के धर्मशाला में बस गए थे. जानिए स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह ठाकुर की शौर्य गाथा...

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Published : Sep 19, 2021, 5:08 AM IST

Updated : Sep 19, 2021, 10:29 AM IST

कैप्टन राम सिंह ठाकुर
कैप्टन राम सिंह ठाकुर

धर्मशाला : भारत के कई वीर सपूतों ने सालों तक चली आजादी की लड़ाई को अपने लहू से सींचा. किसी ने अहिंसा का रास्ते पर चलकर जंग लड़ी, किसी ने गोली और बंदूक, लेकिन जरूरी नहीं की जंग हमेशा हथियारों से ही लड़ी जाए. भारत के ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने हाथ से बंदूक छोड़कर वायलिन थामी और संगीत को अपना हथियार बनाया. इस वीर सपूत ने देश के बच्चे बच्चे की रगों में जोश भर दिया. ये हथियार चलाने में भी माहिर थे और संगीत में भी माहिर थे. इनका नाम था कैप्टन राम सिंह ठाकुर.

जब भी भारत के लोग राष्ट्रगान की धुन सुनकर सावधान खड़े होते हैं, तो हमें इसे लिखने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर की याद आती है, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हमारे राष्ट्रगान 'जन गण मन...' की धुन, हिमाचल प्रदेश में जन्मे एक गोरखा राम सिंह ठाकुर ने तैयार की थी.

कैप्टन राम सिंह ठाकुर के जीवन पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ठाकुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. संगीत से उन्हें खासा लगाव था, लेकिन राष्ट्र गान की धुन के रचयिता देश तो छोड़िए आज हिमाचल में ही उपेक्षित और गुमनाम हैं. गुमनामी के इस घुप अंधेरे में ना तो प्रदेश सरकार ने अंदर झांकने की कोशिश की और ना ही प्रदेश सरकार.

धर्मशाला के खनियारा में हुआ जन्म
15 अगस्त, 1914 को धर्मशाला के खनियारा में जन्मे राम सिंह का बचपन धौलाधार आंचल में बसे खनियारा गांव में बीता. बचपन से ही राम सिंह को संगीत का शौक था और उनके नानाजी नाथू चंद ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. बचपन में जानवर के सींग से बने वाद्य यंत्र से सुर निकालने वाले राम सिंह मात्र 14 साल की उम्र में अंग्रेजों की गोरखा राइफल्स में शामिल हो गए थे. यहां भी उन्होंने अपने संगीत के शौक को नहीं छोड़ा. सेना में भी उन्होंने लगातार संगीत सीखा.

कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)
कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)

द्वितीय विश्व युद्द में जापानी सेना ने बनाया बंदी
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि सेना में मशहूर ब्रिटिश संगीतकार, हडसन एंड डेनिश से ब्रास बैंड, स्ट्रिंग बैंड और डांस बैंड की भी मैंने ट्रेनिंग ली. कैप्टन रोज से वायलिन सीखा. अगस्त, 1941 में उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना के साथ मलय और सिंगापुर भेजा गया. यहां पर जापानी सेना ने युद्ध के दौरान भारतीय ब्रिटिश सेना के बहुत से सिपाहियों को बंदी बना लिया. इन सिपाहियों में लगभग 200 सिपाही भारतीय थे, जिनमें से राम सिंह भी एक थे.

महात्मा गांधी के साथ कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)
महात्मा गांधी के साथ कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)

रिहाई के बाद नेता जी से संपर्क
1942 बंदी बनाये गये भारतीय सिपाहियों की जापान से रिहाई के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया. राम सिंह भी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. यहीं पर राम सिंह की मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई. जब वो पहली बार नेताजी से मिले, तो उन्होंने उनके सम्मान में मुमताज हुसैन के लिखे एक गीत को अपनी धुन देकर तैयार किया. ये गीत था...

कैप्टन राम सिंह ठाकुर की प्रतिमा (फाइल फोटो)
कैप्टन राम सिंह ठाकुर की प्रतिमा (फाइल फोटो)

सुभाष जी, सुभाष जी, वो जाने हिन्द आ गये

है नाज जिस पे हिन्द को वो जाने हिन्द आ गये...

नेता जी ने दिया था अपना वायलिन

सुभाष चंद्र बोस ने उनकी संगीत समझ से प्रभावित होकर उन्हें अपना पंसदीदा वायलिन दे दिया. उन्होंने राम सिंह को ये जिम्मेदारी दी कि वह ऐसे गीत बनाएं जो उनकी सेना का हौसला बनाये रखे और देश लोगों को दिलों में जोश भर दे. इसके बाद पंडित वंशीधर शुक्ल ने कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा गीत लिखा. इसकी धुन राम सिंह ठाकुर ने ही तैयार की. आज भी ये गीत देश के लोगों में जोश भर देता है. इसके अलावा भी कैप्टन राम सिंह ने कई और गीतों को संगीतबद्ध किया.

