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अदालत ने कहा- सरोगेट मां को कानूनन मां नहीं माना जा सकता, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले दंपति ही असली माता-पिता

कोर्ट (court) ने ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले एक भारतीय दंपति को ढाई साल के बच्चे को अपने साथ ले जाने की इजाजत दे दी है. हालांकि सरोगेट इस बात पर तैयार नहीं थी कि उसके बेटे को दंपति ऑस्ट्रेलिया ले जाएं.

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Published : Aug 7, 2022, 3:54 PM IST

मुंबई: ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले एक भारतीय दंपति को अपने ढाई साल के बच्‍चे के लिए कोर्ट (court) का दरवाजा खटखटाना पड़ा. क्‍योंक‍ि सरोगेट इस बात पर राजी नहीं थी क‍ि उसके बेटे को दंपति ऑस्‍ट्रे्लिया ले जाएं. इसके बाद मामला दीवानी कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने भारतीय दंपति को ही माता-पिता घोष‍ित कर दिया और उन्‍हें अपने साथ ले जाने की इजाजत दे दी. दंपति ने कहा कि उन्हें अपने बेटे को ले जाने के लिए वीजा प्रक्रिया पूरा करा रहे हैं. कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी (NAMS) के दिशानिर्देश का पालन करते हुए ये आदेश दिया.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा क‍ि एआरटी क्लीनिकों की मान्यता या पर्यवेक्षण के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार सरोगेट मां को कानूनी मां नहीं माना जाता है. इस प्रकार वादी एक बच्चे के जैविक और आनुवंशिक माता-पिता हैं और वे बच्चे की कस्टडी के लिए भी हकदार हैं. दंपति ने कोर्ट को बताया कि मार्च 2019 में उन्होंने महिला के साथ सरोगेसी समझौता किया था. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से सहमत था कि दंपति को बच्चे के कानूनी माता-पिता होने चाहिए और सरोगेट कोई आपत्ति नहीं उठाएगा. इसने यह भी कहा कि वह अपनी मर्जी से बच्चे को गर्भ धारण करने ले जाने और जन्म देने के लिए सहमत हुई थी.

दंपति ने कहा कि उन्होंने गर्भावस्था के दौरान सरोगेट को पूरी वित्तीय सहायता दी और समझौते में निर्धारित सभी शर्तों का पालन किया. सरोगेट ने अक्टूबर 2019 में एक बच्चे को जन्म दिया. दंपति ने कहा कि उन्हें कानूनी दस्तावेज तैयार करने की आवश्यकता है ताकि वे उसे ऑस्ट्रेलिया में अपने साथ रख सकें. लेकिन महिला ने सहयोग नहीं किया. इसलिए उन्हें इस साल मई में अदालत के समक्ष याचिका दायर करने के लिए बाध्य होना पड़ा.

ये भी पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट का 'आजादी का अमृत महोत्सव' को लेकर विचाराधीन कैदियों की रिहाई का आग्रह

मुंबई: ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले एक भारतीय दंपति को अपने ढाई साल के बच्‍चे के लिए कोर्ट (court) का दरवाजा खटखटाना पड़ा. क्‍योंक‍ि सरोगेट इस बात पर राजी नहीं थी क‍ि उसके बेटे को दंपति ऑस्‍ट्रे्लिया ले जाएं. इसके बाद मामला दीवानी कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने भारतीय दंपति को ही माता-पिता घोष‍ित कर दिया और उन्‍हें अपने साथ ले जाने की इजाजत दे दी. दंपति ने कहा कि उन्हें अपने बेटे को ले जाने के लिए वीजा प्रक्रिया पूरा करा रहे हैं. कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी (NAMS) के दिशानिर्देश का पालन करते हुए ये आदेश दिया.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा क‍ि एआरटी क्लीनिकों की मान्यता या पर्यवेक्षण के लिए राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार सरोगेट मां को कानूनी मां नहीं माना जाता है. इस प्रकार वादी एक बच्चे के जैविक और आनुवंशिक माता-पिता हैं और वे बच्चे की कस्टडी के लिए भी हकदार हैं. दंपति ने कोर्ट को बताया कि मार्च 2019 में उन्होंने महिला के साथ सरोगेसी समझौता किया था. उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट रूप से सहमत था कि दंपति को बच्चे के कानूनी माता-पिता होने चाहिए और सरोगेट कोई आपत्ति नहीं उठाएगा. इसने यह भी कहा कि वह अपनी मर्जी से बच्चे को गर्भ धारण करने ले जाने और जन्म देने के लिए सहमत हुई थी.

दंपति ने कहा कि उन्होंने गर्भावस्था के दौरान सरोगेट को पूरी वित्तीय सहायता दी और समझौते में निर्धारित सभी शर्तों का पालन किया. सरोगेट ने अक्टूबर 2019 में एक बच्चे को जन्म दिया. दंपति ने कहा कि उन्हें कानूनी दस्तावेज तैयार करने की आवश्यकता है ताकि वे उसे ऑस्ट्रेलिया में अपने साथ रख सकें. लेकिन महिला ने सहयोग नहीं किया. इसलिए उन्हें इस साल मई में अदालत के समक्ष याचिका दायर करने के लिए बाध्य होना पड़ा.

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