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विधायक बसंत सोरेन की सदस्यता पर संकट! चुनाव आयोग ने राजभवन को भेजा मंतव्य

विधायक बसंत सोरेन के मामले में चुनाव आयोग की रिपोर्ट राजभवन को भेजा गया (report sent to Raj Bhavan on Basant Soren case) है. इसको लेकर अभी राजभवन पुष्टि नहीं कर पा रहा है. सीलबंद लिफाफे में चुनाव आयोग की रिपोर्ट में क्या है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है.

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विधायक बसंत सोरेन
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Published : Sep 10, 2022, 9:44 AM IST

रांचीः माइनिंग लीज से जुड़े मामले में फंसे दुमका विधायक बसंत सोरेन के मामले में भी चुनाव आयोग का मंतव्य राजभवन को मिल जाने की सूचना (report sent to Raj Bhavan on Basant Soren case) है. हालांकि इसको लेकर अभी राजभवन पुष्टि नहीं कर पा रहा है. बंद लिफाफे में चुनाव आयोग द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में क्या है, इसका खुलासा नहीं हो पाया है.

इसे भी पढे़ं- विधायक बसंत सोरेन की बढ़ सकती है मुश्किलें, चुनाव आयोग ने फैसला रखा सुरक्षित

चुनाव आयोग ने बसंत सोरेन के मामले (MLA Basant Soren mining lease case) में बीते 29 अगस्त को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारतीय जनता पार्टी के द्वारा इस मामले में शिकायत की गई थी. हालांकि बसंत सोरेन द्वारा चुनाव आयोग को अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को निराधार बताते हुए सफाई दी थी. दोनों पक्षों की ओर से कई तिथियों में हुई सुनवाई के बाद 29 अगस्त को सुनवाई पूरी कर चुनाव आयोग ने फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद अब बसंत सोरेन के मामले में आया चुनाव आयोग का मंतव्य, सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.

क्या हुआ था पिछली सुनवाई मेंः दुमका विधायक बसंत सोरेन मामले में 29 अगस्त (सोमवार) को नई दिल्ली स्थित भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) में सुनवाई हुई. जिसमें झारखंड बीजेपी की लीगल टीम के प्रतिनिधि शैलेश मंडियाल ने बताया कि प्रीलिमनरी ऑबजेक्शन पर बहस हुई है. दोनों पक्षों ने अपनी बात चुनाव आयोग में रखी. वहीं, बसंत सोरेन की लीगल टीम के प्रतिनिधि एसके मेद्रीरता ने कहा कि डिसक्वालीफिकेशन का केस है तो भी यह प्री इलेक्शन डिसक्वालीफिकेशन केस है. एसके मेद्रीरता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का 1952 से लेकर अब तक यही फैसला है, जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग और गवर्नर की जूरिडक्शन सिर्फ वहीं आती है जहां पर डिसक्वालीफिकेशन एमएलए बनने के बाद हो. अगर पहले से कोई डिसक्वालीफिकेशन चल रहा है और बाद में भी चल रहा है तो उसके लिए इलेक्शन पिटिशन पर सुनवाई होती है. इस तरह मामले को सुनने का क्षेत्राधिकार किसे है वह तय होना चाहिए. चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. बसंत सोरेन इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग को पहले ही अपना जवाब भेज चुका है. इस मामले में 22 अगस्त को पहले सुनवाई होनी थी. लेकिन तिथि बढ़ाकर आयोग ने 29 अगस्त को मामले पर सुनवाई की थी.


बसंत सोरेन पर आरोपः भारतीय जनता पार्टी ने राज्यपाल से मिलकर यह शिकायत की थी कि मुख्यमंत्री के छोटे भाई और दुमका के विधायक बसंत सोरेन पश्चिम बंगाल की कंपनी चंद्रा स्टोन के मालिक दिनेश कुमार सिंह के बिजनेस पार्टनर है. बसंत सोरेन पार्टनरशिप में मैसर्स ग्रैंड माइनिंग नामक कंपनी भी चलाते हैं. पाकुड़ में चल रही माइनिंग के काम में भूपेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह और बसंत सोरेन पार्टनर के रूप में है. यह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का बनता है. राजभवन को मिली शिकायत के बाद इसकी जानकारी भारत निर्वाचन आयोग को दी गई थी जिसके बाद चुनाव आयोग नई दिल्ली के द्वारा बसंत सोरेन को 5 मई 2022 को नोटिस दी गई थी बसंत सोरेन ने लगभग डेढ़ सौ पन्नों का जवाब आयोग को सौंपा था और अपने आप को निर्दोष बताया था.

