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यहां कुत्ते का बना है शाही स्मारक, पढ़िए सिंधिया परिवार के वफादार हुस्सू की कहानी - माधवराव प्रथम का वफादार कुत्ता

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया रियासत की एक ऐसी कहानी जिस सुनकर हर कोई दंग हो जाता है. ग्वालियर में सिंधिया परिवार के राजा और उनके वफादार कुत्ते का स्मारक एक साथ बना है. खास बात यह है कि जब पेरिस में माधवराव प्रथम ने प्राण त्यागे उसी दिन ग्वालियर में उनके वफादार कुत्ते की भी मौत हो गई थी.

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कुत्ते का शाही स्मारक
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Published : May 22, 2023, 7:35 PM IST

यहां कुत्ते का बना है शाही स्मारक

ग्वालियर। अभी तक आपने राजा और महाराजाओं की स्मारक के बारे में सुना और पढ़ा होगा, लेकिन आज हम आपको ऐसे सबसे वफादार कुत्ते के स्मारक के बारे में बताते हैं जो काफी चर्चित है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया परिवार का एक ऐसा वफादार कुत्ता जिसका आज भी स्मारक बना हुआ है. इस वफादार कुत्ते के स्मारक के पीछे एक काफी रोचक कहानी भी है. कहा जाता है कि हुस्सू नाम का यह कुत्ता सिंधिया राज परिवार के तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम का सबसे वफादार था और उससे वह बेहद प्रेम करते थे. जिस दिन कुत्ते के स्वामी ने अपने प्राण विदेश में त्यागे ठीक उसी समय ग्वालियर में हुस्सू कुत्ते ने अपने प्राण त्याग दिए थे. इतना ही नहीं उस कुत्ते की समाधि भी यहां पर बनी हुई है.

जॉर्डन शाह ने उपहार में दिया था कुत्ता: दरअसल सिंधिया राजघराने के तत्कालीन महाराज माधवराव प्रथम का यह सबसे वफादार कुत्ता हुआ करता था. इस वफादार कुत्ते को जॉर्डन के शाह ने उपहार के स्वरुप दिया था. जिसका नाम उन्होंने हुस्सू रखा था. बताया जाता है कि हुस्सू नाम का यह कुत्ता सदैव अपने मालिक का वफादार रहा और उसका आना-जाना महाराज के बेडरूम तक में था. महाराज भी अपने इस प्रिय कुत्ते को बहुत अधिक प्रेम करते थे और उसका बहुत अधिक ख्याल भी रखते थे. कहा यह भी जाता है कि यह मालिक के प्रति इतना प्रेम रखता था कि उनके बिना वह कहीं भी नहीं जाता था. वह सुबह शाम अपने मालिक यानी तत्कालीन राजा के बेडरूम में हाजिरी लगाने के लिए पहुंच जाता था.

मालिक और कुत्ते की बिगड़ी तबीयत: इस समाधि पर लगे बीजक में कहा जाता है कि महाराज पेरिस यात्रा पर जाने से पहले अपने प्रिय वफादार कुत्ते को यही महल में छोड़ कर चले गये थे. यह कुत्ता हुस्सू काफी सालों तक उनके आने का इंतजार करता रहा और रोजाना वह उनके बेडरूम में उन्हें देखने के लिए जाता था. बताया जाता है कि उस दौरान पेरिस में ही तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम की तबीयत खराब हो गई. इस दौरान यहां पर उनके वफादार कुत्ता हुस्सू की भी तबीयत बिगड़ने लगी. सबसे आश्चर्य बात या संयोग कहें कि जब पेरिस में तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम ने अपने प्राण त्यागे थे, उसी दिन यहां ग्वालियर में उनके वफादार कुत्ते हुस्सू ने भी प्राण त्याग दिए थे.

