देहरादून : राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी के अथक प्रयासों से लैंसडाउन में डॉप्लर रडार की स्थापना के लिए रक्षा मंत्रालय ने स्वीकृति प्रदान कर दी है. ये रडार छावनी परिसर में लगेगा. डॉप्लर रडार के लगने से रुद्रप्रयाग, चमोली और पौड़ी जिले के मौसम के पूर्वानुमान में बड़ी मदद मिलेगी.
राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट साझा करते हुए लिखा कि रक्षा मंत्रालय ने लैंसडाउन छावनी क्षेत्र में लगने वाले डॉप्लर रडार के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी है. सेना के नियमों व सुरक्षा मानकों के कारण यह कार्य लंबे समय से अटका हुआ था.
बलूनी ने बताया कि उन्होंने इस संबंध में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भेंट की थी. अनेक बार रक्षा सचिव सहित रक्षा मंत्रालय के अनेक अधिकारियों से इस बारे में निरंतर चर्चा की. जिसके बाद इसे लगाने के लिए स्वीकृति प्रदान कर दी गई है. लैंसडाउन में डॉप्लर रडार की स्थापना से रुद्रप्रयाग, चमोली और पौड़ी क्षेत्र के मौसम के पूर्वानुमान में बड़ी मदद मिलेगी. दो अन्य डॉपलर रडार सुरकंडा (टिहरी) और मुक्तेश्वर (नैनीताल) की स्थापना प्रगति पर है.
डॉप्लर रडार की खासियत
- डॉप्लर वेदर रडार्स (Doppler Weather Radars- DWR)
- इस रडार के जरिए बादलों के फटने जैसी घटनाओं के होने से पहले ही जानकारी मिल जाएगी.
- बारिश, तूफान या अंधड़ के साथ तेज हवाओं के यहां पहुंचने से पहले ही जानकारी मिल जाने से जरूर एहतियात बरतना भी आसान हो जाएगा.
- डॉप्लर वेदर रडार से 400 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
- यह रडार डॉप्लर इफेक्ट का इस्तेमाल कर अतिसूक्ष्म तरंगों को भी कैच कर लेता है.
- जब अतिसूक्ष्म तरंगें किसी भी वस्तु से टकराकर लौटती हैं तो यह रडार उनकी दिशा को आसानी से पहचान लेता है.
- इस तरह हवा में तैर रहे अतिसूक्ष्म पानी की बूँदों को पहचानने के साथ ही उनकी दिशा का भी पता लगा लेता है.
- यह बूंदों के आकार, उनकी रडार दूरी सहित उनके रफ्तार से संबंधित जानकारी को हर मिनट अपडेट करता है.
- इस डाटा के आधार पर यह अनुमान पता कर पाना मुश्किल नहीं होता कि किस क्षेत्र में कितनी वर्षा होगी या तूफान आएगा.
- मध्य और पश्चिमी हिमालय को कवर करते हुए ये द्विध्रुवीकृत रडार वायुमंडलीय बदलाव संबंधी डेटा एकत्रित करेंगे और चरम मौसमी घटनाओं के संकेत देंगे.
- डॉप्लर वेदर रडार्स की डिजाइनिंग और विकास का कार्य ISRO द्वारा किया गया है और इसका निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बंगलूरू द्वारा किया गया है.
- उत्तराखंड और हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने, भूस्खलन, भारी बारिश और बर्फबारी का खतरा बना रहता है. मौसम का पूर्वानुमान और चेतावनी सरकारों को समय रहते अग्रिम योजना बनाने और बचाव के उपाय करने में सहायक होगी.
- विशेषज्ञों के अनुसार, डॉप्लर वेदर रडार ऊंचाई वाले स्थानों पर लगाया जाता है ताकि सूक्ष्म से सूक्ष्म तरंग भी बिना किसी बाधा के रडार तक पहुंच सके.
- एक रडार की कीमत लगभग दस करोड़ रुपए है.
पढ़ें - जूठी थाली में खाना परोसता है IRCTC का ये स्टॉल
गौर हो कि राज्य में 2013 में आई आपदा के बाद उत्तराखण्ड में डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाने की मांग उठती रही है क्योंकि मौसम विभाग प्रदेश में 16 जून 2013 को आई प्राकृतिक आपदा के बारे में सटीक जानकारी नहीं दे पाया था. मौसम विभाग ने 14 जून को 48 घंटे भारी बारिश के लिये अलर्ट तो जारी किया था लेकिन किसी स्थान विशेष में बारिश की स्थिति क्या होगी इसकी सूचना नहीं दे पाया था. इस आपदा में हजारों लोगों की मौत हुई थी.