नई दिल्ली: भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना ने मंगलवार को कहा कि मीडिया को खुद को ईमानदार पत्रकारिता तक ही सीमित रखना चाहिए और पत्रकारिता को अपने प्रभाव व व्यावसायिक हितों का विस्तार करने के लिए एक साधन के रूप में उपयोग नहीं करना चाहिए. न्यायमूर्ति रमण ने कहा, 'अन्य व्यावसायिक हितों' वाला मीडिया घराना बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है और अक्सर व्यावसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता की भावना पर हावी हो जाते हैं , जिसके चलते लोकतंत्र से समझौता हो जाता है.'
वह गुलाब चंद कोठारी की किताब 'द गीता विज्ञान उपनिषद' के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने की. पिछले हफ्ते भी प्रधान न्यायाधीश ने इसी तरह की चिंताएं जाहिर करते हुए कहा था कि मीडिया द्वारा 'एजेंडा आधारित बहसें' और 'कंगारू कोर्ट' चलाए जा रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं.
न्यायमूर्ति रमना ने मंगलवार को कहा, 'जब किसी मीडिया हाउस के अन्य व्यावसायिक हित होते हैं, तो वह बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है. अक्सर, व्यावसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता की भावना पर हावी हो जाते हैं. नतीजतन, लोकतंत्र से समझौता हो जाता है.' उन्होंने कहा, 'पत्रकार जनता की आंख और कान होते हैं. तथ्यों को पेश करना मीडिया घरानों की जिम्मेदारी है.
विशेष रूप से भारतीय सामाजिक परिदृश्य में लोग अब भी मानते हैं कि जो कुछ भी छपा है वह सच है. मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि मीडिया को अपने प्रभाव और व्यावसायिक हितों का विस्तार करने के लिए पत्रकारिता को एक साधन के रूप में उपयोग किए बिना खुद को ईमानदार पत्रकारिता तक ही सीमित रखना चाहिए.' उन्होंने याद करते हुए कहा कि 'व्यावसायिक हितों के बिना भी मीडिया घराने, आपातकाल के काले दिनों में लोकतंत्र के लिए लड़ने में सक्षम थे.'
प्रधान न्यायाधीश ने साथ ही यह भी कहा कि अपनी भाषाओं को वह सम्मान देकर जिसकी वे हकदार हैं और युवाओं को ऐसी भाषाओं में सीखने व सोचने के लिए प्रोत्साहित करके राष्ट्र को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना उनके दिल के बेहद करीब है. सीजेआई ने कहा, 'भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना मेरे दिल के बहुत करीब है.
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मैं वास्तव में मानता हूं कि अपनी भाषाओं को वह सम्मान देकर जिसकी वे हकदार हैं और युवाओं को ऐसी भाषाओं में सीखने व सोचने के लिए प्रोत्साहित करके राष्ट्र को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद कर सकते हैं.' अंग्रेजी की जगह हिंदी के इस्तेमाल को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर विवाद खड़ा हो गया था. द्रमुक और टीएमसी जैसे क्षेत्रीय दलों सहित कई विपक्षी पार्टियों ने इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया था और 'हिंदी साम्राज्यवाद' को थोपने के किसी भी प्रयास को विफल करने का संकल्प लिया था.