आजाद हिंद के कौमी तराने को दिया संगीत
सैकड़ों गीतों में एक विशिष्ट है, जिसकी धुन कैप्टन राम सिंह ने तैयार की. आज भी यह रचना हर भारतीय की जुबां पर है. यह हमारा राष्ट्रगान- 'जन-गण-मन...' है. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने टैगोर की एक बंगाली कविता 'भारतो भाग्यो-बिधाता' का हिंदी में अनुवाद करने की जिम्मेदारी मुमताज हुसैन और आईएनए के कर्नल आबिद हसन के कंधों पर सौंपी थी. इस कविता को हिंदी में 'शुभ-सुख चैन की बरखा बरसे' गीत का रूप दिया. इस गीत को कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने संगीत दिया. यह गीत आजाद हिन्द फौज का कौमी गीत भी बना.

15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर बजाई थी धुन
आजादी के मौके पर पंडित जवाहर लाल नेहरु ने 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. इस मौके पर कैप्टन राम सिंह के नेतृत्व में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) के आर्केस्ट्रा ने लाल किले पर शुभ सुख चैन की बरखा बरसे...गीत की धुन बजाई.

लखनऊ में हुआ देहांत
बाद में इसी धुन से 'जन गण मन...' को भी संगीतबद्ध किया गया. ऐसे में यह एक गौरवपूर्ण तथ्य है कि हमारे राष्ट्रगान की धुन कैप्टन राम सिंह ने बनाई थी. सेना से रिटायरमेंट के बाद यूपी सरकार ने सम्मान के तौर पर उन्हें पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर भर्ती किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने कैप्टन राम सिंह को आजीवन लखनऊ में ही रहने के लिए बंगला आवंटित किया था. 2002 में कैप्टन राम सिंह ने लखनऊ में ही अंतिम सांस ली. दुनिया को अलविदा कहने से पहले कैप्टन राम सिंह भारत के राष्ट्रगान को अमिट धुन में पिरो दिया.

आजादी के अमृत महोत्सव से जुड़ी अन्य खबरें भी पढ़ें-

नहीं मिला सम्मान
कैप्टन राम सिंह ठाकुर को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे. उनके पैतृक गांव में उनका पुश्तैनी घर आज भी है. इसे उनके रिश्तेदार संभाल रहे हैं, लेकिन इसे विडंबना ही है कि इतने बड़े स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र गान को धुन देने वाले राम सिंह ठाकुर का यहां एक अदद स्मारक तक नहीं है. हालांकि, गोरखा एसोसिएशन पंजाब हिमाचल इस और प्रयास कर रहा है. गोरखा एसोसिएशन पंजाब हिमाचल के अध्यक्ष रविंद्र सिंह राणा ने कहा कि राम सिंह ठाकुर गोरखा समुदाय का गौरव हैं. इनका स्मारक बनाने के लिए वह प्रयासरत हैं.

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जब भी भारत के लोग राष्ट्रगान की धुन सुनकर सावधान खड़े होते हैं, तो हमें इसे लिखने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर की याद आती है, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि हमारे राष्ट्रगान 'जन गण मन...' की धुन, हिमाचल प्रदेश में जन्मे एक गोरखा राम सिंह ठाकुर ने तैयार की थी.

कैप्टन राम सिंह ठाकुर के जीवन पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ठाकुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. संगीत से उन्हें खासा लगाव था, लेकिन राष्ट्र गान की धुन के रचयिता देश तो छोड़िए आज हिमाचल में ही उपेक्षित और गुमनाम हैं. गुमनामी के इस घुप अंधेरे में ना तो प्रदेश सरकार ने अंदर झांकने की कोशिश की और ना ही प्रदेश सरकार.

धर्मशाला के खनियारा में हुआ जन्म
15 अगस्त, 1914 को धर्मशाला के खनियारा में जन्मे राम सिंह का बचपन धौलाधार आंचल में बसे खनियारा गांव में बीता. बचपन से ही राम सिंह को संगीत का शौक था और उनके नानाजी नाथू चंद ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया. बचपन में जानवर के सींग से बने वाद्य यंत्र से सुर निकालने वाले राम सिंह मात्र 14 साल की उम्र में अंग्रेजों की गोरखा राइफल्स में शामिल हो गए थे. यहां भी उन्होंने अपने संगीत के शौक को नहीं छोड़ा. सेना में भी उन्होंने लगातार संगीत सीखा.

कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)
कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)

द्वितीय विश्व युद्द में जापानी सेना ने बनाया बंदी
मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि सेना में मशहूर ब्रिटिश संगीतकार, हडसन एंड डेनिश से ब्रास बैंड, स्ट्रिंग बैंड और डांस बैंड की भी मैंने ट्रेनिंग ली. कैप्टन रोज से वायलिन सीखा. अगस्त, 1941 में उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना के साथ मलय और सिंगापुर भेजा गया. यहां पर जापानी सेना ने युद्ध के दौरान भारतीय ब्रिटिश सेना के बहुत से सिपाहियों को बंदी बना लिया. इन सिपाहियों में लगभग 200 सिपाही भारतीय थे, जिनमें से राम सिंह भी एक थे.

