फरीदाबाद: हरियाणा के जिला फरीदाबाद में एक अनोखा केस आया है. जिसमें एक बार फिर मां ने ये साबित कर दिया की वो वाकई किसी योद्धा से कम नहीं होती. उसके 5 साल के बच्चे की दोनों किडनी खराब हो गईं. जिसके बाद किडनी ट्रांसप्लांट करने के अलावा कोई विक्लप नहीं बचा. इसके बाद मां ने फैसला किया कि वो अपने बच्चे को किडनी देकर उसे नया जीवन दान देगी
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बच्चे की दोनों किडनीयां थी खराब: बिहार का रहने वाला 5 साल का ऋषभ काफी लंबे समय से क्रॉनिक किडनी रोग और हाइपरटेंशन नामक बीमारी से पीड़ित था. जिसकी वजह से उसकी दोनों किडनी खराब हो गई. डॉक्टर ने बताया की ऋषभ की किडनी खराब हो चुकी है और ट्रांसप्लांट (Child kidney transplant in Faridabad) करना होगा. जिसके बाद उसकी मां ने अपनी किडनी देने की बात कही.
मां ने दी बच्चे को किडनी: उसके बाद मां का मेडिकल चेकअप किया गया. जिसमें मां को डोनेशन के लिए पूरी तरह से फिट पाया गया. जिसके बाद लगातार 5 घंटे तक फरीदाबाद स्थित अकॉर्ड हॉस्पिटल में डॉक्टरों की टीम द्वारा जटिल ऑपरेशन किया गया. ऑपरेशन में नेफ्रोलॉजिस्ट डॉक्टर जितेंद्र कुमार, यूरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ जोशी और डॉ. वरुण कटियार की टीम ने यह सफल ट्रांसप्लांट किया.
कैसे होता है किडनी ट्रांसप्लांट: डॉक्टर जितेंद्र कुमार ने बताया कि हमारे छोटे बच्चों में ट्रांसप्लांट को लेकर सबसे ज्यादा दिक्कतें आती हैं, क्योंकि बच्चों को पूरी तरह से ऑपरेशन के लिए फिट किया जाता है. डायलिसिस किया जाता है. जिसके लिए लगभग 1 महीने का वक्त लगा. इसके अलावा बच्चे की मां ने बताया कि बच्चे को वो किडनी खुद देगी. आपको बता दें कि यदि फर्स्ट ब्लड रिलेशन जैसे माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी एक दूसरे को किडनी देते हैं. तो किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी के सफल होने के चांस 80-90 फीसदी रहते हैं. लेकिन दादा-दादी या बुआ-चाचा किडनी देना चाहते हैं तो सफल ऑपरेशन के 60-70 फीसदी चांस रहते हैं.
किडनी ट्रांसफर की प्रक्रिया: बच्चे का डायलिसिस पूरा होन के बाद डॉक्टरों ने मां का भी चेकअप किया. ताकि किडनी देने के बाद भी मां पूरी तरह से स्वस्थ रहे. हालांकि किडनी देने का प्रावधान यह है कि अगर मां-बाप या ब्लड रिलेशन के लोग किडनी देते हैं, तो उसके लिए जिस हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट होता है, उसी अस्पताल में एक कमेटी का गठन किया जाता है और किडनी देने या ना देने का फैसला पूरी तरह से कमेटी का ही होता है.
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किडनी डोनेट के लिए कमेटी देती है इजाजत: डॉक्टर जितेंद्र के मुताबिक किसी व्यक्ति को अगर अनजान व्यक्ति का किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है, तो ऐसे में सरकार के स्वास्थ्य विभाग की गठित कमेटी फैसला लेती है. इस केस में ब्लड रिलेशन मां-बेटे का रिश्ता था. इसलिए अकॉर्ड हॉस्पिटल की इंटरनल कमेटी ने फैसला लिया और किडनी ट्रांसप्लांट किया.
