हैदराबाद : हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले डॉ एम एस स्वामीनाथन, पूरा नाम मोनकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन का 98 साल में निधन हो गया. डॉ स्वामीनाथन ने अपने जीवनकाल में किसानों के हित और खेती को बचाने के लिए कार्य किया. साल 2020 में मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर मे किसान आंदोलन हुए. इस बीच स्वामीनाथन आयोग यानी राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशें चर्चा में आईं. हालांकि, स्वामीनाथन आयोग का गठन 2004 में हुआ था और तब उनके द्वारा दिये गए सुझावों को केंद्र सरकार ने सिरे से नकार दिया था.
एमएसपी और स्वामीनाथन आयोग चर्चा में क्यों : देश में 1960 के दशक में अकाल की स्थिति पैदा हो गई थी और तब भारत के सामने कई प्रकार की प्राकृतिक चुनौतियां सामने आईं. वहीं, 1962 में भारत- चीन युद्ध हुआ और 1965 में भारत को पाक के साथ भी युद्ध लड़ना भी था. दरअसल, 1962 के युद्ध के बाद जवानों का मनोबल कमजोर होने लगा था और वहीं, बार-बार सुखे की स्थिति ने भी किसानों का मनोबल कमजोर कर दिया था. ऐसे में तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू ने देश के जवानों और किसानों का मनोबल बढ़ाने के लिए 'जय जवान-जय किसान' का नारा लगाया.
इस नारे का प्रभाव किसानों पर तो हुआ, लेकिन आर्थिक रूप से कोई खास लाभ नहीं मिला, क्योंकि किसानों ने फसल पैदावार तो अधिक कर दिया, लेकिन उत्पाद के मूल्य कम हो जाते थे. हम बता दें कि उत्पादन अधिक होने पर उसकी कीमत में गिरावट आती है. तभी सरकार ने अनाजों की कीमत तय करने का फैसला किया, ताकि किसानों को ऐसा ना लगे कि फसल अधिक हुई तो उन्हें कीमत कम मिलेगी और उत्पादन उनके लिए घाटे का सौदा हो गया.
मूल्य निर्धारण का लक्ष्य केवल किसानों को खेती से लाभ दिलाया था. इसी लक्ष्य के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने कृषि मंत्री चिदंबरम से इस संबंध में बात की. चिदंबरम भी इस फैसले से सहमत हुए और किसानों को कम से कम इतनी कीमत दिलाने का तय किया, जिससे उन्हें घाटा न हो. इसके बाद प्रधानमंत्री के सचिव एलके झा के नेतृत्व में 1964 में एक कमेटी बनाई गई. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी और प्रधानमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया. लेकिन प्रशासनिक कारणों से यह लागू नहीं हो पाया.
स्वामीनाथन आयोग का योगदान : एमएसपी वो मूल्य है, जिस पर सरकार किसानों की उपज को खरीदने के लिए तैयार रहती है. इससे अधिक उत्पादन होने पर कीमत कम होने का खतरा एमएसपी के फसलों के संदर्भ में कम हो जाता है. इस एमएसपी से उत्पादन बढ़ा और कई सकारात्मक परिणाम भी मिले, लेकिन आर्थिक रूप से कम लाभकारी रोजगार और आजीविका का ये स्रोत बना. जिसकी वजह के किसानों का पलायन कृषि क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों की ओर बढ़ने लगा. इन्हीं तथ्यों और परिणामों को देखते हुए एमएसपी और कृषि क्षेत्र में सुधार का आकलन करने के लिए कमेटी बनाने का विचार किया गया.
साल 2004 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया. इस आयोग का मकसद अनाज की आपूर्ति तथा किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाना था. इस आयोग का नेतृत्व डॉ एम.एस. स्वामीनाथन किया. साल 2006 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें किसानों की दुर्दशा को दूर करने के कई उपाय बताए गए. स्वामीनाथन आयोग ने एमएसपी तय करने के लिए लागत में खाद-बीज आदि का खर्च, उसकी पूंजी या उधारी पर लगे ब्याज, जमीन का किराया, पारिवारिक श्रम आदि सभी को शामिल करने तथा लागत से 150 प्रतिशत तक एमएसपी रखने की सिफारिश की. आयोग ने जो उपाय बताए, जिसका इंतजार किसानों के साथ-साथ जनता को भी होता. उनकी सिफारिश के जरिये किसानों का आय तो बढ़ता, साथ ही उपभोक्ता को भी उत्पाद कम कीमत पर मिलती.
