सागर। मध्यप्रदेश के सातवें टाइगर रिजर्व के रूप में स्थापित होने जा रहे नौरादेही वन्य जीव अभ्यारण्य में जून माह में टेरिटोरियल फाइट में बाघ किशन की मौत के बाद बाघों की सुरक्षा और निगरानी को लेकर सवाल उठने लगे हैं क्योंकि बाघ किशन (N2) की N3 बाघ से टेरिटोरियल फाइट हुई थी उस N3 बाघ को ढूंढने में नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य को पसीना आ गया था. तब बात सामने आई थी कि अगर N3 कॉलर आईडी पहने होता, तो ये स्थिति नहीं बनती. बाघ किशन की मौत के बाद नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में 15 बाघ बचे हैं, जिनमें से सिर्फ बाघिन राधा रेडियो कॉलर पहने हुए हैं और बाकी 14 बाघ बिना रेडियो कॉलर के हैं.
ऐसी स्थिति में बाघों की निगरानी, सुरक्षा और चहलकदमी का पता लगाने के लिए वन कर्मियों के लिए परंपरागत तरीके अपनाने पड़ते हैं. ऐसी स्थिति में बाघों के मूवमेंट पहचान के साथ सुरक्षा में दिक्कत आती है. नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य बाघों की निगरानी और सुरक्षा के लिहाज से कॉलर आईडी के लिए महत्वपूर्ण तो मानता है. लेकिन अभयारण्य प्रबंधन का ये भी कहना है कि बाघों के प्राकृतिक रहन-सहन में किसी तरह का हस्तक्षेप ना हो, इसलिए बाघों को आवश्यकता पड़ने पर ही विशेषज्ञों के परामर्श के बाद ही कॉलर आईडी पहनाई जाती है क्योंकि बाघों को कॉलर आईडी बनाने के लिए ट्रेंकुलाइज करना होता है, जो उनके स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं माना जाता है.
बाघों की टेरिटोरियल फाइट में हो गयी थी मौत: दरअसल नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य में टेरिटोरियल फाइट के चलते 7-8 जून के बीच दो बाघों में संघर्ष हो गया था जिसकी जानकारी प्रबंधन को करीब 5 दिन बाद मिली और टेरिटोरियल फाइट में गंभीर रूप से घायल हुए बाघ किशन का इलाज शुरू किया गया. लगातार तीन दिन चले इलाज के बाद भी बाघ किशन ने दम तोड दिया. दरअसल किशन ने नौरादेही रेंज में बमनेर नदी के पास अपनी टेरिटरी बनायी थी.
वहीं कुछ दिन पहले बाहर से आया एक बाघ N3 नौरादेही रेंज से लगी सिंगपुर रेंज में अपनी टेरिटरी बनाए था. N3 पिछले कुछ दिनों से नौरादेही में अपनी टेरिटरी बनाना चाह रहा था. इस वजह दोनों के बीच कई बार टेरिटोरियल फाइट हुई और 7-8 जून को हुई टेरिटोरियल फाइट में किशन गंभीर रूप से घायल हो गया और इलाज में देरी के चलते उसने दम तोड दिया.
बाघ किशन की मौत के बाद खुली सुरक्षा और निगरानी की पोल: टेरिटोरियल फाइट में बाघ किशन की मौत के बाद जब ये सवाल उठा कि कहीं बाघ N3 भी घायल ना हो, तो N3 की तलाश की गयी. तब जाकर बाघों की निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था की हकीकत सामने आयी. दरअसल बाघ राधा और बाघ किशन के अलावा कोई भी बाघ को रेडियो कालर नहीं पहनाया गया है. ऐसे में इन बाघों को परम्परागत तरीके से ढूढ़ना पडता है. इसके लिए बाघ के टेरिटरी, पगमार्ग और आदतों के हिसाब से गश्ती दल उनकी तलाश करती है.
बाघ N3 को ढूढ़ने में अभ्यारण्य प्रबंधन को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा हालांकि कुछ दिन की मशक्कत के बाद बाघ N3 खुद नौरादेही रेंज के पास दिखाई देने लगा, क्योकिं उसने किशन को उसकी टेरीटरी पर कब्जा करने के लिए ही मारा था और किशन की मौत के बाद वो उसकी टेरिटरी में पहुंच गया लेकिन इस दौरान N3 के अलावा दूसरे बाघ भी गश्ती दल को मिले, लेकिन उनकी पहचान को लेकर ही अभ्यारण्य प्रबंधन में मतभेद नजर आए और कोई नहीं पहचान पाया कि कौन सा बाघ कौन है.
