नई दिल्ली: अफ्रीकी कहावत है 'जब हाथी लड़ते हैं, तो घास को नुकसान होता है'. मणिपुर में चल रहे जातीय संघर्ष, जिसमें 150 से अधिक लोगों की जान चली गई है, स्कूल-कॉलेजों के छात्रों के साथ ठीक यही हो रहा है (Education affected).
3 मई को घाटी के बहुसंख्यक मैतेई और पहाड़ी कुकी लोगों के बीच जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से इंफाल घाटी और चुराचांदपुर दोनों में औपचारिक शिक्षा पूरी तरह से रुक गई है. हालांकि परीक्षण के आधार पर घाटी के कुछ स्कूलों में कक्षाएं शुरू कर दी गई हैं. लेकिन चुराचांदपुर में स्थिति वैसी ही बनी हुई है.
चुराचांदपुर में बेथेस्डा अकादमी स्कूल चलाने वाले बेथेस्डा खानखो फाउंडेशन (Bethesda Khankho Foundation) के संस्थापक जे. हाओकिप ने ईटीवी भारत को बताया कि 'पिछले तीन माह से चुराचांदपुर में किसी भी प्रकार की पढ़ाई नहीं हो रही है.'
उन्होंने बताया कि 'पिछले दो-तीन सप्ताह से ही कुछ लोगों ने निजी ट्यूशन कक्षाएं शुरू कीं. लेकिन यह केवल अमीरों और संभ्रांत लोगों जैसे कुछ लोगों और चुराचांदपुर शहर के केंद्र जैसे सुरक्षित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए है.'
चुराचांदपुर और इसके आसपास के इलाकों में लगभग 80 निजी स्कूल और 10 कॉलेज हैं. इसलिए, भले ही प्रति स्कूल औसतन 500 छात्र और प्रति कॉलेज 1,000 छात्र हों, चुराचांदपुर में कम से कम 50,000 छात्रों का भविष्य दांव पर है. चुराचांदपुर के अधिकतर स्कूलों और कॉलेजों को संघर्ष से प्रभावित लोगों के लिए राहत केंद्रों में बदल दिया गया है.
हाओकिप ने कहा, 'लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि लगातार जारी हिंसा ही समस्या है. जब तक हमले नहीं रुकते, हम औपचारिक कक्षाएं शुरू नहीं कर सकते. हमारी बेथेस्डा अकादमी के मामले में हम किसी प्रकार की शिक्षा संचालित करने के लिए शिक्षकों को विभिन्न गांवों में भेज रहे हैं.' उन्होंने कहा कि औपचारिक कक्षाएं नहीं लगने से छात्र चुराचांदपुर की सड़कों पर घूम रहे हैं.
हाओकिप ने कहा कि 'उन्हें केवल बंदूकें दिखाई देती हैं. सिर्फ हिंसा की खबरें मिल रही हैं. कोई इंटरनेट नहीं है. उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है. यहां तक कि दो साल के बच्चे भी नकली बंदूकों से खेल रहे हैं.'
लेकिन उन रिपोर्टों के बारे में क्या कहें जो बताती हैं कि चुराचांदपुर के छात्र राज्य के बाहर के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश ले रहे हैं? हाओकिप ने उत्तर दिया, 'सिर्फ कुछ.'
उन्होंने कहा कि 'कक्षा 11-12 के स्टूडेंट बाहर जा रहे हैं. लेकिन अगर वे भारत के अन्य हिस्सों में जाएंगे तो उन्हें सांस्कृतिक झटके का सामना करना पड़ेगा. वे पहले से ही सदमे में हैं.'
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कर्नाटक और केरल के शैक्षणिक संस्थानों ने संघर्षग्रस्त पूर्वोत्तर राज्य के छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. मणिपुर के लगभग 200 छात्रों ने कर्नाटक के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश लिया है. केरल के कन्नूर विश्वविद्यालय ने भी मणिपुर के उन छात्रों के लिए अपने दरवाजे खोलने का फैसला किया है जो अपनी शिक्षा जारी नहीं रख सके.
आसान नहीं है : इंफाल स्थित एक शिक्षाविद् ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत से कहा कि स्कूली छात्रों के लिए बाहर जाना और देश के अन्य हिस्सों में शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश लेना आसान है. लेकिन उच्च शिक्षा के छात्रों के लिए ये आसान नहीं है.
चुराचांदपुर की तरह, इंफाल घाटी के अधिकांश स्कूलों और कॉलेजों को राहत शिविरों में बदल दिया गया है या वहां केंद्रीय सुरक्षा बल काबिज हैं. घाटी में इंफाल पूर्व, इंफाल पश्चिम, मोइरांग और बिष्णुपुर सबसे अधिक प्रभावित जिले हैं.
हालाँकि, घाटी में औपचारिक शिक्षा के मामले में सामान्य स्थिति की कुछ झलक लौटने लगी है. पिछले एक महीने में, कुछ स्कूलों ने परीक्षण के आधार पर कक्षा 1 से आठ तक की कक्षाएं शुरू की हैं. इसी तरह पिछले एक सप्ताह में कुछ स्कूलों में 9 से 12वीं तक की कक्षाएं भी शुरू कर दी गई हैं.
इंफाल स्थित शिक्षाविद् के अनुसार, केंद्रीय विश्वविद्यालय, मणिपुर विश्वविद्यालय (एमयू) के तहत कॉलेजों की पहले सेमेस्टर की परीक्षाएं पूरी हो चुकी हैं. एमयू ने प्रभावित पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले छात्रों को अपने संबंधित स्थानों से परीक्षा देने की अनुमति दी. सुरक्षा बलों की मदद से प्रश्न पत्र भेजे गए और उत्तर पुस्तिकाएं लाई गईं. मणिपुर के लगभग 98 प्रतिशत कॉलेज एमयू से संबद्ध हैं. मणिपुर में लगभग 90 कॉलेज हैं, जिनमें 40 सरकारी कॉलेज शामिल हैं.
धनमंजरी विश्वविद्यालय (डीएमयू), इंफाल का दूसरा विश्वविद्यालय, इससे सात कॉलेज संबद्ध हैं, जिनमें से कोई भी इंफाल घाटी के बाहर स्थित नहीं है. शिक्षाविद् के अनुसार, डीएमयू ने भी परीक्षा प्रक्रिया शुरू की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उन्होंने कहा कि तमाम गड़बड़ियों के बावजूद सभी कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, यहां तक कि उन कॉलेजों में भी जहां सुरक्षा बलों का कब्जा है या जिन्हें राहत शिविरों के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है. लेकिन बड़ी समस्या घाटी और प्रभावित पहाड़ी इलाकों के बीच शिक्षकों के आवागमन की है.
शिक्षाविद् ने कहा, 'इंफाल घाटी में शिक्षकों को पहाड़ी इलाकों में जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसी तरह पहाड़ी इलाकों में रहने वाले शिक्षक भी घाटी आने से डर रहे हैं. यहां तक कि वाहन चालक भी अपने वाहनों का परिचालन नहीं कर रहे हैं.'