सागर। बुंदेलखंड की लोक संस्कृति में शक्कर के घोल से बनी हुई एक मिठाई होती है. जो मकर संक्रांति के अवसर पर ही तैयार की जाती है. मकर संक्रांति के पूजन में इसका विशेष महत्व होता है. शक्कर की मिठाई को महाभारत के भीष्म पितामह से भी जोड़ा जाता है. कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान भीष्म पितामह ने उत्तरायण में प्राण त्यागे थे और उन्होंने युद्ध में मृत हुए पशु पक्षी और अन्य प्राणियों को लेकर दुख व्यक्त किया था. तभी से इन सभी प्राणियों को याद करते हुए शक्कर के घोल से अलग-अलग आकृतियों के गढ़िया गुल्ला बनाए जाते हैं और मकर संक्रांति पर भगवान शिव के लिए अर्पित किए जाते हैं.
बुंंदेलखंड में मकर संक्रांति और गढ़िया गुल्ला: भगवान सूर्य के उत्तरायण होने के पर्व मकर संक्रांति को भारत देश में अलग-अलग परंपराओं और तरीके से मनाया जाता है. इसी तरह से बुंदेलखंड में मकर संक्रांति के पर्व पर तिल को हल्दी के साथ पीसकर शरीर पर लगाने के बाद स्नान करते हैं और फिर भगवान शिव का पूजन करते हैं. भगवान शिव के पूजन में खिचड़ी के साथ बुंदेलखंड में गढ़िया गुल्ला चढ़ाने की परंपरा है. यह बुंदेलखंड का ऐसा व्यंजन है, जो सिर्फ मकर संक्रांति के अवसर पर बताशा बनाने वाले हलवाईयों द्वारा तैयार किया जाता है.
गढ़िया गुल्ला की कंगन: गढ़िया गुल्ला को शक्कर के घोल से तैयार किया जाता है. सबसे पहले शक्कर का घोल तैयार किया जाता है और गढ़िया गुल्ला बनाने के लिए उसे लकड़ी के बनाए हुए सांचों में ढाला जाता है. जब शक्कर का घोल सूख जाता है तो सांचों के अनुसार आकृति तैयार हो जाती है. गढ़िया गुल्ला की कंगन, घोड़ा, हाथी और उसके अलावा कई तरह की आकृतियां बनाई जाती हैं. हालांकि अब ये परम्परा धीरे- धीरे कमजोर होती जा रही है. एक समय था जब मकर संक्रांति से काफी पहले हलवाई गढ़िया-गुल्लों को तरह-तरह से आकार देना शुरू कर देते थे. शक्कर से बनी मिठाई होने के कारण बच्चे भी पसंद करते थे और ग्रामीण क्षेत्रों में मकर संक्रांति पर रिश्तेदारों के यहां गड़िया गुल्ला भिजवाने का रिवाज भी था. जो धीरे-धीरे खत्म हो रहा है.
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महाभारत और भीष्म पितामह से जुड़ी है परम्परा: गढ़िया गुल्ला का थोक व्यापार करने वाले भगवान दास नेमा बताते है कि मकर संक्रांति पर गढ़िया गुल्ला से भगवान का पूजन और फिर खाने की प्रथा वर्षों पुरानी है. मान्यता है कि महाभारत के युद्ध में जो हजारों लोग और पशु–पक्षी मारे गए थे, उनकी याद में यह मिठाई बनाई जाती है. जिनका जनक भीष्म पितामह को माना जाता है. पौराणिक किवदंती के अनुसार इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त भीष्म पितामह ने जब उत्तरायण सूर्य में प्राण त्यागे थे, तो महाभारत युद्ध में मारे गए सैनिकों, आम लोगों, पशु–पक्षियों की याद में उनके प्रतीक स्वरूप हाथी, घोड़ा, रथ, कंगन आदि बनाकर गढ़िया गुल्ला भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं. पहले शादियों के समय बुंदेलखंड में पीतल के बड़े-बड़े वर्तनों में गढ़िया गुल्ला भरकर बेटी की ससुराल भेजी जाती थी, जिसे पठौनी कहा जाता था, जो अब धीरे धीरे कम होती जा रही है. बुंदेलखंड के अलावा मालवा, महाराष्ट्र में भी गढ़िया गुल्ला का मिठाई बेची जाती है, जहां इन्हे खिलौना नाम दिया गया है.