जयपुर. राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव की मांग को लेकर 14 सितंबर को जयपुर में 1 लाख से ज्यादा छात्र गहलोत सरकार को घेरेंगे. ये रैली विद्याधर नगर स्टेडियम में होगी, जहां सरकार के खिलाफ युवा हुंकार भरेंगे. इससे पहले राजस्थान के सभी विश्वविद्यालय और संभाग मुख्यालय पर छात्र शक्ति छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने का विरोध दर्ज कराएगी. ये ऐलान आरएलपी सुप्रीमो सांसद हनुमान बेनीवाल ने मंगलवार को किया है. इस दौरान उन्होंने छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने के पीछे बीजेपी की मूक स्वीकृति बताई. साथ ही राज्यपाल के पद को फालतू बताते हुए केंद्र सरकार से इस पद को खत्म करने की भी अपील की.
सरकार के फैसले की निंदाः राज्य सरकार की ओर से छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाने का विरोध अभी जारी है. इस क्रम में अब आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने मुखर होते हुए सरकार के फैसले की निंदा की. साथ ही कहा कि छात्रसंघ चुनाव बंद होने पर विश्वविद्यालय और कॉलेज के छात्रों ने संघर्ष की शुरुआत की और छात्रसंघ चुनाव कराने का बीड़ा उठाया. इसे लेकर छात्रों ने आमरण अनशन किया, पुलिस की लाठियां खाई, मुकदमे दर्ज हुए, टंकी पर भी चढ़े. आमरण अनशन उनके सामने किया जाता है जो सरकार संवेदनशील हो, ये संवेदनहीन सरकार है.
गवर्नर के पद को बताया फालतूः उन्होंने कहा कि प्रदेश का राज्यपाल ही कुलाधिपति होता है जो यूनिवर्सिटी का मालिक होता है, लेकिन कमजोर राज्यपाल को पता ही नहीं की क्या हो रहा है. कई जगह राज्यपाल और मुख्यमंत्री आमने-सामने हो जाते हैं. ज्यादातर गवर्नर 80 उम्र के पार के बनाते हैं. जिन्हें राजनीति से हटाना होता है, उन्हें गवर्नर बनाकर बैठा दिया जाता है. उन्होंने गवर्नर के पद को फालतू बताते हुए कहा कि इनका चाय, नाश्ता और खाने का खर्चा देखें, जबकि गवर्नर सिर्फ डाकिए का काम करता है. देश में गवर्नर का पद ही नहीं होना चाहिए. ये सिर्फ फालतू का खर्चा है. इसके अलावा जितने भी फालतू के पद हैं, उनको भी खत्म किया जाए. उन्होंने पीएम मोदी पर तंज कहा कि वैसे भी उन्हें शौक है कि देश में वो दो ही लोग रहें, तो फिर वो भी हो जाएगा.
विपक्ष ने सत्ता पक्ष से हाथ मिला लियाः बीजेपी को कटघरे में खड़ा करते हुए बेनीवाल ने कहा कि विपक्ष ने सत्ता पक्ष से हाथ मिला लिया. अंदरखाने ये बात कर ली कि विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और कहीं ऐसा न हो कि पिछली बार की तरह जयपुर, जोधपुर सहित सभी बड़े विश्वविद्यालय हाथ से चल जाएं तो चुनाव से पहले किरकिरी हो जाएगी. उन्हें डर था कि कोई तीसरी ताकत राजस्थान में खड़ी हो जाएगी. छात्रसंघ चुनाव नहीं कराने को लेकर बीजेपी की मूक सहमति है. यही वजह है कि बीजेपी के किसी भी बड़े नेता का बयान और एबीवीपी ने एक भी आंदोलन नहीं किया.
सरकार पर बनाएंगे दबाव : उन्होंने कहा कि एक जमाना था जब वो भी इसी राजस्थान विश्वविद्यालय में अध्यक्ष रहे और बीजेपी-कांग्रेस में भी कई नेता इसी छात्र राजनीति से निकले हैं. छात्रसंघ चुनाव राजनीति की पहली सीढ़ी होती है. जो लोग बिना छात्रसंघ चुनाव लड़े राजनेता बनते हैं, उनमें एक कुंठा हमेशा रहती है कि ये तो कॉलेज या यूनिवर्सिटी प्रेसिडेंट था. सीएम में भी यही कुंठा थी, इसलिए उन्होंने छात्रसंघ चुनाव ही बैन कर दिया. बेनीवाल ने कहा सभी संगठनों को साथ आने का आह्वान किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव नजदीक है. इन्हीं में से कुछ पूर्व छात्र नेता कांग्रेस या बीजेपी से टिकट मांग रहे हैं, इसलिए वो नहीं आए. उनके बिना भी छात्रसंघ चुनाव कराने के लिए एक आंदोलन किया जाएगा. ये बिना किसी झंडे के तले होगा. इसमें छात्र नेता आगे रहेंगे और वो खुद बैक सपोर्ट में पीछे रहेंगे. सरकार पर दबाव बनाया जाएगा कि चुनाव की घोषणा इसी साल में करें.
बेनीवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने चुनाव नहीं करने का फैसला लिया, इससे राजस्थान में परमानेंट चुनाव बंद हो जाएंगे. पहले वसुंधरा सरकार भी छात्रसंघ चुनाव बंद कर चुकी हैं. इस बार सरकार ने सेमेस्टर सिस्टम लागू करने और लिंग दोह कमेटी की सिफारिशों का हवाला देकर छात्रसंघ चुनाव बंद किए हैं. नई एजुकेशन पॉलिसी 2020 में लागू हो चुकी है तो फिर 3 साल सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्या किया और यही सेमेस्टर सिस्टम दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी लागू है फिर भी वहां छात्रसंघ चुनाव हो रहे हैं तो यहां क्यों नहीं? यही नहीं पहले छात्रसंघ अध्यक्ष का एक रुतबा हुआ करता था, लेकिन लिंग दोह कमेटी की सिफारिशों को लाकर छात्रसंघ को कमजोर किया गया. सरकार का इंटरफेयर भी बढ़ गया. बेनीवाल ने कहा कि उनकी सरकार बनी तो एक बिल लाकर लिंगदोह कमेटी की सिफारिशें खत्म की जाएंगी.