नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि मणिपुर हिंसा मामले में उसके हस्तक्षेप की सीमा इस पर निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है और यदि अदालत संतुष्ट है कि अधिकारियों ने पर्याप्त कार्य किया है, तो वह ऐसा नहीं कर सकती.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि शीर्ष अदालत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से संतुष्ट नहीं है, तो तुरंत हस्तक्षेप करने की 'गंभीर और तत्काल' आवश्यकता है. बेंच मणिपुर में जातीय हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. बेंच में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे.
अपराध 'भयावह', नहीं चाहते राज्य की पुलिस मामले को देखे: उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के वीडियो को 'भयावह' करार दिया और दर्ज प्राथमिकियों के सिलसिले में अब तक हुई कार्रवाई के बारे में जानकारी मांगी.
अदालत ने कहा कि वह नहीं चाहती की राज्य की पुलिस मामले की जांच करे क्योंकि उन्होंने महिलाओं को वस्तुत: दंगाई भीड़ को सौंप दिया था, शीर्ष अदालत ने कहा कि वह हिंसाग्रस्त राज्य में स्थिति की निगरानी के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) या पूर्व न्यायाधीशों वाली एक समिति का गठन कर सकती है. हालांकि यह मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र और मणिपुर की ओर से पेश विधि अधिकारियों की दलीलों पर निर्भर करेगा.
पीठ ने मणिपुर हिंसा से संबंधित विभिन्न याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध किया है.
अदालत ने कहा कि महिलाओं को निर्वस्त्र करके उन्हें घुमाने का यह वीडियो चार मई को सामने आया था, ऐसे में मणिपुर पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने में 14 दिन का समय क्यों लगा और 18 मई को मामला दर्ज किया गया.
'पुलिस क्या कर रही थी' : पीठ ने कहा, 'पुलिस क्या कर रही थी? वीडियो मामले से संबंधित प्राथमिकी दर्ज होने के एक महीने और तीन दिन बीतने के बाद 24 जून को मजिस्ट्रेट अदालत को क्यों भेजी गई?'
पीठ ने कहा, 'यह भयावह है. मीडिया में खबरें आई हैं कि पुलिस ने इन महिलाओं को दंगाई भीड़ के हवाले कर दिया था. हम नहीं चाहते कि पुलिस इस मामले को संभाले.'
जब अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने सवालों का जवाब देने के लिए समय मांगा, तो पीठ ने कहा कि उसके पास समय की कमी है और राज्य को उन लोगों को राहत प्रदान करने की 'बहुत जरूरत' है जिन्होंने अपने प्रियजनों और घरों समेत सब कुछ खो दिया है.
पीठ ने राज्य सरकार से जातीय हिंसा से प्रभावित राज्य में दर्ज 'जीरो एफआईआर' की संख्या और अब तक हुईं गिरफ्तारियों के बारे में विवरण देने को कहा.
'जीरो एफआईआर' किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है, भले ही अपराध उसके अधिकार क्षेत्र में हुआ हो या नहीं. पीठ ने कहा, 'हम यह भी जानना चाहते हैं कि राज्य में प्रभावित लोगों के पुनर्वास के लिए क्या पैकेज उपलब्ध कराया जा रहा है.'
इससे पहले दिन में, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि यदि शीर्ष अदालत मणिपुर हिंसा के मामले में जांच की निगरानी करती है तो केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है.
शीर्ष अदालत ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए एक व्यापक प्रणाली बनाने की वकालत करते हुए पूछा कि राज्य में मई महीने से इस तरह की घटनाओं के मामले में कितनी प्राथमिकी दर्ज की गई हैं.
जब मामला सुनवाई के लिए आया तो वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने उन दो महिलाओं की ओर से पक्ष रखा जिन्हें चार मई के एक वीडियो में कुछ लोगों द्वारा निर्वस्त्र करके घुमाते हुए दिखाया गया था. सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मामले में एक याचिका दायर की है.
शीर्ष अदालत ने 20 जुलाई को कहा था कि वह हिंसाग्रस्त मणिपुर की इस घटना से बहुत दुखी है और हिंसा के लिए औजार के रूप में महिलाओं का इस्तेमाल करना एक संवैधानिक लोकतंत्र में पूरी तरह अस्वीकार्य है.
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वीडियो पर संज्ञान लेने के बाद केंद्र और मणिपुर सरकार को निर्देश दिया था कि तत्काल उपचारात्मक, पुनर्वास और रोकथाम संबंधी कदम उठाये जाएं और उसे कार्रवाई से अवगत कराया जाए.
'अन्य राज्यों के मामलों पर विचार नहीं' : वहीं, शीर्ष कोर्ट ने मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा को 'अभूतपूर्व' करार दिया और पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और केरल जैसे विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में इसी तरह की कथित घटनाओं को लेकर दायर याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया.
मणिपुर में जातीय हिंसा से संबंधित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली शीर्ष अदालत को अधिवक्ता बांसुरी स्वराज ने बताया कि पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाओं पर भी विचार करने की जरूरत है और जो तंत्र विकसित करने की मांग की गई है उसे अन्य राज्यों में भी लागू किया जाना चाहिए.
बांसुरी ने कहा, 'भारत की बेटियों को सुरक्षित रखने की जरूरत है. मई में मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने की भयावह घटना सामने आने के बाद बंगाल एवं छत्तीसगढ़ में भी ऐसी ही घटनाएं हुईं.'
अधिवक्ता ने कहा, 'एक वीडियो सामने आया जिसमें भीड़ ने एक पंचायत चुनाव उम्मीदवार को निर्वस्त्र कर दिया और उसे हावड़ा जिले (पश्चिम बंगाल में) के एक गांव में घुमाया. पंचायत चुनाव में हुई हिंसा के दौरान एक अन्य उम्मीदवार को भी निर्वस्त्र कर घुमाया गया.कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई.'
उन्होंने कहा, 'महिलाओं के खिलाफ अपराध पूरे देश में होते हैं. यह हमारी सामाजिक वास्तविकता का हिस्सा है. वर्तमान में, हम एक ऐसी स्थिति से निपट रहे हैं जो अभूतपूर्व है और मुख्य रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराध एवं हिंसा से संबंधित है.'
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'मणिपुर में...... सांप्रदायिक और जातीय हिंसा की स्थिति है. इसलिए हम जो कह रहे हैं वह यह है कि इसमें कोई दो राय नहीं कि पश्चिम बंगाल में भी महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं.'
पीठ ने कहा कि वर्तमान में, वह मणिपुर से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ने कहा, 'यदि आपके पास वास्तव में उस (मणिपुर) पर हमारी सहायता करने के लिए कुछ है, तो कृपया हमारी सहायता करें.'
अधिवक्ता ने कहा कि उन्होंने मामले में हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है और पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा केरल में महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं का जिक्र किया है. सीजेआई ने कहा, 'हम इस पर आपको बाद में सुनेंगे... हम अभी मणिपुर से निपट रहे हैं.'
सीबीआई कर रही जांच : गौरतलब है कि केंद्र ने 27 जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि उसने मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाए जाने से संबंधित मामले में जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी है. केंद्र ने कहा था कि महिलाओं के खिलाफ किसी भी अपराध के मामले में सरकार कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति रखती है.
गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपने सचिव अजय कुमार भल्ला के माध्यम से दायर एक हलफनामे में शीर्ष अदालत से मामले की सुनवाई को समय पर पूरा करने के लिए इसे मणिपुर के बाहर स्थानांतरित करने का भी आग्रह किया है. मामले में अब तक सात लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में तीन मई को 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के आयोजन के बाद राज्य में भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
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(पीटीआई-भाषा)