ETV Bharat / bharat

उत्तराखंड : आपदा पीड़ितों को मुआवजा देने पर हाईकोर्ट सख्त, केंद्र और राज्य सरकार से मांगा जवाब - compensation to vicitims chamoli disaster

उत्तराखंड में हुई चमोली आपदा पीड़ितों को मुआवजा नहीं दिए जाने पर नैनीताल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है. दरअसल, इस आपदा में मृत लोगों के परिजनों को मुआवजा नहीं दिए जाने व मुआवजा देने के मानक तय न करने पर हाईकोर्ट ने यह सख्त रुख अख्तियार किया है.

नैनीताल हाईकोर्ट
नैनीताल हाईकोर्ट
author img

By

Published : Jun 30, 2021, 5:35 PM IST

नैनीताल : चमोली रैणी आपदा के मृतकों के परिजनों को मुआवजा ने दिए जाने पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार किया है. मृतकों के परिजनों को मुआवजा न देने व मुआवजा देने के मानक तय न करने पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है.

हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से मांगा जवाब

चमोली के रैणी गांव मे ग्लेशियर फटने के दौरान आई आपदा के दौरान घायल और मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा ना देने के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने सख्त रुख अपनाया है. साथ ही मामले में केंद्र सरकार समेत राज्य सरकार को अपना विस्तृत जवाब शपथ-पत्र के माध्यम से पेश करने के आदेश दिए हैं. वहीं, मामले में सुनवाई के दौरान NTPC के द्वारा कोर्ट में जवाब पेश कर कहा गया है कि सात फरवरी को आई आपदा के दौरान मृत और लापता 84 लोगों का मुआवजा सीजेएम गोपेश्वर के पास जमा करा दिया गया है.

राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी ने दायर की याचिका

बता दें कि अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी के द्वारा नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड के चमोली के रैणी गांव में फरवरी माह में ग्लेशियर फटने जैसी आपदा सामने आई थी. जिसमें कई लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हुए और राज्य सरकार के द्वारा अब तक किसी भी घायल व मृतक के परिवार को मुआवजा नहीं दिया गया है और ना ही राज्य सरकार के द्वारा मुआवजा वितरित करने के लिए मानक बनाए गए हैं.

सिस्टम पर उठ रहे सवाल

याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा क्षेत्र में काम कर रहे नेपाली मूल के श्रमिकों समेत गांव के श्रमिकों को मुआवजा देने के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं और राज्य सरकार के द्वारा अब तक मृत्यु प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किए गए हैं और ना ही मौत के आंकड़ों की पुष्टि की है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार की आपदा से निपटने के लिए सभी तैयारियां अधूरी हैं और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जो आपदा के आने से पहले उसकी सूचना दे सके.

मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र लगाने की मांग

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा अब तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है और 2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में कई अनियमितताएं हैं और राज्य सरकार के द्वारा 2014 से इन अनियमितताओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया गया. जिस वजह से चमोली के रैणी गांव में इतनी बड़ी आपदा आई. वहीं, उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट भी अब तक कार्य नहीं कर रहे हैं.

कार्रवाई की मांग

वहीं, याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि हाइड्रो प्रोजेक्ट डैम में कर्मचारियों के सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं. कर्मचारी को केवल हेलमेट और बूट दिए जाते हैं और कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई और ना ही कर्मचारियों के लिए कोई उपकरण मौजूद है. ताकि आपदा के समय में कर्मचारी अपनी जान बचा सके.

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि एनटीपीसी व कुंदन ग्रुप के ऋषि गंगा प्रोजेक्ट का नक्शा कंपनी के द्वारा आपदा के बाद उपलब्ध नहीं कराया गया, जिस वजह से राहत व बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लिहाजा, इन सभी के खिलाफ अपराधिक कार्रवाई भी होनी चाहिए.

पढ़ें : उत्तराखंड : ऋषि गंगा के उद्गम स्थल में मौजूद ग्लेशियर में आईं दरारें

सात फरवरी को आई थी आपदा

सात फरवरी रविवार को सुबह करीब 10.30 बजे के आस-पास रैणी गांव के ऊपर ग्लेशियर टूटा. इस हादसे के बाद से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में हिमस्खलन और बाढ़ के चलते आस-पास के इलाकों में तबाही मचनी शुरू हो गई. ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गया था. हादसे में कई लोगों की जान चली गई.