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सिंधिया परिवार के वफादार कुत्ते की कहानी

माधवराव के साथ ही कुत्ते ने त्यागे प्राण: पेरिस में तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम ने मरने से पहले अपनी अंतिम इच्छा जताई कि उनके शव को उनके वफादार कुत्ते के पास ले जाया जाए, लेकिन उन्हें नहीं पता कि उनकी मौत के दौरान ही उसने भी अपने प्राण त्याग दिए. उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए उनके बेटे जीवाजीराव सिंधिया उनकी अस्थियों को लेकर ग्वालियर पहुंचे तो उन्हें कुछ देर के लिए हुस्सू की समाधि पर भी ले जाकर रखा गया. यहां इसका भी स्मारक बना कर इसमें इस पूरे वृतांत का उल्लेख किया गया. उसके बाद तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम और उनके वफादार कुत्ते हुस्सू का स्मारक एक ही जगह बनाया गया है, जो आमने-सामने है.

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माधवराव और कुत्ते का स्मारक आस पास बना: बताया जाता है कि एक दिन माधवराव प्रथम की अस्थियों को यहां पर रखा. उसके बाद उनकी अस्थियों को एक स्पेशल ट्रेन से शिवपुरी ले जाया गया. वहां पर अस्थि कलश को एक दिन के लिए रखा गया. जहां हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए पहुंचे थे. उसके बाद शिवपुरी में ही माधवराव प्रथम का भव्य स्मारक बनाया गया. वरिष्ठ पत्रकार और जानकार देव श्रीमाली बताते हैं कि इस हुस्सू नाम के वफादार कुत्ते की स्मारक शहर के शारदा विहार कॉलोनी में स्थित है और उसी के सामने तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम का भी स्मारक बना हुआ है.

dog royal monument
हुस्सू कुत्ते का स्मारक

मिसाल है मालिक और वफादार कुत्ते की दोस्ती: इस वफादार कुत्ते और उसके स्वामी की दोस्ती काफी मिसाल है. कहा जाता है कि यह वफादार कुत्ता उनके बिना एक दिन भी नहीं रहता था. यही कारण है कि जब पेरिस की यात्रा पर गए थे तो उसी दिन से बेचैन होने लगा था. उसने खाना पीना सब कुछ छोड़ दिया था. साथ ही तत्कालीन राजा के बारे में भी कहा जाता है कि वह अपने सामने से इस वफादार कुत्ते हुस्सू को नहीं जाने देते थे. जब राज दरबार में पहुंचते थे तो इस वफादार कुत्ते को साथ लेकर चलते थे. इसके साथ ही अपने हाथों से इस वफादार कुत्ते को सुबह-शाम खाना भी चलाते थे.

यहां कुत्ते का बना है शाही स्मारक

ग्वालियर। अभी तक आपने राजा और महाराजाओं की स्मारक के बारे में सुना और पढ़ा होगा, लेकिन आज हम आपको ऐसे सबसे वफादार कुत्ते के स्मारक के बारे में बताते हैं जो काफी चर्चित है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सिंधिया परिवार का एक ऐसा वफादार कुत्ता जिसका आज भी स्मारक बना हुआ है. इस वफादार कुत्ते के स्मारक के पीछे एक काफी रोचक कहानी भी है. कहा जाता है कि हुस्सू नाम का यह कुत्ता सिंधिया राज परिवार के तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम का सबसे वफादार था और उससे वह बेहद प्रेम करते थे. जिस दिन कुत्ते के स्वामी ने अपने प्राण विदेश में त्यागे ठीक उसी समय ग्वालियर में हुस्सू कुत्ते ने अपने प्राण त्याग दिए थे. इतना ही नहीं उस कुत्ते की समाधि भी यहां पर बनी हुई है.

जॉर्डन शाह ने उपहार में दिया था कुत्ता: दरअसल सिंधिया राजघराने के तत्कालीन महाराज माधवराव प्रथम का यह सबसे वफादार कुत्ता हुआ करता था. इस वफादार कुत्ते को जॉर्डन के शाह ने उपहार के स्वरुप दिया था. जिसका नाम उन्होंने हुस्सू रखा था. बताया जाता है कि हुस्सू नाम का यह कुत्ता सदैव अपने मालिक का वफादार रहा और उसका आना-जाना महाराज के बेडरूम तक में था. महाराज भी अपने इस प्रिय कुत्ते को बहुत अधिक प्रेम करते थे और उसका बहुत अधिक ख्याल भी रखते थे. कहा यह भी जाता है कि यह मालिक के प्रति इतना प्रेम रखता था कि उनके बिना वह कहीं भी नहीं जाता था. वह सुबह शाम अपने मालिक यानी तत्कालीन राजा के बेडरूम में हाजिरी लगाने के लिए पहुंच जाता था.