मां की किडनी बच्चे में ट्रांसप्लांट करना एक बड़ी चुनौती थी. हालांकि डॉक्टर की टीम ने बच्चे को एक महीने तक डायलिसिस करके पूरी तरह से ऑपरेशन के लिए फिट किया. इससे पहले 3 साल के बच्चे का भी किडनी ट्रांसप्लांट किया है लेकिन इस केस में बच्चा पूरी तरह से ठीक नहीं था. यही वजह है कि बच्चे को ठीक करने के लिए डॉक्टर को एक महीने का वक्त लगा. डॉ. जितेंद्र कुमार, सीनियर डॉक्टर और नेफ्रोलॉजिस्ट
एडल्ट की किडनी बच्चे में ट्रांसप्लांट करना मुश्किल: किडनी ट्रांसप्लांट करने वाले सीनियर सर्जन डॉक्टर सौरभ जोशी ने बताया कि हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी. एक मां की किडनी छोटे बच्चों में सेट करना एक कठिन काम होता है. क्योंकि जहां किडनी ट्रांसप्लांट करना है, वहां स्पेस सीमित होता है. लेकिन फिर भी हमारी टीम ने हार नहीं मानी और हमने अपनी मेहनत से 5 घंटे के ऑपरेशन में मां की किडनी को हार्वेस्ट करके बच्चे के शरीर में से सावधानी के साथ कनेक्ट किया. अब बच्चा पूरी तरह से ठीक है. बच्चा खेल रहा है, खाना खा रहा है. बच्चा हर एक एक्टिविटी कर रहा है. वहीं, किडनी देने वाली उनकी मां भी अब पूरी तरह से स्वस्थ है.
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बच्चे में होती है खून की कमी: इसके अलावा सर्जन डॉक्टर वरुण कटियार ने बताया कि सबसे ज्यादा जटिल काम होता है, छोटे बच्चों का किडनी ट्रांसप्लांट करना. क्योंकि इस सर्जरी में अत्यधिक खून की भी जरूरत पड़ती है और बच्चे के शरीर में खून की मात्रा कम होती है. सर्जरी करने वाली टीम में मुख्य रूप से डॉ. अनीशा नंदा, डॉ. पंकज, डॉ. सुखविंदर और डॉक्टर जितेंद्र समेत कई टीमें शामिल थीं.
बच्चे का सफल ऑपरेशन: ऑपरेशन सफल होने के बाद 5 साल के ऋषभ ने ईटीवी भारत से बातचीत की. इस दौरान ऋषभ ने अपने आप को पूरी तरह से फिट बताया. वहीं, अपने दोस्तों, मम्मी-पापा के बारे में भी बातें की. ऋषभ की मां सपना ने बताया कि जून 2023 में ऋषभ को तेज बुखार आया था. जिसके बाद उन्होंने बिहार में नजदीकी अस्पताल में उसका इलाज करवाया लेकिन उसकी स्थिति खराब हो गई. इसके बाद 4 जुलाई को पता चला कि बच्चे की किडनी खराब है. जिसके बाद बिहार के बड़े-बड़े हॉस्पिटलों के चक्कर लगाने लगे. लेकिन वहां सिर्फ पैसे की बर्बादी हुई और बच्चा ठीक नहीं हो रहा था. जिसके बाद बच्चे को लेकर दिल्ली आ गए. इसके बाद फरीदाबाद के इस अस्पताल के बारे में पता लगा.
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पिता ने डॉक्टर की टीम का जताया आभार: ऋषभ के पिता रंजन बीएसएफ में कार्यरत हैं. जैसे ही उनको बेटे की बीमारी के बारे में पता चला वो छुट्टी लेकर घर आ गए. बिहार में दर-दर की हमने ठोकर खाई. लेकिन बच्चे को सफल इलाज नहीं मिल पा रहा था. जिसके बाद फरीदाबाद में बच्चे का इलाज किया गया. आज बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है. उन्होंने डॉक्टर की इस सफल कामयाबी और सराहनीय कार्य के लिए उनका आभार व्यक्त किया.
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