दंतेवाड़ा: दंतेवाड़ा जिले का नागफनी गांव ऐसा गांव है जहां कई वर्षों से नागपंचमी के दिन मेला लगता आया है. यहां नाग की पूजा की जाती है. इससे जुड़ी कई कहानियां यहां प्रचलित है. नागफनी गांव के नाग मंदिर में पूजा अर्चना करने और मेला देखने दूर दूर से लोग आते हैं.
दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर है नागफनी गांव: नागफनी गांव दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से तीस किलोमीटर दूर है. गांव का नाम नागफनी होने की वजह से यहां रहने वाले अधिकांश लोगों का सरनेम नाग है. पूरे गांव में सिर्फ एक मंदिर है. वह भी नाग देवता का मंदिर है. जिसमें यहां के निवासी पूजा अर्चना करते हैं.
सांपों से यहां के लोगों को विशेष लगाव: यहां के लोगों को सांप से विशेष लगाव है. नागपंचमी पर यहां विशाल मेला लगता है. जिसमें आस पास के 36 गांवों के लोग हिस्सा लेते हैं. सभी अपने साथ देवी देवता का प्रतीक चिन्ह लेकर आते हैं. नाग मंदिर की पूजा गांव का अटामी परिवार करता है. मंदिर के प्रमुख पुजारी प्रमोद अटामी बताते हैं कि "उनके उपनाम अटामी का आशय लंबी पूछ वाला या लंबा जीव से है. अर्थात सर्प ही अटामी है. अटामी परिवार नागफनी गांव के अलावा आसपास के दर्जनों गांव में निवास करते हैं"
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नागफनी गांव बारसूर के नजदीक: नागफनी गांव बारसूर के नजदीक है. बारसूर वही क्षेत्र है जहां कभी नागवंशी शासकों का राज चलता था. नाग वंश का शासन बस्तर में दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक था. बस्तर में आज भी नागों की बहुत सी प्रतिमायें एवं मंदिर हैं. जो कि तत्कालीन छिंदक नागों के शासन में निर्मित किए गए थे. नागफनी गांव के नाग देवता मंदिर के पास दो-तीन मंदिरों के अवशेष भी बिखरे पड़े हैं. एक मंदिर के अवशेष पर ग्रामीणों ने एक मंदिर बनाया है. जिसमें नाग देवता की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित हैं. इसके अलावा बारसूर के सिंगराज तालाब में नागदेवता की खंडित प्रतिमा आज भी स्थित है. दंतेवाड़ा, समलूर, भैरमगढ़ एवं बारसूर में भी नाग प्रतिमाएं मिलती हैं.
श्रद्धालुओं की मनोकामना होती है पूरी: पुजारी प्रमोद अटामी बताते हैं कि यहां जो भी श्रद्धालु सोमवार के दिन नाग मंदिर में आकर मनोकामना मांगते हैं. वह जरूर पूरी होती है. इसलिए नाग पंचमी के दिन दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर नागदेव मंदिर पहुंचते हैं. चाहे वह संतान प्राप्ति, नौकरी और खेती से जुड़ी मनोकामना हो. मनोकामना पूरी होने पर लोग अगले साल चढ़ावा चढ़ाते हैं.