नैनीताल : चमोली रैणी आपदा के मृतकों के परिजनों को मुआवजा ने दिए जाने पर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार किया है. मृतकों के परिजनों को मुआवजा न देने व मुआवजा देने के मानक तय न करने पर हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से दो सप्ताह में जवाब मांगा है.

हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से मांगा जवाब

चमोली के रैणी गांव मे ग्लेशियर फटने के दौरान आई आपदा के दौरान घायल और मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा ना देने के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने सख्त रुख अपनाया है. साथ ही मामले में केंद्र सरकार समेत राज्य सरकार को अपना विस्तृत जवाब शपथ-पत्र के माध्यम से पेश करने के आदेश दिए हैं. वहीं, मामले में सुनवाई के दौरान NTPC के द्वारा कोर्ट में जवाब पेश कर कहा गया है कि सात फरवरी को आई आपदा के दौरान मृत और लापता 84 लोगों का मुआवजा सीजेएम गोपेश्वर के पास जमा करा दिया गया है.

राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी ने दायर की याचिका

बता दें कि अल्मोड़ा निवासी राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी के द्वारा नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड के चमोली के रैणी गांव में फरवरी माह में ग्लेशियर फटने जैसी आपदा सामने आई थी. जिसमें कई लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हुए और राज्य सरकार के द्वारा अब तक किसी भी घायल व मृतक के परिवार को मुआवजा नहीं दिया गया है और ना ही राज्य सरकार के द्वारा मुआवजा वितरित करने के लिए मानक बनाए गए हैं.

सिस्टम पर उठ रहे सवाल

याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार के द्वारा क्षेत्र में काम कर रहे नेपाली मूल के श्रमिकों समेत गांव के श्रमिकों को मुआवजा देने के लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं और राज्य सरकार के द्वारा अब तक मृत्यु प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किए गए हैं और ना ही मौत के आंकड़ों की पुष्टि की है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार की आपदा से निपटने के लिए सभी तैयारियां अधूरी हैं और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जो आपदा के आने से पहले उसकी सूचना दे सके.

मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र लगाने की मांग

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा अब तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों की मॉनिटरिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है और 2014 में रवि चोपड़ा की कमेटी द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया था कि उत्तराखंड में आपदा से निपटने के मामले में कई अनियमितताएं हैं और राज्य सरकार के द्वारा 2014 से इन अनियमितताओं की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया गया. जिस वजह से चमोली के रैणी गांव में इतनी बड़ी आपदा आई. वहीं, उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं लगे हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट भी अब तक कार्य नहीं कर रहे हैं.

कार्रवाई की मांग

वहीं, याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि हाइड्रो प्रोजेक्ट डैम में कर्मचारियों के सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं. कर्मचारी को केवल हेलमेट और बूट दिए जाते हैं और कर्मचारियों को आपदा से लड़ने के लिए कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई और ना ही कर्मचारियों के लिए कोई उपकरण मौजूद है. ताकि आपदा के समय में कर्मचारी अपनी जान बचा सके.

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि एनटीपीसी व कुंदन ग्रुप के ऋषि गंगा प्रोजेक्ट का नक्शा कंपनी के द्वारा आपदा के बाद उपलब्ध नहीं कराया गया, जिस वजह से राहत व बचाव कार्य में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. लिहाजा, इन सभी के खिलाफ अपराधिक कार्रवाई भी होनी चाहिए.

पढ़ें : उत्तराखंड : ऋषि गंगा के उद्गम स्थल में मौजूद ग्लेशियर में आईं दरारें

सात फरवरी को आई थी आपदा

सात फरवरी रविवार को सुबह करीब 10.30 बजे के आस-पास रैणी गांव के ऊपर ग्लेशियर टूटा. इस हादसे के बाद से ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदी में हिमस्खलन और बाढ़ के चलते आस-पास के इलाकों में तबाही मचनी शुरू हो गई. ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गया था. हादसे में कई लोगों की जान चली गई.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.