करनाल: हरियाणा में किसानों का सिर फोड़ दो वाला बयान देने वाले एसडीएम पर कार्रवाई की मांग को लेकर किसान तीन दिन से धरने (Farmers Protest Karnal) पर बैठे हैं. आज किसानों के धरने का चौथा दिन है. किसानों के धरने को देखते हुए प्रशासन सतर्क हो गया है. हालांकि तीन दिन के बैन के बाद आज से करनाल में इंटरनेट सेवाएं बहाल (Mobile internet services resumed) कर दी गई हैं.
सहायक जिला पीआरओ रघुबीर सिंह ने इस बारे में कहा कि अब इन सेवाओं को फिर से निलंबित करने की कोई योजना नहीं है. बता दें कि किसानों की महापंचायत और प्रदर्शन को देखते हुए प्रशासन ने अहतियात के तौर पर इंटरनेट और मैसेज सेवाओं को बंद (Mobile Service Ban In Karnal) कर दिया था. जिसके बाद इस पाबंदी को तीन दिन तक बढ़ाया गया. इस बीच स्थानीय निवासियों और व्यापारियों को इंटरनेट बंद होने से काफी परेशानी हुई. सबसे ज्यादा परेशानी छात्रों को हुई.
कोरोना महामारी के बाद से ज्यादातर बच्चे घर बैठे ही ऑनलाइन पढ़ाई करते हैं. करनाल में इंटरनेट बंद होने से बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पाए. ऐसा ही हाल दुकानदारों का रहा. अब ज्यादातर पेमेंट ऑनलाइन तरीके से होती है. ग्राहक दुकानदारों को क्यूआर कोड स्कैन करके ही ऑनलाइन पमेंट करता है. इंटरनेट बंद होने ग्राहकों और दुकानदारों को भी काफी समस्या हुई. इन सब समस्याओं के देखते हुए प्रशासन ने मैसेज और इंटरनेट सेवा को फिर से चालू कर दिया है.
क्या है पूरा विवाद
दरअसल बीते दिनों सीएम का एक कार्यक्रम करनाल में था जिसका विरोध किसान कर रहे थे, इसकी सुरक्षा का जिम्मा तत्कालीन एसडीएम आयुष सिन्हा के हाथों में था. उसी वक्त का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें आयुष सिन्हा कहते दिख रहे हैं कि जो भी किसान यहां आने की कोशिश करे उसका सिर फोड़ देना, इसी पर किसान भड़के हुए हैं. और करनाल लघु सचिवालय के बाहर धरना दे रहे हैं, जिसमें राकेश टिकैत भी शामिल हुए थे.
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किसानों की मांगें
इससे पहले 28 अगस्त को हुए लाठीचार्ज के विरोध में किसानों ने तीन मांगें सरकार के सामने रखी थी. पहली मांग ये है कि एसडीएम सहित जिन सरकारी अधिकारियों ने लाठीचार्ज किया था, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो. दूसरी मांग ये है कि जिस किसान की मौत हुई है, उसके परिवार को 25 लाख का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी दी जाए. तीसरी मांग ये है कि पुलिस की लाठीचार्ज से घायल हुए सभी किसानों को दो-दो लाख रुपये की सहायता राशि प्रदान की जाए. इन तीनों मांगों को मानने के लिए किसानों ने सरकार को 6 सितंबर तक का अल्टीमेटम दिया था, लेकिन सरकार ने इन मांगों को मानने से साफ इनकार कर दिया था.