महात्मा गांधी के साथ कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)
महात्मा गांधी के साथ कैप्टन राम सिंह ठाकुर की एक दुर्लभ तस्वीर (फाइल फोटो)

रिहाई के बाद नेता जी से संपर्क
1942 बंदी बनाये गये भारतीय सिपाहियों की जापान से रिहाई के बाद नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया. राम सिंह भी आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए. यहीं पर राम सिंह की मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई. जब वो पहली बार नेताजी से मिले, तो उन्होंने उनके सम्मान में मुमताज हुसैन के लिखे एक गीत को अपनी धुन देकर तैयार किया. ये गीत था...

कैप्टन राम सिंह ठाकुर की प्रतिमा (फाइल फोटो)
कैप्टन राम सिंह ठाकुर की प्रतिमा (फाइल फोटो)

सुभाष जी, सुभाष जी, वो जाने हिन्द आ गये

है नाज जिस पे हिन्द को वो जाने हिन्द आ गये...

नेता जी ने दिया था अपना वायलिन

सुभाष चंद्र बोस ने उनकी संगीत समझ से प्रभावित होकर उन्हें अपना पंसदीदा वायलिन दे दिया. उन्होंने राम सिंह को ये जिम्मेदारी दी कि वह ऐसे गीत बनाएं जो उनकी सेना का हौसला बनाये रखे और देश लोगों को दिलों में जोश भर दे. इसके बाद पंडित वंशीधर शुक्ल ने कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा गीत लिखा. इसकी धुन राम सिंह ठाकुर ने ही तैयार की. आज भी ये गीत देश के लोगों में जोश भर देता है. इसके अलावा भी कैप्टन राम सिंह ने कई और गीतों को संगीतबद्ध किया.

आजाद हिंद के कौमी तराने को दिया संगीत
सैकड़ों गीतों में एक विशिष्ट है, जिसकी धुन कैप्टन राम सिंह ने तैयार की. आज भी यह रचना हर भारतीय की जुबां पर है. यह हमारा राष्ट्रगान- 'जन-गण-मन...' है. नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने टैगोर की एक बंगाली कविता 'भारतो भाग्यो-बिधाता' का हिंदी में अनुवाद करने की जिम्मेदारी मुमताज हुसैन और आईएनए के कर्नल आबिद हसन के कंधों पर सौंपी थी. इस कविता को हिंदी में 'शुभ-सुख चैन की बरखा बरसे' गीत का रूप दिया. इस गीत को कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने संगीत दिया. यह गीत आजाद हिन्द फौज का कौमी गीत भी बना.

15 अगस्त, 1947 को लाल किले पर बजाई थी धुन
आजादी के मौके पर पंडित जवाहर लाल नेहरु ने 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. इस मौके पर कैप्टन राम सिंह के नेतृत्व में आईएनए (इंडियन नेशनल आर्मी) के आर्केस्ट्रा ने लाल किले पर शुभ सुख चैन की बरखा बरसे...गीत की धुन बजाई.

लखनऊ में हुआ देहांत
बाद में इसी धुन से 'जन गण मन...' को भी संगीतबद्ध किया गया. ऐसे में यह एक गौरवपूर्ण तथ्य है कि हमारे राष्ट्रगान की धुन कैप्टन राम सिंह ने बनाई थी. सेना से रिटायरमेंट के बाद यूपी सरकार ने सम्मान के तौर पर उन्हें पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर भर्ती किया. उत्तर प्रदेश सरकार ने कैप्टन राम सिंह को आजीवन लखनऊ में ही रहने के लिए बंगला आवंटित किया था. 2002 में कैप्टन राम सिंह ने लखनऊ में ही अंतिम सांस ली. दुनिया को अलविदा कहने से पहले कैप्टन राम सिंह भारत के राष्ट्रगान को अमिट धुन में पिरो दिया.

आजादी के अमृत महोत्सव से जुड़ी अन्य खबरें भी पढ़ें-

नहीं मिला सम्मान
कैप्टन राम सिंह ठाकुर को वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे. उनके पैतृक गांव में उनका पुश्तैनी घर आज भी है. इसे उनके रिश्तेदार संभाल रहे हैं, लेकिन इसे विडंबना ही है कि इतने बड़े स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र गान को धुन देने वाले राम सिंह ठाकुर का यहां एक अदद स्मारक तक नहीं है. हालांकि, गोरखा एसोसिएशन पंजाब हिमाचल इस और प्रयास कर रहा है. गोरखा एसोसिएशन पंजाब हिमाचल के अध्यक्ष रविंद्र सिंह राणा ने कहा कि राम सिंह ठाकुर गोरखा समुदाय का गौरव हैं. इनका स्मारक बनाने के लिए वह प्रयासरत हैं.

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Last Updated : Sep 19, 2021, 10:29 AM IST
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