नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ रही साख के बारे में बोलते हुए यह दावा किया कि जी-20 जो मुख्यत: एक आर्थिक विचार करने वाली परिषद होती है, उसको हमने वसुधैव कुटुंबकम की भावना देकर मानव का विचार करने वाली परिषद में बदल दिया है. दिल्ली में हाल ही में हुए जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन की तरफ इशारा करते हुए भागवत ने कहा कि जी-20 की बैठक भारत में हुई तो यह (बदलाव) होना ही था, क्योंकि यही भारत की प्रकृति (स्वभाव) है.
संघ प्रमुख भागवत ने नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में पृथ्वी सूक्त पुस्तक का लोकार्पण करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान राष्ट्र और राष्ट्रवाद को लेकर भारत और दुनिया के अन्य देशों की सोच के बीच बहुत बड़ा अंतर बताते हुए यह भी कहा कि ऋषियों की तपस्या और प्रकृति की कृपा से हम एक राष्ट्र हैं लेकिन बाहर के लोग राष्ट्र की बजाय नेशन कहते हैं क्योंकि उनकी एकता का आधार अलग-अलग है.
उन्होंने कहा कि भाषा के कारण आयरलैंड, स्कॉटलैंड, वेल्स और इंग्लैंड एक हुए और जब तक उनकी भाषा एक है, तब तक यूनाइटेड किंगडम की एकता बरकरार रहेगी. भागवत ने संयुक्त राज्य अमेरिका का जिक्र करते हुए कहा कि आर्थिक हित अमेरिका की एकता का आधार है और जब तक वो सुरक्षित है तब तक अमेरिका एक है. इसलिए अमेरिका की सारी पॉलिसी अमेरिका के आर्थिक हितों की रक्षा करने वाली ही होती है.
उन्होंने कहा कि अरब के लोगों को मोहम्मद साहब ने धर्म के आधार पर इकठ्ठा किया. भागवत ने राष्ट्र और राष्ट्रवाद को लेकर दुनिया के अन्य देशों में फैले डर के कारण को स्पष्ट करते हुए आगे कहा कि इसलिए बाहर के देश राष्ट्र और राष्ट्रवाद से डरते हैं, क्योंकि उनके यहां राष्ट्रवाद का सबसे ताजा उदाहरण जो सबकी याद में है वो हिटलर है. इसलिए वहां सब डरते हैं.
भागवत ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए इस बात का जिक्र भी किया कि एक बार घर वापसी को लेकर संसद और देश में मचे हंगामे के बीच मुलाकात के दौरान प्रणव मुखर्जी ने उनसे कहा था कि सेक्युलरिज़्म के नाम पर भारत को किसी की सीख की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत सिर्फ संविधान के कारण ही सेक्युलयर नहीं है, बल्कि हमारी पांच हज़ार साल की संस्कृति के कारण हम स्वभाव से ही सेक्युलयर हैं.
भारत की प्राचीन विरासत, परंपरा और इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि हमें मिले ज्ञान को दुनिया भर में पहुंचाने के लिए ऋषियों ने विचारपूर्वक और तपस्यापूर्वक भारत राष्ट्र का निर्माण किया और भारत के अस्तित्व का एकमात्र प्रयोजन दुनिया का सिरमौर बनना नहीं है, बल्कि भारत को दुनिया को यह सिखाना है कि विविधता में एकता नहीं बल्कि एकता की ही विविधता है. दुनिया को सिखाना है कि हम सब एक हैं.
उन्होंने कहा कि जितनी विविधता इस देश में है वो सारी विविधता अपनी मूल एकता को ध्यान में रखते हुए परस्पर व्यवहार का उत्तम आदर्श दुनिया के सामने रखेगी और संपूर्ण दुनिया को यह सिखाएगी कि यह पृथ्वी माता है और हम उसके पुत्र हैं, उसके मालिक नहीं है. उन्होंने कहा कि दुनिया को ज्ञान देने के लिए भारत खड़ा हो, इसके लिए जितने सामर्थ्य की आवश्यकता है उतना सामर्थ्य होना चाहिए. जितनी संपत्ति आवश्यक हो, उतनी संपत्ति होनी चाहिए. केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भी कार्यक्रम में अपने विचार रखें.