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मकबूल शेरवानी : पाक आक्रमणकारियों के खिलाफ भारतीय सेना के मददगार

भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने के मौके पर 'आजादी की अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है. इसके तहत देशभर में पूरे साल अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. देश की आजादी के अलावा आक्रमणकारियों से लोहा लेने वाले वीर सपूतों के योगदान को याद किया जा रहा है. ईटीवी भारत आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों से संबंधित सपूतों की शौर्यगाथा बता रहा है. इसी कड़ी में प्रस्तुत है जम्मू-कश्मीर के मकबूल शेरवानी (Maqbool Sherwani) के जीवन पर विशेष रिपोर्ट.

मकबूल शेरवानी
मकबूल शेरवानी
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Published : Oct 24, 2021, 5:03 AM IST

Updated : Oct 24, 2021, 6:29 AM IST

श्रीनगर : 1947 में जब पाकिस्तान के आदिवासियों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और वह बारामूला में दाखिल हुए, तब मकबूल शेरवानी (Maqbool Sherwani), जिन्हें शेरवानी के नाम से जाना जाता है, उन्होंने आक्रमणकारियों को गलत रास्ता दिखाया ताकि, उन्हें श्रीनगर की ओर बढ़ने में देर हो जाए और भारतीय सेना को श्रीनगर हवाई अड्डे (Srinagar Airport) को अपने नियंत्रण में करने का मौका मिल सके.

दरअसल, 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी कबायली लोगों ने सीमा पार कर कश्मीर पर आक्रमण (invaded Kashmir) कर दिया था. कुछ समय बाद कश्मीर के महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh of Kashmir) श्रीनगर से निकले और भारतीय सैन्य सहायता (Indian military assistance) लेने के लिए जम्मू पहुंचे. 26 अक्टूबर को महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि (treaty of accession) पर हस्ताक्षर किए.

संधि पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आदिवासियों के खिलाफ अभियान शुरू किया. इस अभियान के दौरान भारतीय सेना पाक आक्रमणकारियों को लंबी लड़ाई के बाद पीछे ढकेलने में सफल रही.

मकबूल शेरवानी ने की भारतीय सेना की मदद, देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट

1947 की घटनाओं में मकबूल शेरवानी को एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है. सेना ने उनके नाम पर एक स्मारक भी बनाया है. हालांकि, आदिवासियों ने 22 वर्षीय शेरवानी की बाद में हत्या कर दी थी.

बारामूला नगर समिति के अध्यक्ष (Baramulla Municipal Committee Chairman) तौसीफ रैना (Tauseef Rena ) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) से दिवंगत मकबूल शेरवानी (late Maqbool Sherwani ) के नाम पर एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की अपील की. उन्होंने कहा कि ऐसा करने से लोग देश की सुरक्षा के लिए दिए गए मकबूल शेरवानी के महान बलिदान से परिचित हो सकेंगे और आने वाली पीढ़ी भी शेरवानी के व्यक्तित्व से परिचित हो सकेगी.

गौरतलब है कि आज 1947 की घटना को 73 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन जब कश्मीरी लोगों को पाक आक्रमणकारियों के हमले की याद आती है, तो बारामूला के 22 वर्षीय मकबूल शेरवानी को भी याद किया जाता है. मकबूल शेरवानी ने भारतीय सेना की मदद कर पाकिस्तान की ओर से किए गए हमले को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी.

पढ़ें - 'असम के गांधी' जिन्होंने छुआछूत मिटाने को दलितों के लिए खोले थे अपने घर के द्वार

स्थानीय लोगों का भी कहना है कि जब पाकिस्तान के आदिवासियों ने बारामूला में हिंसा शुरू की तो मकबूल शेरवानी ने उनका रास्ता ब्लॉक कर दिया और भारतीय सेना की मदद की. लोगों का मानना है कि शेरवानी ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी.

बता दें कि मकबूल शेरवानी की याद में हर साल 22 अक्टूबर को शेरवानी दिवस (Sherwani Day) को मनाया जाता है और बारामूला के शेरवानी हॉल का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है, जहां हर साल उनके बलिदान को याद किया जाता है.

श्रीनगर : 1947 में जब पाकिस्तान के आदिवासियों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और वह बारामूला में दाखिल हुए, तब मकबूल शेरवानी (Maqbool Sherwani), जिन्हें शेरवानी के नाम से जाना जाता है, उन्होंने आक्रमणकारियों को गलत रास्ता दिखाया ताकि, उन्हें श्रीनगर की ओर बढ़ने में देर हो जाए और भारतीय सेना को श्रीनगर हवाई अड्डे (Srinagar Airport) को अपने नियंत्रण में करने का मौका मिल सके.

दरअसल, 22 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी कबायली लोगों ने सीमा पार कर कश्मीर पर आक्रमण (invaded Kashmir) कर दिया था. कुछ समय बाद कश्मीर के महाराजा हरि सिंह (Maharaja Hari Singh of Kashmir) श्रीनगर से निकले और भारतीय सैन्य सहायता (Indian military assistance) लेने के लिए जम्मू पहुंचे. 26 अक्टूबर को महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि (treaty of accession) पर हस्ताक्षर किए.

संधि पर हस्ताक्षर के तुरंत बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आदिवासियों के खिलाफ अभियान शुरू किया. इस अभियान के दौरान भारतीय सेना पाक आक्रमणकारियों को लंबी लड़ाई के बाद पीछे ढकेलने में सफल रही.

मकबूल शेरवानी ने की भारतीय सेना की मदद, देखें ईटीवी भारत की रिपोर्ट

1947 की घटनाओं में मकबूल शेरवानी को एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है. सेना ने उनके नाम पर एक स्मारक भी बनाया है. हालांकि, आदिवासियों ने 22 वर्षीय शेरवानी की बाद में हत्या कर दी थी.

बारामूला नगर समिति के अध्यक्ष (Baramulla Municipal Committee Chairman) तौसीफ रैना (Tauseef Rena ) ने ईटीवी भारत से बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) से दिवंगत मकबूल शेरवानी (late Maqbool Sherwani ) के नाम पर एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की अपील की. उन्होंने कहा कि ऐसा करने से लोग देश की सुरक्षा के लिए दिए गए मकबूल शेरवानी के महान बलिदान से परिचित हो सकेंगे और आने वाली पीढ़ी भी शेरवानी के व्यक्तित्व से परिचित हो सकेगी.

गौरतलब है कि आज 1947 की घटना को 73 साल से अधिक हो चुके हैं, लेकिन जब कश्मीरी लोगों को पाक आक्रमणकारियों के हमले की याद आती है, तो बारामूला के 22 वर्षीय मकबूल शेरवानी को भी याद किया जाता है. मकबूल शेरवानी ने भारतीय सेना की मदद कर पाकिस्तान की ओर से किए गए हमले को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई थी.

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स्थानीय लोगों का भी कहना है कि जब पाकिस्तान के आदिवासियों ने बारामूला में हिंसा शुरू की तो मकबूल शेरवानी ने उनका रास्ता ब्लॉक कर दिया और भारतीय सेना की मदद की. लोगों का मानना है कि शेरवानी ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी.

बता दें कि मकबूल शेरवानी की याद में हर साल 22 अक्टूबर को शेरवानी दिवस (Sherwani Day) को मनाया जाता है और बारामूला के शेरवानी हॉल का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है, जहां हर साल उनके बलिदान को याद किया जाता है.

Last Updated : Oct 24, 2021, 6:29 AM IST
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