नर्मदापुरम। सतपुड़ा के घने जंगलों का खजाना जब तब सामने आता रहा है. वैसे टाइगर रिजर्व के साथ बाघों का ये इलाका प्री हिस्टोरिक पीरियड का खजाना भी भीतर छिपाए हुए हैं. इस बार एमपी के नर्मदापुरम जिले के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व इलाके में प्री हिस्टोरिक रॉक पेंटिग्स मिली हैं. असल में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में गिनती वन्य प्राणियों कि की जा रही थी, लेकिन इसी गणना के दौरान वनरक्षकों के हाथ ये खजाना लग गया. एसटीआर के करीब 80 स्थानों पर इस प्रकार के शैल चित्र देखने को मिले हैं. एक पहाड़ी पर ये रॉक पेंटिग दिखाई दी.
बहुत स्पष्ट दिखाई दे रही इस रॉक पेंटिग में उस दौर का मानव हाथों में अस्त्र शस्त्र लिए आदिमानव की बारात सी दिखाई देती है. इसके अलावा कुछ रॉक पेंटिंग्स में वन्य प्राणियों के साथ जिराफ जैसी आकृति भी दिखाई दे रही है. टाइगर रिजर्व के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक इस एरिया में 100 से भी ज्यादा रॉक पेंटिग हैं, लेकिन टाइगर जोन होने और जिन गुफाओं कंदराओं में रॉक पेंटिग बनी है. वहां का रास्ता बेहद दुर्लभ होने की वजह से ये निगाह में नहीं आ पाती. हालांकि अब चूरना की पहाड़ी पर मिली इस रॉक पेंटिंग के बाद अब लग रहा है प्री हिस्टोरिक पीरियड के इतिहास के कई पन्ने और खुलेंगे.
वन्य प्राणियों की काउंटिग ,हाथ लगी रॉक पेटिंग: असल में सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के इस इलाके में वन्य प्राणियों की काउंटिग हो रही है. इसी काउंटिग के दौरान ये शैल चित्र मिले. शैल चित्र करीब दस हजार साल पुराने होने के बावजूद इनका एक एक रेखांकन साफ दिखाई दे रहा है. कई शैल चित्रों में जानवर उकेरे गए हैं. एक रॉक पेंटिग में युध्द की सी तस्वीर है. जिसमें उस दौर के मानव को अस्त्र शस्त्र के साथ उकेरा गया है. एक रॉक पेंटिंग में गजराज भी दिखाई दे रहे हैं. जानकारी के मुताबिक टाइगर जोन हो जाने के बाद से ही इन रॉक पेटिंगिस को तलाश पाना मुश्किल हो गया है. पहले ये ग्रामीण हिस्सा था तब इतना मुश्किल नहीं था. हालांकि अब भी जहां रॉक पेंटिग्स बनी है वो बेहद दुर्लभ इलाका है.
रॉक पेटिंग में आदि मानव का जीवन: इन रॉक पेंटिग्स के जरिए प्रागैतिहासिक काल के मानव के जीवन की झलक दिखाई देती है. किस तरह से ये मानव भाला, बरछी, तीर और कमान वन्य पशुओं से बचने हमेशा साथ में लेकर चलता था. जो बारात का चित्र है, वो संभवत शिकार को जा रहे लोगों का ही है. उस समय के मानव के लिए कौतुहल वन्य जीव भी रहे होंगे. लिहाजा इन भित्ति चित्रों में हाथी से लेकर जिराफ के तरह की आकृति और एक जगह बाघ जैसी आकृति का वन्य जीव उकेरा गया है.
10 हजार से 50 हजार साल पुरानी हैं ये रॉक पेटिंग: प्राध्यापक और इतिहास की व्याख्याता डॉ हंसा व्यास के मुताबिक सतपुड़ा क्षेत्र में बायसन शेर वन्य मिलते हैं. जैव विविधता देखने को मिलती है. व्यास के मुताबिक चूरना एतिहासिक पुरात्त्विक स्थल है. हां पुरातात्विक शैल चित्रों की समृध्द श्रंखला विद्यमान है. सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के पचमढ़ी होशंगाबाद इस पूरे क्षेत्र को मिला लें तो लगभग 110 केंद्र ऐसे हैं. जहां बहुत सारे शैल चित्र देखने मिलते हैं. पचमढ़ी की पहाड़ियों में भी यह आकृतियां देखने को मिलती हैं, पूरे एसटीआर क्षेत्र वन्य जीव बायोडायवर्सिटी के बारे में हमें बताते हैं. यहां बहुत सारी वनस्पतियां और जड़ी बूटियां भी पाई जाती है.
आदम गढ़ की पहाड़ियों पर जिराफ की आकृति देखने मिलती है. जैव विविधता भी होती है. शैल चित्रों के प्रागैतिहिक अधिकतर चित्र शिकार करते हुए है. भोजन का साधन शिकार करते हुए नृत्य करते हुए दिखाई देते हैं, जो आदिवासी से मिलते जुलते हैं. एसडीआर का क्षेत्र गोंड कोरकू के लिए जाना जाता है. कुछ आकृतियों को दखते हैं. आगे जानवर पीछे मानव आकृति है. शहद लेकर जाते भी दखाई देते हैं. प्रागैतिहासिक काल दस हजार से पचास साल तक का माना जाता है यानि इतने ही प्राचीन है चित्र है.
एसटीआर क्षेत्र गोंड और कोरकूओं के लिए फेमस: कई सारे शैल चित्र आज के समय के आदिवासी नृत्य से मिलते हैं. एसटीआर का पूरा क्षेत्र गोंड और कोरकूओं के लिए जाना जाता है. चित्रों को देखा जाए तो इन शैल चित्रों को गोंड और कोरकूओं के घरों के चित्र देखने को मिलते हैं. जो दीवारों पर सजे हुए दिखाई देते हैं. इतना ही नहीं कुछ आकृतियों में पशु आगे चल रहे हैं और पीछे मानव यह भी देखने मिलता है. जो उस समय के पशुपालन को दर्शाता है. एक भालू शहद लेता हुआ दिखाई दे रहा है. मानव आकृति बनी दिखाई दे रही है, वह स्त्री पुरुष अलग-अलग दिखाई दे रहे हैं. इससे पता चलता है की उस समय शहर मे मधुमक्खी पालन होता रहा होगा.
रिसर्च जारी है: एसटीआर के फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति ने बताया कि सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत अभी तक लगभग 80 से ऊपर स्थानों पर शैल चित्र आईडेंटिफाई किए गए हैं. वह पहले से ही यहां पर सूचीबद्ध कर रहे हैं. यहां पर पहले से लोगों ने रिसर्च किया है. हाल ही में और भी यहां पर रिसर्च कर रहे हैं. कई छोटी जगह पर भी इस प्रकार के शैल चित्र मिलते हैं. अधिकांश शैल चित्र पहले से आईडेंटिफाई हैं. यह इतना बड़ा घना जंगल है. यहां पर कई नई चीजें मिलती हैं.
यहां पढ़ें... |
उन्होंने बताया पार्क में इस प्रकार के एसटीआर क्षेत्र में शैल चित्र मिलते हैं. टूरिस्ट के रूप से यदि आप जाते हैं, तो पचमढ़ी के आसपास में कुछ जगहों पर शैल चित्र वहां पर भी देख सकते हैं. चूरना क्षेत्र के कई स्थानों पर भी शैल चित्र मिलते हैं. उन क्षेत्रों में अंदर नहीं जा सकते हैं.