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पुण्यतिथि विशेष : सरकार की अनदेखी से बापू के इस मंदिर को नहीं मिली पहचान

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देशभर में गांधीजी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई. इस मुहिम के तहत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के अंबोया गांव में गांधीजी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं.

पुण्यतिथि विशेष
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Published : Jan 30, 2021, 10:21 PM IST

सिरमौर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 73वीं पुण्यतिथि पर शनिवार को देशवासियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. नाथूराम गोडसे ने आज ही के 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या की दी थी. जिससे पूरा देश शोक में डूब गया था.

गोडसे गांधीजी को गोली मार उनकी सांस रोकने में तो सफल रहा, लेकिन गांधीजी केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि खुद में एक विशाल संस्था थे. यही वजह है कि उनकी सोच और विचार आज तक जीवित हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देशभर में गांधीजी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई.

देखिए ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

सिरमौर के अंबोया में राष्ट्रपिता का मंदिर
इस मुहिम के तहत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के अंबोया गांव में गांधीजी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं. महात्मा गांधी के मंदिर के आसपास रहने वाले लोग बापू को भगवान से कम नहीं मानते.

यही कारण है कि इस मंदिर में रोजाना गांधीजी की पूजा की जाती है. साल में दो दिन विशेष रूप से गांधीजी को याद किया जाता है. पिछले कई दशकों से यहां इस दिन मेले का भी आयोजन होता है, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मेला आयोजित नहीं हो सका.

नेताओं से खफा ग्रामीण
अंबोया गांव के लोग प्रदेश के नेताओं से भी खासे खफा हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नेता गांधीजी के नाम पर राजनीति तो करते हैं, लेकिन वह कभी इस मंदिर में नहीं आते. सरकार की अनदेखी के कारण मंदिर को पहचान नहीं मिल सकी है. गांव के लोग चाहते हैं कि यहां नेता और प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर आते रहें, ताकि इस मंदिर की ओर भी ध्यान दिया जा सके.

टीन का शेड डालकर हुई थी मंदिर की शुरुआत
अंबोया में बापू के इस मंदिर का निर्माण करने वाले मदन सेवल और जुगल किशोर सेवल बताते हैं कि उन्होंने टीन का शेड डालकर मंदिर का निर्माण किया था. उस समय इसे अस्थाई तौर पर बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे पक्का कर दिया गया.

देशभर में बनाए गए थे 250 मंदिर
उस समय इस मुहिम के तहत देशभर में करीब 250 मंदिर बनाए गए थे, लेकिन अनदेखी और सही तरह से देखरेख न होने के कारण समय के साथ मंदिरों का अस्तित्व खत्म होता चला गया. अब देश में कुछेक मंदिर ही बचे हैं, जिनमें सिरमौर का अंबोया मंदिर भी एक है. यहां के लोगों का कहना है कि यदि सरकार इसी तरह इस मंदिर के अनदेखी करती रही तो अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर का अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा.

इस मंदिर में हिमाचल प्रदेश के निर्माता डॉ. वाईएस परमार से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व शांता कुमार भी आ चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके मंदिर का अस्तित्व खतरे में है.

राष्ट्रपिता को सच्चे सम्मान की दरकार
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में बना यह मंदिर इंतजार में है कि सरकार और प्रशासन इस मंदिर की ओर नजरे इनायत करे और इसे भी वह पहचान मिल सके जिसका यह हकदार है.

यह भी पढ़ेंः आजादी से पहले दस बार शिमला आए थे बापू, यहीं चला था उनकी हत्या का मुकदमा

इस बात पर भी विचार करने की जरूरत है कि क्या हम सिर्फ गांधीजी को खानापूर्ति के लिए ही सम्मान देंगे या उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर उनका सच्चा सम्मान भी करेंगे. आज हमें जरूरत है कि हम बापू के जीवन को आत्मसात करें और उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर राष्ट्रपिता को सच्चा सम्मान दें.

