हरिद्वार (उत्तराखंड): 22 जनवरी को भगवान राम अयोध्या में अपने भव्य मंदिर में विराजने जा रहे हैं. ऐसे में पूरा देश राम की धुन में मगन है. अपने आराध्य को लगभग 500 साल बाद स्थान मिलने के उपलक्ष्य में जगह-जगह उत्सव मनाया जा रहा है. उत्तराखंड में जगह-जगह राम राग और राम महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. उत्तराखंड में कई ऐसे स्थान भी हैं जहां भगवान राम से जुड़ी प्रचलित कथाएं और उनके निशान मौजूद हैं.
उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित कुशा घाट, भगवान राम से जुड़ी प्रचलित कथा की वजह से अधिक महत्व रखता है. कुशा घाट को भगवान दत्तात्रेय की तपस्थली भी कहा जाता है. इसके नजदीक ही बाबरी भवन भी है. बाबरी भवन में एक मंदिर भी मौजूद है.
भगवान राम से जुड़ी है मान्यता: स्कंद पुराण, केदार खंड और शिव पुराण के अनुसार भगवान राम भी इस स्थान पर आए थे. कहा जाता है कि कई साल पहले इस स्थान पर कुशा के कई वृक्ष हुआ करते थे. त्रेतायुग में भगवान राम अपने पिता और तमाम पूर्वजों के उद्धार के लिए हरिद्वार के इस स्थान पर पहुंचे थे. यहीं पर भगवान राम ने पिंडदान, तर्पण और उससे जुड़ी तमाम कर्मकांड की पद्धति को पूरा किया था. इस स्थान पर आज भी लोग तर्पण इत्यादि करने आते हैं.
ये भी पढ़ेंः 'राम राग' में भजन सम्राट कन्हैया मित्तल ने बांधा समां, देशवासियों से की पांच दीप जलाने की अपील
हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित कहते हैं कि इस स्थान पर तर्पण इत्यादि करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता है. मान्यता के अनुसार भगवान राम ने भी इसी स्थान को अपने पिता और अपने पूर्वजों को मोक्ष के लिए चुना था. ब्रह्म हत्या का पाप रावण के वध के बाद भगवान श्रीराम को लगा था तो उन्होंने उनसे जुड़ी प्रक्रिया को भी इसी स्थान पर पूरा किया था. इस स्थान पर आज भी गंगा तेज गति से बहते हुए दोबारा से घूमकर आती है. कहा जाता है कि इसकी भी एक कथा है.
इस स्थान पर ऋषिमुनि जब तप कर रहे थे, तब मां गंगा अपने वेग से उनके कमंडल को बहा ले गई थी. तब ऋषि मुनियों ने मां गंगा को क्रोध में कुछ शब्द कहे और तब गंगा वापस घूमकर उनका कमंडल देने आई. तभी से इस स्थान पर मां गंगा आगे की तरफ बह कर फिर पीछे की तरफ वापस आती है.
वो घाट जहां श्री राम ने किया स्नान और ध्यान: उज्ज्वल पंडित कहते हैं कि कुशा घाट से कुछ दूरी पर रामघाट भी मौजूद है. मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ इसी स्थान पर सबसे पहले पहुंचे थे. यहीं पर कुछ समय बिताकर उन्होंने मां गंगा की पूजा-अर्चना और आराधना भी की थी. मानता तो यह भी है कि भगवान श्री राम ने इसी स्थान पर गंगा स्नान करने के बाद तर्पण, पिंडदान इत्यादि में भाग लिया था. तभी से इस घाट का नाम रामघाट पड़ गया. आज भी इस घाट की महिमा कई पुराणों में बताई गई है. इस स्थान पर भगवान राम का एक छोटा सा मंदिर भी है.
ये भी पढ़ेंः राम मंदिर आंदोलन की कहानी संत की जुबानी, सालों किया संघर्ष, कई बार गये जेल, फिर भी नहीं डिगी आस्था
हरिद्वार की बाबरी: कुशा घाट से लगभग 500 मीटर आगे चलकर हर की पैड़ी के नजदीक बाबरी भवन मौजूद है. यह हरिद्वार की हर की पैड़ी के गऊ घाट पर स्थित है. जानकारों के अनुसार पहले इस स्थान पर गैर हिंदुओं का प्रवेश पूरी तरह वर्जित था. लेकिन समय के साथ परिवर्तन होते गए. हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित प्रतीक मिश्र पुरी बताते हैं कि इस भवन का निर्माण मुजफ्फरनगर जिले के बाबरी गांव के सोम प्रकाश मित्तल सेठ ने करवाया था. जिस तरह से आज भी दान पुण्य इत्यादि करने के बाद अपने गांव, अपने माता-पिता का नाम, दान की छुई वस्तु या इमारत पर लिख दिया जाता है. ठीक उसी तरह इस भवन को सेठ सोम प्रकाश मित्तल ने अपने गांव का नाम दिया था. इस बाबरी भवन को अब भगवा रंग में ही रंग दिया गया है. इस भवन में एक मंदिर भी है. जिसमें राम, हनुमान और विष्णु समेत कई भगवानों की प्रतिमाएं हैं.