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दिल्ली : कोरोना काल में 'चश्म ए तगाफुल' गालिब की हवेली

मशहूर शायर मिर्जा गालिब की 223वीं जयंती है. लेकिन इस साल कोरोना का साया ऐसा है कि गालिब की हवेली भी बंद है और आज सुबह से ही गालिब की हवेली देखने आ रहे लोगों को मायूस लौटना पड़ा रहा है. या यूं कहें कि कोरोना काल में गालिब की हवेली को 'चश्म ए तगाफुल' (नजरअंदाज) किया जा रहा है.

गालिब
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Published : Dec 27, 2020, 10:45 PM IST

नई दिल्ली : मशहूर शायर मिर्जा गालिब की जब भी बात होती है, तो उनके शेरों-गजलों के साथ आगरा से लेकर दिल्ली तक की चर्चा होती है, लेकिन इन सबके बीच निगाहें आकर ठहर जातीं हैं, मिर्जा गालिब की हवेली पर. कहने को यह गालिब की हवेली है, लेकिन बल्लीमारान की गली कासिम जान में अगर आप गालिब की हवेली ढूंढना चाहें, तो बहुत मशक्कत करनी पड़ सकती है.

'बंद है गालिब की हवेली'

कुछ ऐसी ही परेशानी से आज रूबरू हुए नांगलोई से गालिब की हवेली देखने आए दो युवा. लेकिन इन्हें निराशा हाथ लगी, जब पता चला कि गालिब की हवेली बंद है. दरअसल, कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद गालिब की हवेली आम लोगों के लिए बंद कर दी गई थी. तब से अब तक तमाम स्मारक और दर्शनीय स्थल खुल चुके हैं, लेकिन यहां अब तक ताले लगे हैं.

'मायूस लौटे हवेली देखने आए लोग'

गालिब की हवेली के गार्ड ने बताया कि मार्च से ही यह बंद है और इस बीच हमेशा लोग यहां आते हैं, लेकिन आज चूंकि गालिब की जयंती है, इसलिए ज्यादा लोग आज आ रहे हैं. गालिब का स्मारक देखने के लिए नांगलोई से आए राहुल मित्तल ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि लंबे समय से यहां आने का सोचा था, लेकिन आज आए तो हवेली बंद है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

पढ़ें - फटाफट लोन देने वालों से रहें बचके, मौत के कुएं में ढकेल रहे मोबाइल ऐप के जरिए लोन देने वाले!

'अतिक्रमण की शिकार हवेली'

आपको बता दें कि गालिब की हवेली दो हिस्सों में है. पहले हिस्से में गालिब के शेर फ्रेम करके लगाए गए हैं और उनसे जुड़ी कुछ वस्तुएं रखी गईं हैं, वहीं दूसरे कमरे में गालिब के दीवान हैं. वहीं यहां उनकी मूर्ति भी है, जो गुलजार ने लगवाई है, लेकिन इस हवेली का एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमण का शिकार है. हवेली के पैसेज में ही धूल फांकती बाइक खड़ी हैं और इन सब को देखकर गालिब का ही एक शेर याद आता है- 'हमने माना कि तगाफुल न करोगे, लेकिन खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक...'

नई दिल्ली : मशहूर शायर मिर्जा गालिब की जब भी बात होती है, तो उनके शेरों-गजलों के साथ आगरा से लेकर दिल्ली तक की चर्चा होती है, लेकिन इन सबके बीच निगाहें आकर ठहर जातीं हैं, मिर्जा गालिब की हवेली पर. कहने को यह गालिब की हवेली है, लेकिन बल्लीमारान की गली कासिम जान में अगर आप गालिब की हवेली ढूंढना चाहें, तो बहुत मशक्कत करनी पड़ सकती है.

'बंद है गालिब की हवेली'

कुछ ऐसी ही परेशानी से आज रूबरू हुए नांगलोई से गालिब की हवेली देखने आए दो युवा. लेकिन इन्हें निराशा हाथ लगी, जब पता चला कि गालिब की हवेली बंद है. दरअसल, कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद गालिब की हवेली आम लोगों के लिए बंद कर दी गई थी. तब से अब तक तमाम स्मारक और दर्शनीय स्थल खुल चुके हैं, लेकिन यहां अब तक ताले लगे हैं.

'मायूस लौटे हवेली देखने आए लोग'

गालिब की हवेली के गार्ड ने बताया कि मार्च से ही यह बंद है और इस बीच हमेशा लोग यहां आते हैं, लेकिन आज चूंकि गालिब की जयंती है, इसलिए ज्यादा लोग आज आ रहे हैं. गालिब का स्मारक देखने के लिए नांगलोई से आए राहुल मित्तल ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि लंबे समय से यहां आने का सोचा था, लेकिन आज आए तो हवेली बंद है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

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'अतिक्रमण की शिकार हवेली'

आपको बता दें कि गालिब की हवेली दो हिस्सों में है. पहले हिस्से में गालिब के शेर फ्रेम करके लगाए गए हैं और उनसे जुड़ी कुछ वस्तुएं रखी गईं हैं, वहीं दूसरे कमरे में गालिब के दीवान हैं. वहीं यहां उनकी मूर्ति भी है, जो गुलजार ने लगवाई है, लेकिन इस हवेली का एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमण का शिकार है. हवेली के पैसेज में ही धूल फांकती बाइक खड़ी हैं और इन सब को देखकर गालिब का ही एक शेर याद आता है- 'हमने माना कि तगाफुल न करोगे, लेकिन खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक...'

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