सिरमौर : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 73वीं पुण्यतिथि पर शनिवार को देशवासियों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की. नाथूराम गोडसे ने आज ही के 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या की दी थी. जिससे पूरा देश शोक में डूब गया था.

गोडसे गांधीजी को गोली मार उनकी सांस रोकने में तो सफल रहा, लेकिन गांधीजी केवल व्यक्ति ही नहीं बल्कि खुद में एक विशाल संस्था थे. यही वजह है कि उनकी सोच और विचार आज तक जीवित हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद साल 1951-52 में देशभर में गांधीजी के मंदिर बनाने की मुहिम शुरू हुई.

देखिए ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

सिरमौर के अंबोया में राष्ट्रपिता का मंदिर
इस मुहिम के तहत हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के अंबोया गांव में गांधीजी का मंदिर बनाया गया. पूरे उत्तर भारत में अब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह एक मात्र मंदिर है. इस गांव के लोग महात्मा गांधी की प्रतिदिन पूजा-अर्चना करते हैं. महात्मा गांधी के मंदिर के आसपास रहने वाले लोग बापू को भगवान से कम नहीं मानते.

यही कारण है कि इस मंदिर में रोजाना गांधीजी की पूजा की जाती है. साल में दो दिन विशेष रूप से गांधीजी को याद किया जाता है. पिछले कई दशकों से यहां इस दिन मेले का भी आयोजन होता है, लेकिन इस बार कोरोना की वजह से मेला आयोजित नहीं हो सका.

नेताओं से खफा ग्रामीण
अंबोया गांव के लोग प्रदेश के नेताओं से भी खासे खफा हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नेता गांधीजी के नाम पर राजनीति तो करते हैं, लेकिन वह कभी इस मंदिर में नहीं आते. सरकार की अनदेखी के कारण मंदिर को पहचान नहीं मिल सकी है. गांव के लोग चाहते हैं कि यहां नेता और प्रशासनिक अधिकारी समय-समय पर आते रहें, ताकि इस मंदिर की ओर भी ध्यान दिया जा सके.

टीन का शेड डालकर हुई थी मंदिर की शुरुआत
अंबोया में बापू के इस मंदिर का निर्माण करने वाले मदन सेवल और जुगल किशोर सेवल बताते हैं कि उन्होंने टीन का शेड डालकर मंदिर का निर्माण किया था. उस समय इसे अस्थाई तौर पर बनाया गया था, लेकिन बाद में इसे पक्का कर दिया गया.

देशभर में बनाए गए थे 250 मंदिर
उस समय इस मुहिम के तहत देशभर में करीब 250 मंदिर बनाए गए थे, लेकिन अनदेखी और सही तरह से देखरेख न होने के कारण समय के साथ मंदिरों का अस्तित्व खत्म होता चला गया. अब देश में कुछेक मंदिर ही बचे हैं, जिनमें सिरमौर का अंबोया मंदिर भी एक है. यहां के लोगों का कहना है कि यदि सरकार इसी तरह इस मंदिर के अनदेखी करती रही तो अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर का अस्तित्व भी खत्म हो जाएगा.

इस मंदिर में हिमाचल प्रदेश के निर्माता डॉ. वाईएस परमार से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह व शांता कुमार भी आ चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके मंदिर का अस्तित्व खतरे में है.

राष्ट्रपिता को सच्चे सम्मान की दरकार
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में बना यह मंदिर इंतजार में है कि सरकार और प्रशासन इस मंदिर की ओर नजरे इनायत करे और इसे भी वह पहचान मिल सके जिसका यह हकदार है.

यह भी पढ़ेंः आजादी से पहले दस बार शिमला आए थे बापू, यहीं चला था उनकी हत्या का मुकदमा

इस बात पर भी विचार करने की जरूरत है कि क्या हम सिर्फ गांधीजी को खानापूर्ति के लिए ही सम्मान देंगे या उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर उनका सच्चा सम्मान भी करेंगे. आज हमें जरूरत है कि हम बापू के जीवन को आत्मसात करें और उनसे जुड़ी चीजों को संजोकर राष्ट्रपिता को सच्चा सम्मान दें.

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