सागर। मध्यप्रदेश में दिग्गजों और वरिष्ठों के सामने कम अनुभवी मोहन यादव मुख्यमंत्री बनाए गए हैं. पहली नजर में इस फैसले को देखकर लगता है कि विपक्ष और खासकर INDIA गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना के मुद्दे को पहले ही हवा दे चुका है और भाजपा के गढ़ माने जाने वाले हिंदी भाषी राज्यों में इस मुद्दे से भाजपा को नुकसान हो सकता है. ऐसे में भाजपा ने ओबीसी के बडे़ वोट बैंक याादव वोट बैंक को रिझाने की कोशिश की है. जो यूपी, बिहार, मध्यप्रदेश और लगभग हर हिंदी भाषी राज्यों में जनाधार रखता है.
जातीय जनगणना के मुद्दे का जवाब : मध्यप्रदेश में मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनाए जाने के फैसले को मध्यप्रदेश के लिहाज से जैसा भी देखा जाए. लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव और हिंदी भाषी राज्यों में जोर पकड़ रहे जातीय जनगणना के मुद्दे के मद्देनजर तो इस फैसले के जरिए बीजेपी आलाकमान और प्रधानमंत्री नरेन्द्र नोदी ने हिंदी भाषी राज्यों के बड़े ओबीसी वोट बैंक यादव वोट बैंक को साधने की कोशिश की है. राष्ट्रीय स्तर पर अगर ये फैसला असर करता है तो यूपी में समाजवादी और बिहार में राजद कमजोर होगा. इन दोनों पार्टियों का बड़ा जनाधार यादव जाति का वोट बैंक है. इस फैसले के जरिए बीजेपी पूरी कोशिश करेगी कि सपा और राजद के जातीय जनाधार में सेंध लगायी जाए और जातीय जनगणना के मुद्दे को कमजोर किया जाए.
यूपी में समाजवादी पार्टी के जनाधार पर नजर : यूपी की राजनीति में समाजवादी पार्टी MY वोटबैंक के आधार पर सियासत के लिए जानी जाती है. जिसमें मुस्लिम और यादव वोटबैंक का गठजोड़ समाजवादी पार्टी को मजबूत बनाए हुए है. मुस्लिम वोट बैंक सहूलियत के हिसाब से कभी कांग्रेस और बसपा की तरफ शिफ्ट हो जाता है. लेकिन यादव वोटबैंक जातीय समीकरण के आधार पर यूपी में सपा से जुड़ा हुआ है. अनुमान के मुताबिक यूपी की 24 करोड़ आबादी में करीब 10 फीसदी आबादी यादव जाति की है. प्रदेश के करीब 50 जिलों में यादव जाति का वोटबैंक चुनाव प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाता है. पिछले विधानसभा चुनाव में यूपी में करीब 85 फीसदी यादव वोट बैंक सपा के खाते में गया था. अब मोहन यादव के जरिए एमपी से लगे यूपी के यादव वोटबैंक में सेंधमारी की कोशिश की जाएगी.
बिहार में राजद वोटबैंक में सेंधमारी : यूपी के मुकाबले बिहार में तो यादव वोटबैंक और भी ताकतवर है. बिहार में हुई जातिगत जनगणना में ओबीसी में यादव जाति सबसे बड़ी जाति के तौर पर सामने आयी है. जातिगत जनगणना के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 14 प्रतिशत से ज्यादा यादव जाति का वोटबैंक है. हालांकि सीधे तौर पर बिहार की राजनीति में मध्यप्रदेश का दखल नहीं हो सकता है. लेकिन जातीय आधार पर समीकरण साधने में मोहन यादव बिहार में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.
ओबीसी लोधी वोटबैंक नाराज : यादव वोटबैंक में सेंधमारी की भाजपा की कोशिश कितनी कारगर होती है और मध्यप्रदेश के अलावा हिंदीभाषी राज्यों में क्या असर दिखाती है, ये तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन मुख्यमंत्री चुने जाने के सियासी घटनाक्रम और पिछले एक साल से मध्यप्रदेश की राजनीति में चल रहे घटनाक्रम से लोधी समुदाय भाजपा से नाराज हो सकता है. दरअसल, एक तरफ तो कल्याण सिंह के बाद लोधी समुदाय की सबसे बड़ी नेता मानी जाने वाली उमाभारती पिछले कई सालों से हाशिए पर चल रही हैं. मध्यप्रदेश में भाजपा के जनाधार को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाने वाली उमाभारती को तो मध्यप्रदेश चुनाव में स्टार प्रचारक तक नहीं बनाया गया.
प्रहलाद पटेल को मिली निराशा : वहीं, दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल को नरसिंहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया गया और फिर मंत्री और सांसद पद से इस्तीफा दिलाया गया. भाजपा की सरकार बनने के बाद ऐसा लग रहा था कि प्रहलाद पटेल मुख्यमंत्री बनेंगे. तमाम दावेदारों में सबसे मजबूत दावा प्रहलाद पटेल का ही नजर आ रहा था. लेकिन जिस तरह का घटनाक्रम सामने आया, उससे भाजपा के लिए समर्पित लोधी वोटबैंक में जमकर निराशा छा गयी है. लोधी वोट बैंक मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश में बड़ी संख्या में है और लंबे समय से भाजपा के कोर वोट बैंक के तौर पर कार्य करता है. इस फैसले से लोधी वोट बैंक में भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है.
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नफा व नुकसान पर किया होगा विचार : वरिष्ठ पत्रकार जगदीप सिंह बैस कहते हैं कि फिलहाल तीन राज्यों में भाजपा या फिर कहें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो मुख्यमंत्री तय किए हैं, साफतौर पर लोकसभा चुनाव को ध्यान रखकर चेहरे चुने गए हैं. मध्यप्रदेश में मोहन यादव को उनके जातीय जनाधार के कारण मुख्यमंत्री बनाया गया है. ये फैसला INDIA गठबंधन की हिंदी भाषी राज्यों की ओबीसी राजनीति को कमजोर करने की कोशिश है. इस फैसले से सपा, राजद और कांग्रेस को नुकसान की संभावना है. हालांकि मोहन यादव मध्यप्रदेश के अलावा अन्य राज्यों में यादव वोटबैंक में कितनी सेंधमारी कर पाते है, ये कहना काफी मुश्किल होगा. लेकिन जहां तक लोधी वोट बैंक को नाराज करने की बात है तो भाजपा आलाकमान ने अपने फैसले के नफा नुकसान पर सोचा होगा और अगर भाजपा उमाभारती और प्रहलाद पटेल को मनाने में सफल होती है, तो ज्यादा नुकसान की संभावना नहीं है.