श्रीनगर: उत्तराखंड विश्व भर में अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है. यहां बहने वाली नदियों को पूजा जाता है और यहां उगने वाली जड़ी बूटियों को विश्व भर में निर्यात किया जाता है. इन सब के बीच अभी भी प्रदेश में कई ऐसी जड़ी बूटियां हैं, जो दुनिया के सामने नहीं आई हैं. ऐसी ही एक जड़ी बूटी 'या' है, जिसे पहाड़ों में नगदूण के नाम से जाना जाता है.
नगदूण प्रदेश के 6 हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही पाया जाता है. अभी तक यहां पर रहने वाले लोग तो जानते थे लेकिन वैज्ञानिक इसे नहीं जानते हैं. अब केंद्रीय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक इसके अध्ययन में जुट गए हैं. अध्ययन की शुरुआत में ही वैज्ञानिकों को हैरत में डालने वाले परिणाम मिले हैं.
गढ़वाल विवि के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष राजपाल सिंह नेगी (Prof Rajpal Singh Negi) और इसी विभाग के असिटेंट प्रोफेसर सुभाष उत्तरकाशी जनपद के मोरी ब्लॉक के जखोल गांव में लगने वाले नगदूण मेले के बारे में अध्ययन कर रहे हैं. अध्ययन में पता लगा कि नगदूण मेला एक पौधे के गुणकारी होने पर मनाया जाता है. जब इन्होंने अध्ययन को आगे बढ़ाया तो जानकारी मिली कि नगदूण एक पौधा होता है, जिसकी जड़ में लगने वाला कंदमूल औषधीय गुणों से भरपूर है.
स्थानीय लोग इसे सदियों से अपने खान पान में प्रयोग में लाते आ रहे हैं. प्रो. राजपाल नेगी ने बताया कि स्थानीय लोग इसे गठिया, पेट के कीड़े मारने, पेट की बीमारियों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि इस नगदूण को कच्चा नहीं खाया जाता है. अगर इसे कच्चा खाया जाये तो इससे मुंह में सूजन आती है. नगदूण को पकाते हुए इसकी डिस बनाई जाती है, जिसे लोल (धाणु) कहा जाता है.
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नगदूण का हलवा ओर गोलियां बना कर घी और शहद के साथ खाया जाता है. उन्होंने बताया कि इसके सेवन से 10 से 12 घंटों तक भूख नहीं लगती ओर शरीर को पूरे पोषक तत्व भी मिलते हैं. उन्होंने बताया कि जब नगदूण को बेंगलुरु स्थित सीडीएफआरआई लैब में भेजा गया, तो आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम मिले. इसमें बड़ी मात्रा में प्रोटीन सहित कई प्रकार के पोषक तत्व मिले हैं.
उन्होंने बताया कि अभी तक वैज्ञानिकों को इस नगदूण के बारे में पता नहीं था. अब केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय इसका वैज्ञानिक अध्ययन शुरू कर रहा है. साथ में विवि का हैप्रिक विभाग ऊखीमठ में इसकी खेती करने की तैयारी कर रहा है, जिससे इसका वैश्विक उपयोग किया जा सके.