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New Parliament Building: सेंगोल की स्थापना के समय नई संसद में गूंजेगा नादस्वरम, मलाई मंदिर में पूजा शुरू - मलाई मंदिर में शुरू हुई पूजा

दिल्ली के आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में सेंगोल से जुड़ा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान शुक्रवार को शुरू हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नई संसद का उद्घाटन करेंगे तो संसद में नादस्वरम बजाया जाएगा. यह दक्षिण भारत का वाद्य यंत्र है, जो शुभ अवसरों पर बजाया जाता है.

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Published : May 26, 2023, 8:39 PM IST

आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में सेंगोल से जुड़ा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान शुरू

नई दिल्ली: 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नई संसद का उद्घाटन करेंगे तो देश तमिलनाडु की ऐतिहासिक सांस्कृतिक परंपरा से रूबरू होगा. संसद के नए भवन में लोकसभा स्पीकर के आसन के समीप सेंगोल (राजदंड) को स्थापित किया जाएगा. वहीं, इसको लेकर दिल्ली के आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में शुक्रवार शाम से सेंगोल से जुड़ा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो गया.

धार्मिक अनुष्ठान में तमिल धर्मगुरु और तमिल विद्वान हिस्सा लेंगे और मंत्र उच्चारण का उद्देश करेंगे. इस पूरी प्रक्रिया को लेकर मंदिर में अनुष्ठान किया जा रहा है. हालांकि, इस मंदिर में सेंगोल नहीं है, लेकिन दो महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे. उन चारों का अनुसरण मंदिर में किया जाएगा. धार्मिक अनुष्ठान के दौरान तमिल संगीत भी बजाया जाएगा, जिसका नाम नदस्वरम है.

सेंगोल की पूजा की तैयारी एक तरह से शुरू हो गई है. आरके पुरम के मलाई मंदिर में जिस परंपरा के तहत पूजा हो रही है कुछ ऐसे ही परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ के बाद सेंगोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाएगा. हो सकता है इस पूजा में मौजूद कई पुजारी पार्लियामेंट में पूजा के दिन भी मौजूद रहेंगे.

आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान.
आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान.

इसे भी पढ़ें: First Look Of New Parliament Building : देखिए कैसा है नया संसद भवन, जिसको लेकर मचा है सियासी घमासान

तमिलनाडु के संत होंगे शामिलः तमिलनाडु से आए संत धार्मिक अनुष्ठान के बाद सेंगोल को स्पीकर के आसन के समीप स्थापित करेंगे. तमिलनाडु से आए कलाकार अपनी प्रस्तुति से माहौल संगीतमयी बनाएंगे. सेंगोल की स्थापना के समय तमिल मंदिरों के कलाकार मधुर स्वर में 'कोलारु पढिगम' गाएंगे. इस धार्मिक अनुष्ठान के संपन्न होने के बाद सेंगोल को पीएम मोदी को सौंपा जाएगा, जिसके बाद प्रधानमंत्री कांच के एक केस में रखे गए सेंगोल को स्पीकर के आसन के बगल में स्थापित करेंगे. यह प्रतीकात्मक कार्यक्रम यह रेखांकित करेगा कि भारत का लोकतांत्रिक इतिहास एक नए युग में प्रवेश कर गया है.

इसे भी पढ़ें: नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका खारिज, लगाई फटकार

आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में सेंगोल से जुड़ा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान शुरू

नई दिल्ली: 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब नई संसद का उद्घाटन करेंगे तो देश तमिलनाडु की ऐतिहासिक सांस्कृतिक परंपरा से रूबरू होगा. संसद के नए भवन में लोकसभा स्पीकर के आसन के समीप सेंगोल (राजदंड) को स्थापित किया जाएगा. वहीं, इसको लेकर दिल्ली के आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में शुक्रवार शाम से सेंगोल से जुड़ा महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान शुरू हो गया.

धार्मिक अनुष्ठान में तमिल धर्मगुरु और तमिल विद्वान हिस्सा लेंगे और मंत्र उच्चारण का उद्देश करेंगे. इस पूरी प्रक्रिया को लेकर मंदिर में अनुष्ठान किया जा रहा है. हालांकि, इस मंदिर में सेंगोल नहीं है, लेकिन दो महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान किए जाएंगे. उन चारों का अनुसरण मंदिर में किया जाएगा. धार्मिक अनुष्ठान के दौरान तमिल संगीत भी बजाया जाएगा, जिसका नाम नदस्वरम है.

सेंगोल की पूजा की तैयारी एक तरह से शुरू हो गई है. आरके पुरम के मलाई मंदिर में जिस परंपरा के तहत पूजा हो रही है कुछ ऐसे ही परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ के बाद सेंगोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाएगा. हो सकता है इस पूजा में मौजूद कई पुजारी पार्लियामेंट में पूजा के दिन भी मौजूद रहेंगे.

आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान.
आरके पुरम स्थित तमिल मलाई मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान.

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तमिलनाडु के संत होंगे शामिलः तमिलनाडु से आए संत धार्मिक अनुष्ठान के बाद सेंगोल को स्पीकर के आसन के समीप स्थापित करेंगे. तमिलनाडु से आए कलाकार अपनी प्रस्तुति से माहौल संगीतमयी बनाएंगे. सेंगोल की स्थापना के समय तमिल मंदिरों के कलाकार मधुर स्वर में 'कोलारु पढिगम' गाएंगे. इस धार्मिक अनुष्ठान के संपन्न होने के बाद सेंगोल को पीएम मोदी को सौंपा जाएगा, जिसके बाद प्रधानमंत्री कांच के एक केस में रखे गए सेंगोल को स्पीकर के आसन के बगल में स्थापित करेंगे. यह प्रतीकात्मक कार्यक्रम यह रेखांकित करेगा कि भारत का लोकतांत्रिक इतिहास एक नए युग में प्रवेश कर गया है.

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