मालिक और कुत्ते की बिगड़ी तबीयत: इस समाधि पर लगे बीजक में कहा जाता है कि महाराज पेरिस यात्रा पर जाने से पहले अपने प्रिय वफादार कुत्ते को यही महल में छोड़ कर चले गये थे. यह कुत्ता हुस्सू काफी सालों तक उनके आने का इंतजार करता रहा और रोजाना वह उनके बेडरूम में उन्हें देखने के लिए जाता था. बताया जाता है कि उस दौरान पेरिस में ही तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम की तबीयत खराब हो गई. इस दौरान यहां पर उनके वफादार कुत्ता हुस्सू की भी तबीयत बिगड़ने लगी. सबसे आश्चर्य बात या संयोग कहें कि जब पेरिस में तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम ने अपने प्राण त्यागे थे, उसी दिन यहां ग्वालियर में उनके वफादार कुत्ते हुस्सू ने भी प्राण त्याग दिए थे.

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सिंधिया परिवार के वफादार कुत्ते की कहानी

माधवराव के साथ ही कुत्ते ने त्यागे प्राण: पेरिस में तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम ने मरने से पहले अपनी अंतिम इच्छा जताई कि उनके शव को उनके वफादार कुत्ते के पास ले जाया जाए, लेकिन उन्हें नहीं पता कि उनकी मौत के दौरान ही उसने भी अपने प्राण त्याग दिए. उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए उनके बेटे जीवाजीराव सिंधिया उनकी अस्थियों को लेकर ग्वालियर पहुंचे तो उन्हें कुछ देर के लिए हुस्सू की समाधि पर भी ले जाकर रखा गया. यहां इसका भी स्मारक बना कर इसमें इस पूरे वृतांत का उल्लेख किया गया. उसके बाद तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम और उनके वफादार कुत्ते हुस्सू का स्मारक एक ही जगह बनाया गया है, जो आमने-सामने है.

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माधवराव और कुत्ते का स्मारक आस पास बना: बताया जाता है कि एक दिन माधवराव प्रथम की अस्थियों को यहां पर रखा. उसके बाद उनकी अस्थियों को एक स्पेशल ट्रेन से शिवपुरी ले जाया गया. वहां पर अस्थि कलश को एक दिन के लिए रखा गया. जहां हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए पहुंचे थे. उसके बाद शिवपुरी में ही माधवराव प्रथम का भव्य स्मारक बनाया गया. वरिष्ठ पत्रकार और जानकार देव श्रीमाली बताते हैं कि इस हुस्सू नाम के वफादार कुत्ते की स्मारक शहर के शारदा विहार कॉलोनी में स्थित है और उसी के सामने तत्कालीन राजा माधवराव प्रथम का भी स्मारक बना हुआ है.

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हुस्सू कुत्ते का स्मारक

मिसाल है मालिक और वफादार कुत्ते की दोस्ती: इस वफादार कुत्ते और उसके स्वामी की दोस्ती काफी मिसाल है. कहा जाता है कि यह वफादार कुत्ता उनके बिना एक दिन भी नहीं रहता था. यही कारण है कि जब पेरिस की यात्रा पर गए थे तो उसी दिन से बेचैन होने लगा था. उसने खाना पीना सब कुछ छोड़ दिया था. साथ ही तत्कालीन राजा के बारे में भी कहा जाता है कि वह अपने सामने से इस वफादार कुत्ते हुस्सू को नहीं जाने देते थे. जब राज दरबार में पहुंचते थे तो इस वफादार कुत्ते को साथ लेकर चलते थे. इसके साथ ही अपने हाथों से इस वफादार कुत्ते को सुबह-शाम खाना भी चलाते थे.

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