नारायणपुर: स्थानीय बृजमोहन देवांगन बताते हैं कि " मेला का इतिहास 200 साल पुराना है. ये मेला दो तीन स्थल बदलकर रविवार बाजार में आ गया. इसी स्थल से मावली मेले का कार्यक्रम शुरू होता है. सबसे पहले कोकोड़ी राजटेका माता से मेले की अनुमति मिलती है. उसके बाद यहां मावली माता मेले का भ्रमण करने निकलती है. साढ़े तीन परिक्रमा के बाद मेले की अनुमति मिलती है. जिसके बाद आम आदमी मेले का आनंद लेता हैं. "
माता मावली मेले की मान्यता: बृजमोहन देवांगन बताते हैं. माता मावली, दंतेश्वरी मां की बड़ी बहन है. पूरे बस्तर में सिर्फ नारायणपुर में ही मावली मेला मनाया जाता है. मां दंतेश्वरी की बड़ी बहन होने के नाते यह प्रसिद्ध हैं. बस्तर की संस्कृति और परंपरा को देखना है तो नारायणपुर के ऐतिहासिक मावली मेला में दर्शन होंगे. जिसमें देवी देवता, अंगा देव, डोली ध्वज देखने को मिलेगा. पांच दिवसीय मेला का बुधवार को पहला दिन है. रविवार तक चलेगा. मेले का अब सरकारीकरण हो चुका है. जिससे परघाव के बाद मेला आनंद मेले का रूप ले लेता है. धान बेचने के बाद किसान भी आनंद से मेला घूमता है और मनोरंजन करता है. "
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हीरा सिंह देहारी बताते हैं " माता मावली मेले की शुरुआत होने की सटीक जानकारी ठीक से तो नहीं बता सकते. पूर्वजों से ही सुनते आ रहे हैं. आदिवासी मावली माता को अपना इष्ट देव मानते हैं. सन 1300 ईंसवी में बस्तर महाराजा आए और मां दंतेश्वरी की तर्ज पर इसे मनाने लगे. जिससे महत्व और बढ़ गया. भीड़भाड़ भी बढ़ गई. यहां आदिवासियों का नृत्य उनके रहन सहन देखने विदेशी भी यहां पहुंचते हैं. आदिवासी जंगल से मिलने वाले वनोपज मेला स्थल लाते हैं और उसे बेचकर अपनी जरूरत की सामग्री खरीदकर ले जाते हैं.
मावली मेले में शाम को सांसकृतिक कार्यक्रम: पांच दिवसीय मावली मेले में हर रोज शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. 16 फरवरी को अंजोर लोक कला मंच रायपुर की प्रस्तुति. 17 फरवरी को जशपुर नाइट, 18 फरवरी को अहम ब्रम्हास्मि द बैंड, 19 फरवरी को दुर्ग रायपुर के कलाकार प्रस्तुति देंगे.
मन की बात में मावली मेले का जिक्र: नारायणपुर के ऐतिहासिक मावली मेले का जिक्र पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में की थी. उन्होंने कहा था कि मावली मेला आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है.