रांचीः माइनिंग लीज से जुड़े मामले में फंसे दुमका विधायक बसंत सोरेन के मामले में भी चुनाव आयोग का मंतव्य राजभवन को मिल जाने की सूचना (report sent to Raj Bhavan on Basant Soren case) है. हालांकि इसको लेकर अभी राजभवन पुष्टि नहीं कर पा रहा है. बंद लिफाफे में चुनाव आयोग द्वारा भेजी गई रिपोर्ट में क्या है, इसका खुलासा नहीं हो पाया है.

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चुनाव आयोग ने बसंत सोरेन के मामले (MLA Basant Soren mining lease case) में बीते 29 अगस्त को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. भारतीय जनता पार्टी के द्वारा इस मामले में शिकायत की गई थी. हालांकि बसंत सोरेन द्वारा चुनाव आयोग को अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को निराधार बताते हुए सफाई दी थी. दोनों पक्षों की ओर से कई तिथियों में हुई सुनवाई के बाद 29 अगस्त को सुनवाई पूरी कर चुनाव आयोग ने फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के बाद अब बसंत सोरेन के मामले में आया चुनाव आयोग का मंतव्य, सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.

क्या हुआ था पिछली सुनवाई मेंः दुमका विधायक बसंत सोरेन मामले में 29 अगस्त (सोमवार) को नई दिल्ली स्थित भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) में सुनवाई हुई. जिसमें झारखंड बीजेपी की लीगल टीम के प्रतिनिधि शैलेश मंडियाल ने बताया कि प्रीलिमनरी ऑबजेक्शन पर बहस हुई है. दोनों पक्षों ने अपनी बात चुनाव आयोग में रखी. वहीं, बसंत सोरेन की लीगल टीम के प्रतिनिधि एसके मेद्रीरता ने कहा कि डिसक्वालीफिकेशन का केस है तो भी यह प्री इलेक्शन डिसक्वालीफिकेशन केस है. एसके मेद्रीरता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट का 1952 से लेकर अब तक यही फैसला है, जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयोग और गवर्नर की जूरिडक्शन सिर्फ वहीं आती है जहां पर डिसक्वालीफिकेशन एमएलए बनने के बाद हो. अगर पहले से कोई डिसक्वालीफिकेशन चल रहा है और बाद में भी चल रहा है तो उसके लिए इलेक्शन पिटिशन पर सुनवाई होती है. इस तरह मामले को सुनने का क्षेत्राधिकार किसे है वह तय होना चाहिए. चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. बसंत सोरेन इस मामले में भारत निर्वाचन आयोग को पहले ही अपना जवाब भेज चुका है. इस मामले में 22 अगस्त को पहले सुनवाई होनी थी. लेकिन तिथि बढ़ाकर आयोग ने 29 अगस्त को मामले पर सुनवाई की थी.


बसंत सोरेन पर आरोपः भारतीय जनता पार्टी ने राज्यपाल से मिलकर यह शिकायत की थी कि मुख्यमंत्री के छोटे भाई और दुमका के विधायक बसंत सोरेन पश्चिम बंगाल की कंपनी चंद्रा स्टोन के मालिक दिनेश कुमार सिंह के बिजनेस पार्टनर है. बसंत सोरेन पार्टनरशिप में मैसर्स ग्रैंड माइनिंग नामक कंपनी भी चलाते हैं. पाकुड़ में चल रही माइनिंग के काम में भूपेंद्र सिंह, नरेंद्र सिंह और बसंत सोरेन पार्टनर के रूप में है. यह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का बनता है. राजभवन को मिली शिकायत के बाद इसकी जानकारी भारत निर्वाचन आयोग को दी गई थी जिसके बाद चुनाव आयोग नई दिल्ली के द्वारा बसंत सोरेन को 5 मई 2022 को नोटिस दी गई थी बसंत सोरेन ने लगभग डेढ़ सौ पन्नों का जवाब आयोग को सौंपा था और अपने आप को निर्दोष बताया था.

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