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जबलपुर के ओशो आश्रम में अलग दुनिया, यहां बड़ी संख्या में गृहस्थ संन्यासी, देखें इनके जीने के तरीके

Special on Osho Birth Anniversary : जबलपुर में ओशो आश्रम के लिए 11 दिसंबर का दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस दिन कई लोग संन्यास ग्रहण करते हैं. जबलपुर के ओशो आश्रम में सोमवार को देश-विदेश से आए अनुयायियों ने ओशो का जन्मदिन मनाया और संन्यास ग्रहण किया. ये संन्यासी कहते हैं कि गृहस्थ जीवन में भी ओशो का संन्यासी रह सकता है और ज्यादा आनंद से जीवन व्यतीत कर सकता है.

Osho Ashram grihasth sanyasi
जबलपुर के ओशो आश्रम में अलग दुनिया
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 11, 2023, 4:25 PM IST

जबलपुर के ओशो आश्रम में अलग दुनिया

जबलपुर। जबलपुर की बिंदु पांडे बीते लगभग 20 सालों से ओशो की संन्यासिन हैं. उनका कहना है कि उनके पति ओशो के संन्यासी हैं. शुरुआत में उन्होंने पति की वजह से ही ओशो को सुनना शुरू किया. लेकिन बाद में भी उन्हें इतने पसंद आने लगे कि आज खुद एक ओशो की संन्यासी हैं. बिंदु पांडे का कहना है कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी ओशो का संन्यास ग्रहण किया जा सकता है. ओशो को मानना और ओशो की बताई राह पर जीना जीवन को सरल कर देता है. तनाव खत्म कर देता है.

ओशो का संन्यास अलग तरह का : बिंदु पांडे का कहना है कि गृहस्थी के दूसरे कामकाज करते हुए भी ओशो का संन्यास ग्रहण किया जा सकता है. ओशो तनाव को मुक्त करने का तरीका बताते हैं. जीवन का लक्ष्य तय करवाते हैं और जीवन में आनंद कहां से आ सकता है, कैसे आ सकता है, यह तरीका बताते हैं. बिंदु पांडे का कहना है कि ओशो को लेकर कुछ लोगों ने भ्रम फैलाया और गलत धारणाएं प्रचलित की. यदि सामान्य आदमी ओशो से जुड़ता है तो उसे समझ में आएगा कि वह ओशो कहते कुछ थे और उसे प्रदर्शित कुछ और किया गया.

पुलिस वाला संन्यासी : जबलपुर के पुलिस विभाग में नौकरी करने वाले संतोष मिश्रा ओशो के संन्यासी हैं. उनका कहना है कि लगभग 20 सालों से ओशो से जुड़े हुए हैं. उन्होंने अपने शरीर पर ओशो का टैटू भी बनवाया हुआ है. संतोष मिश्रा का कहना है कि हिंदू धर्म में संन्यास की अवधारणा है. लेकिन हिंदू धर्म का संन्यास हमें समाज से अलग कर देता है. परिवार से अलग कर देता है लेकिन ओशो के संन्यासी होने में आपको ना परिवार से अलग होना है और ना समाज से अलग होना है. ओशो जो दृष्टिकोण देते हैं, उसमें आप समाज और परिवार में रहते हुए भी संन्यास ग्रहण कर सकते हैं और ओशो के ध्यान करने के तरीकों से मन को शांत कर सकते हैं. तनाव खत्म कर सकते हैं. संतोष मिश्रा कहते हैं कि वे नौकरी में रहते हुए भी ओशो के बताए दर्शन का अभ्यास करते हैं. इससे उनका काम सरल हो जाता है. उन्हें तनाव नहीं होता और वह ज्यादा आनंद से अपने काम को अंजाम दे पाते हैं.

ओशो के अनुयायी क्यों नाचते हैं : जबलपुर के देवताल स्थित ओशो आश्रम में दिनभर जश्न मनाया जाता है. ओशो के संन्यासी बड़े अनोखे ढंग से ओशो का जन्मदिन मनाते हैं. ओशो के बताए हुए तरीके से गानों पर नृत्य करते हैं, जहां यह कार्यक्रम होता है वहां सारे भेद खत्म हो जाते हैं. लोग इतने इतने आनंद में डूब जाते हैं कि हर कोई नाचने लगता है. सक्रिय ध्यान योग में नाचने के बाद लोग जोर-जोर से चिल्लाते हैं और अपने मन को खाली करने की कोशिश करते हैं. इसके बाद लोग इस तरह अचेत होकर बैठ जाते हैं या सो जाते हैं जैसे शरीर में जान ही ना हो. इस प्रक्रिया के बाद मन का तनाव कम हो जाता है. जो लोग लगातार इसका अभ्यास करते हैं उनका तनाव खत्म हो जाता है.