आयोग ने किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीच कम दाम पर मुहैया कराने, किसानों के लिए विलेज लॉलेज सेंटर, महिला किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड जारी करने, कृषि जोखिम फंड बनाने जैसे महत्वपूर्ण सुझाव दिये, जिससे कृषि क्षेत्र का कायाकल्प हो सकता था. इतना ही नहीं, आयोग ने कृषि क्षेत्र में आमूल चून परिवर्तन का विचार रखा, जिसमें लैंड रिफॉर्म के लिए नेशनल लैंड यूज एडवाइजरी सर्विस का गठन करने, सिंचाई सुधार, उत्पादन में वृद्धि, फसल बीमा कराने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा किसान आत्महत्या के मामले रोकने के प्रति कदम उठाने की भी बात कही गई. वहीं, इस व्यापक रिपोर्ट को लागू करने में बड़ी मात्रा में वित्त की जरूरत थी और उससे अधिक यहां जरूरत थी सरकार की मजबूत इच्छाशक्ति. लेकिन यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों किसानों के हित की बात तो की, लेकिन स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू नहीं किया.
हरित क्रांति और उसके बाद भारत ने कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई, उसमें सबसे बड़ा योगदान एमएसपी का है. वहीं, 2020-21 में किसानों और विपक्ष के विरोध के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक मामलों के मंत्रिमंडलीय समिति ने छह रबी फसलों के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी की घोषणा की. केंद्र सरकार ने कहा कि एमएसपी में यह वृद्धि स्वामीनाथन आयोग की अनुसंशाओं के अनुरूप की है.
स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट्स : प्रोफेसर एम. एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व वाले आठ सदस्यीय राष्ट्रीय किसान आयोग की स्थापना 2004 में हुई थी, जिसने अपनी पहली रिपोर्ट कृषि आय में गिरावट को रोकने और किसानों के संकट को कम करने में केंद्र और राज्य सरकारों की सहायता करने के लिए थी. स्वामीनाथन आयोग की दूसरी रिपोर्ट भारत के कृषि संकट को कम करने के लिए आवश्यक सार्वजनिक व्यय और प्रशासनिक पहल पर केंद्रित है. इस रिपोर्ट में आयोग ने सिंचाई सुधार, आपूर्ति में सुधार, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चितता, किसान आत्महत्या के मामले रोकने और आत्महत्या के प्रति कदम उठाने की भी बात कही गई. 2006 से 2007 तक कृषि नवीनीकरण वर्ष मनाया गया, जिसके बारे में तीसरी रिपोर्ट में उल्लेख है. इस वर्ष में बिना किसी पारिस्थितिक घाटे के कृषि उत्पादकता और लाभ में वृद्धि के लिए कार्यक्रम किये गए. इसके साथ ही पंजाब और महाराष्ट्र जैसे दो महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों पर एनसीएफ टीम की टिप्पणियों को भी शामिल किया गया. स्वामीनाथन आयोग की चौथी रिपोर्ट में अपनी बाकी की तीन रिपोर्टों में दिये गए सुझावों का सारांश था. इस रिपोर्ट में एनसीएफ द्वारा किसानों के लिए राष्ट्रीय नीति ड्राफ्ट पेश किया गया, जिसने कृषि विकास को केवल खाद्यान्न और कृषि संबंधी वस्तुओं की मात्रा से आकलन करने के विचार को खारिज किया. आयोग की पांचवीं रिपोर्ट दो खंडों में है. पहले खंड में किसानों को प्रभावित करने वाले आर्थिक समस्याओं के बारे में बताया गया, जिससे खासतौर पर छोटी जोत वाले किसानों की आजीविका पर असर पड़ता है. रिपोर्ट के जरिये आयोग ने कृषि क्षेत्र के पुनरुद्धार, कृषि की पारिस्थितिक नींव को मजबूत करने आदि के सुझाव दिये. इतना ही नहीं बेरोजगार युवाओं को कृषि क्षेत्र की तरफ आकर्षित करने की सिफारिश भी की. रिपोर्ट के दूसरे खंड में कृषि संकट से निपटने के बारे में बताया गया है. स्वामीनाथन आयोग ने सभी सिफारिशों का भी जिक्र करते हुए राष्ट्रीय नीति ड्राफ्ट तैयार किया.