नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले धड़े से सवाल किया कि क्या महा विकास आघाड़ी (एमवीए) में गठबंधन को जारी रखने की शिवसेना पार्टी की इच्छा के खिलाफ जाने का कदम ऐसी अनुशासनहीनता है, जिसके कारण उन्हें अयोग्य ठहराया जा सकता है.
शिंदे गुट ने अपने रुख का बचाव करते हुए कहा कि विधायक दल मूल राजनीतिक दल का एक अभिन्न अंग है. उसने कहा कि पार्टी द्वारा पिछले साल जून में दो व्हिप नियुक्त किए गए थे और उसने उस व्हिप की बात का पालन किया, जिसने कहा था कि वह राज्य में गठबंधन जारी नहीं रखना चाहता है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने शिंदे धड़े की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल से कहा, 'यदि आप गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहते हैं, तो इसका फैसला सदन (विधानसभा) के बाहर कीजिए.'
उसने कहा, 'सदन के अंदर आप पार्टी के अनुशासन से बंधे हैं. राज्यपाल को आपके द्वारा यह पत्र लिखना कि आप एमवीए गठबंधन के साथ बने नहीं रहना चाहते, स्वयं अयोग्य ठहराए जाने के कारण के समान है. राज्यपाल ने पत्र पर गौर करके पार्टी में विभाजन को वास्तव में मान्यता दी.' कौल ने कहा कि राज्यपाल एस आर बोम्मई मामले में नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 1994 के फैसले से बंधे हैं कि अंत में बहुमत का परीक्षण सदन के पटल पर होना चाहिए. इसपर 2020 में शिवराज सिंह चौहान मामले में भरोसा किया गया था.
उन्होंने कहा, 'राज्यपाल इस अदालत के फैसले से बंधे हुए थे और उन्होंने शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था. उन्हें और क्या करना चाहिए था.' इस पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल थे. पीठ ने कौल को यह बताने के लिए कहा कि राज्यपाल के समक्ष कौन सी ऐसी प्रासंगिक सामग्री थी, जिसके आधार पर उन्होंने शक्ति परीक्षण के लिए कहा.
उसने कहा, 'सरकार चल रही थी. क्या राज्यपाल मुख्यमंत्री से शक्ति परीक्षण के लिए कह सकते हैं? अगर यह चुनाव के बाद होता, तो यह अलग मामला होता. जब सरकार बनती है, तो कोई भी समूह यूं ही नहीं कह सकता कि हम इस गठबंधन का हिस्सा नहीं रह सकते. आप बताएं कि वे कौन से बाध्यकारी कारण थे, जिसके कारण राज्यपाल को तत्कालीन मुख्यमंत्री को सदन में बहुमत साबित करने के लिए कहना पड़ा? राज्यपाल को किस चीज ने आपको सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कहने से रोका.'
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पूछा कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई किसी सरकार को बहुमत साबित करने के लिए क्यों कहा जाना चाहिए और क्या राज्यपाल प्रतिद्वंद्वी समूह को मान्यता देकर दल-बदल को वैध नहीं बनाते हैं, जो दसवीं अनुसूची के तहत अन्यथा अस्वीकार्य है. उन्होंने कहा, 'हां, हम इस बात से सहमत हैं कि सांसद/ विधायक के खिलाफ अयोग्यता याचिका के केवल लंबित होने के आधार पर विधायक को शक्ति परीक्षण में भाग लेने से नहीं रोका जा सकता.' इस मामले पर सुनवाई बुधवार को भी जारी रहेगी.
(पीटीआई-भाषा)