लखनऊ: देश में इन दिनों कई मुद्दों को लेकर सियासत गर्म है. कभी लाउडस्पीकर को लेकर तो कभी यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform civil code) लागू करने को लेकर बहस छिड़ी हुई है. इस बीच देश में मुसलमानों की सबसे बड़ी संस्था ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना रुख साफ करते हुए विरोध जाहिर किया है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने अपने जारी एक बयान में कहा कि भारत के संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को उसके धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करने की अनुमति दी है. पढ़ें - हिजाब विवाद : कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
इसे मौलिक अधिकारों में शामिल रखा गया है. इसी अधिकारों के अंतर्गत अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों के लिए उनकी इच्छा और परंपराओं के अनुसार अलग-अलग पर्सनल लॉ रखे गए हैं. जिससे देश को कोई क्षति नहीं होती है. बल्कि यह आपसी एकता और बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच आपसी विश्वास बनाए रखने में मदद करता है. मौलाना ने कहा कि अतीत में अनेक आदिवासी विद्रोहों को समाप्त करने के लिए उनकी इस मांग को पूरा किया गया है कि वे सामाजिक जीवन में अपनी मान्यताओं और परम्पराओं का पालन कर सकेंगे.
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अब उत्तराखंड या उत्तर प्रदेश सरकार या केंद्र सरकार की ओर से समान नागरिक संहिता का राग अलापना असामयिक बयानबाजी के अतिरिक्त कुछ नहीं है. प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि इसका उद्देश्य बढ़ती हुई महंगाई, गिरती हुई अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाना और घृणा के एजेंडे को बढ़ावा देना है. बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुलाह रहमानी ने कहा कि यह अल्पसंख्यक विरोधी और संविधान विरोधी कदम है. मुसलमानों के लिए यह बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसकी कड़ी निंदा करता है और सरकार से अपील करता है वह ऐसे कार्यों से परहेज करे. वहीं, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह ने कहा है कि राज्य के लिए समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करने को एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाएगा. वहीं, हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के मुद्दे की जांच की जा रही है.