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सभी धर्मों का सार बताया : ओशो किस धर्म के थे, किस जाति के थे. यदि किसी ने उनको सुना है तो उन्होंने दुनिया के सारे धर्म के बारे में बड़े विस्तार से बातें कही हैं. ओशो के प्रवचनों में उनकी पुस्तकों में आम आदमी के हर सवाल का जवाब है. वह किसी भी धर्म का हो, किसी जाति का हो और किसी भी भौगोलिक स्थिति का हो. उसने अपने सवाल और जवाबों के माध्यम से जिंदगी की तमाम ज़रूरतें, इच्छाएं, समस्याएं और मान्यताएं सबको समझाईं हैं. उनके सवाल और जवाबों में मानव मन में उठने वाले तमाम उथल-पुथल को खत्म करने की शक्ति है. इसीलिए 1989 में उनके देहांत के बाद भी आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे पहले थे.

जबलपुर के ओशो आश्रम में अलग दुनिया

जबलपुर। जबलपुर की बिंदु पांडे बीते लगभग 20 सालों से ओशो की संन्यासिन हैं. उनका कहना है कि उनके पति ओशो के संन्यासी हैं. शुरुआत में उन्होंने पति की वजह से ही ओशो को सुनना शुरू किया. लेकिन बाद में भी उन्हें इतने पसंद आने लगे कि आज खुद एक ओशो की संन्यासी हैं. बिंदु पांडे का कहना है कि गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी ओशो का संन्यास ग्रहण किया जा सकता है. ओशो को मानना और ओशो की बताई राह पर जीना जीवन को सरल कर देता है. तनाव खत्म कर देता है.

ओशो का संन्यास अलग तरह का : बिंदु पांडे का कहना है कि गृहस्थी के दूसरे कामकाज करते हुए भी ओशो का संन्यास ग्रहण किया जा सकता है. ओशो तनाव को मुक्त करने का तरीका बताते हैं. जीवन का लक्ष्य तय करवाते हैं और जीवन में आनंद कहां से आ सकता है, कैसे आ सकता है, यह तरीका बताते हैं. बिंदु पांडे का कहना है कि ओशो को लेकर कुछ लोगों ने भ्रम फैलाया और गलत धारणाएं प्रचलित की. यदि सामान्य आदमी ओशो से जुड़ता है तो उसे समझ में आएगा कि वह ओशो कहते कुछ थे और उसे प्रदर्शित कुछ और किया गया.

पुलिस वाला संन्यासी : जबलपुर के पुलिस विभाग में नौकरी करने वाले संतोष मिश्रा ओशो के संन्यासी हैं. उनका कहना है कि लगभग 20 सालों से ओशो से जुड़े हुए हैं. उन्होंने अपने शरीर पर ओशो का टैटू भी बनवाया हुआ है. संतोष मिश्रा का कहना है कि हिंदू धर्म में संन्यास की अवधारणा है. लेकिन हिंदू धर्म का संन्यास हमें समाज से अलग कर देता है. परिवार से अलग कर देता है लेकिन ओशो के संन्यासी होने में आपको ना परिवार से अलग होना है और ना समाज से अलग होना है. ओशो जो दृष्टिकोण देते हैं, उसमें आप समाज और परिवार में रहते हुए भी संन्यास ग्रहण कर सकते हैं और ओशो के ध्यान करने के तरीकों से मन को शांत कर सकते हैं. तनाव खत्म कर सकते हैं. संतोष मिश्रा कहते हैं कि वे नौकरी में रहते हुए भी ओशो के बताए दर्शन का अभ्यास करते हैं. इससे उनका काम सरल हो जाता है. उन्हें तनाव नहीं होता और वह ज्यादा आनंद से अपने काम को अंजाम दे पाते हैं.

ओशो के अनुयायी क्यों नाचते हैं : जबलपुर के देवताल स्थित ओशो आश्रम में दिनभर जश्न मनाया जाता है. ओशो के संन्यासी बड़े अनोखे ढंग से ओशो का जन्मदिन मनाते हैं. ओशो के बताए हुए तरीके से गानों पर नृत्य करते हैं, जहां यह कार्यक्रम होता है वहां सारे भेद खत्म हो जाते हैं. लोग इतने इतने आनंद में डूब जाते हैं कि हर कोई नाचने लगता है. सक्रिय ध्यान योग में नाचने के बाद लोग जोर-जोर से चिल्लाते हैं और अपने मन को खाली करने की कोशिश करते हैं. इसके बाद लोग इस तरह अचेत होकर बैठ जाते हैं या सो जाते हैं जैसे शरीर में जान ही ना हो. इस प्रक्रिया के बाद मन का तनाव कम हो जाता है. जो लोग लगातार इसका अभ्यास करते हैं उनका तनाव खत्म हो जाता है.

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