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नौरादेही में 15 बाघों में सिर्फ बाघिन राधा पहने कॉलर आईडी: जहां तक नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य की बात करें तो नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में बाघ किशन की मौत के बाद 15 बाघ बचे हैं. हालांकि नौरादेही अभयारण्य में पहले बाघ नहीं थे और 2018 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण परियोजना के अंतर्गत नौरादेही में बाघों को बसाने की शुरुआत की थी और इसके लिए बाघिन राधा (N1) को कान्हा किसली नेशनल पार्क से और बाघ किशन (N2) को बांधवगढ़ से लाकर नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य में छोड़ा गया था और तभी दोनों को रेडियो कॉलर पहनाया गया था.
बाघिन राधा और बाघ किशन ने पिछले 4 सालों में नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण में बाघों का कुनबा बढ़ाने का काम किया और जिनकी संख्या 15 पहुंच गयी. इसके बाद एक बार जिसकी रातापानी से नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण में पहुंचने की बात की जा रही है, जिसे N3 कहा गया है. N2 और N3 के बीच हुई टेरिटोरियल फाइट में ही N2 यानि बाघ किशन की मौत हो गई थी.
जब काॅलर आईडी नहीं तो कैसे होती निगरानी और सुरक्षा: जब बाघों की सुरक्षा और निगरानी को लेकर नौरादेही अभ्यारण्य के डीएफओ ए ए अंसारी से बात की गयी. तो उन्होंने बताया कि बाघों की सुरक्षा और निगरानी के लिहाज से काॅलर आईडी एक अच्छा तरीका है लेकिन ये सिर्फ उन बाघों और जानवरों की निगरानी के लिए लगाया जाता है जो किसी दूसरी जगह से अभ्यारण्य में आते हैं. तो उनकी चहलकदमी और कहां- कहां वो जा रहे हैं और निगरानी के लिए लगाया जाता है. इसीलिए जब 2018 में बाघ किशन और राधा को नौरादेही अभ्यारण्य में छोड़ा गया था, तब दोनों को काॅलर आईडी लगाया था जिन बाघों को काॅलर आईडी नहीं लगा है उनकी परम्परागत तरीके से निगरानी की जा रही है.
निगरानी के परम्परागत तरीके
जहां तक बाघों और दूसरे वन्यजीवों की निगरानी और सुरक्षा की बात करें, तो फिलहाल नौरादेही अभ्यारण्य में बाघों की निगरानी के परम्परागत तरीके अपनाए जा रहे हैं.
- कैमरा ट्रैप लगाकर- बाघों की निगरानी एक अहम तरीका होता है. फिलहाल नौरादेही में करीब 120 कैमरे लगाए गए हैं. जिनमें बाघों की तस्वीर आती है. उन कैमरों की समय-समय पर जांच की जाती है.
- गश्ती दल- बाघों और दूसरे जानवरों की निगरानी के लिए वनविभाग का गश्ती दल अहम भूमिका निभाता है.
- भोजन और आवाज- जानवरों की निगरानी और उनकी लोकेशन पता लगाने के लिए उनका भोजन भी एक अहम सुराग होता है. जानवरों के शिकार के आधार पर पता लगा सकते हैं कि किस जानवर ने शिकार किया होगा और कब किया होगा और फिलहाल कहां हो सकता है. इसके साथ जानवर की आवाज भी उसकी पहचान और लोकेशन के लिए अहम कड़ी होती है.
- पगमार्क- जानवरों के पगमार्क के जरिए उनकी लोकेशन और मूवमेंट का आसानी से पता चल जाता है. आमतौर पर वनविभाग के पास पगमार्क के हिसाब से जानवरों का रिकार्ड भी होता है और उसके आधार पर पता लगा सकते हैं.
क्या कहना है जिम्मेदार अधिकारियों का: नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य के डीएफओ ए ए अंसारी कहते हैं कि "सभी बाघों को काॅलर आईडी नहीं पहनायी जाती है. काॅलर आईडी उन्हीं बाघों को पहनाई जाती है, जिनकी निगरानी करनी होती है. जब नौरादेही में एक भी बाघ नहीं था और सबसे पहले 2018 में बाघिन राधा और बाघ किशन को लाया गया था. तब दोनों की लोकेशन और डिस्पर्सन ( फैलाव) जानने के लिए काॅलर आईडी पहनाई गयी थी. इसके बाद जब वो नौरादेही अभ्यारण्य में रच बस गए, तो काॅलर आईडी से निगरानी की जरूरत नहीं पडती है."
उन्होंने आगे कहा कि "फिलहाल निगरानी और सुरक्षा के लिए हम लोग ट्रैडिशनल सिस्टम अपनाते हैं. जिसमें जानवर की डाइट, आवाज और पगमार्क के जरिए निगरानी की जाती है. काॅलर आईडी सुरक्षा और निगरानी के लिहाज से महत्वपूर्ण है लेकिन सभी बाघों को पहनाया जाना संभवन नहीं है और हम उनकी प्राकृतिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं. जीपीएस या काॅलर आईडी लगाने से बाघ शारीरिक और मानसिक तौर पर डिस्टर्ब होते हैं."