नई दिल्ली : संसद में कई शब्दों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. इस लिस्ट में 'भ्रष्ट', 'शर्मिंदा', 'धोखा', 'गुमराह', 'झूठ', 'जुमलाजीवी', 'तनाशाही' समेत हिंदी और अंग्रेजी दोनों के लगभग 250 शब्द हैं. भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि 'यह दर्शाता है कि सरकार विपक्ष का सामना करने से घबरा रही है. ऐसे कई मुद्दे हैं जो सार्वजनिक महत्व और राष्ट्रीय महत्व के हैं. सरकार को कई चीजों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है इसलिए अब सरकार विपक्ष की आवाज को कुचलना चाहती है. अब वे कई शब्दों पर प्रतिबंध लगाने का एकतरफा कदम उठा रहे हैं. यदि सरकार भ्रष्ट है, तो कहना चाहिए कि सरकार भ्रष्ट है लेकिन अब वे कहते हैं कि आप इस शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते.'
डी. राजा ने कहा कि 'अगर सरकार वादा पूरा करने में विफल रहती है, तो हम कह सकते हैं कि सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं करके लोगों को धोखा दिया है, लेकिन अब वे कहते हैं कि 'विश्वासघात' का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. यह सब क्या हो रहा है?' उन्होंने कहा कि 'डॉ. अंबेडकर ने संसद को जीवंत बनाने की कल्पना की क्योंकि यह हमारे लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था है जो लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है. अब भाजपा-आरएसएस को लगता है कि संसद ऐसी नहीं होनी चाहिए. भाजपा संसद को निरर्थक बनाने की कोशिश कर रही है. पहले से ही वे ऐसा कर रहे हैं और अब संसद में ऐसा होगा तो तो लोकतंत्र कहां है? विपक्ष की भूमिका खत्म हो जाएगी.'
भाजपा को आत्मनिरीक्षण करने का सुझाव देते हुए उन्होंने कहा, 'मोदी विपक्ष को गाली देने या आरोप लगाने के लिए कई शब्दों का प्रयोग करते हैं. क्या यह संसदीय है जब किसान आंदोलन कर रहे थे, विपक्षी नेता समर्थन कर रहे थे और मोदी ने कहा वह 'आंदोलनजीवी' थे. प्रधानमंत्री इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर सकते हैं, अन्य नेताओं के बारे में क्या? भाजपा को यह समझना चाहिए कि अब तक भारत एक लोकतंत्र है. यह एक बहुदलीय लोकतंत्र है, भारतीय संसद एक संप्रभु संसद है.'
हालांकि सरकारी सूत्रों ने अपने बयान में इसे नियमित अभ्यास के रूप में और राष्ट्रमंडल देशों में कई अन्य संसदों के अनुसार कहा है. सरकारी पक्ष ने भी इस कदम को सही ठहराते हुए कहा कि सूची में कई शब्दों को यूपीए शासन के दौरान भी प्रतिबंधित कर दिया गया था. सूची की समय-समय पर समीक्षा की जाती है और सचिवालय ने एक पुस्तिका के रूप में एक समेकित सूची जारी की है.
संसद में मुद्दा उठाएगा विपक्ष : डी राजा ने कहा 'एक संसदीय प्रथा है...विपक्षी दलों से परामर्श करना. क्या आप आम सहमति विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं? एकतरफा फैसला क्यों? यह मनमाना, एकतरफा और विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए है. निश्चित रूप से विपक्षी दल इस कदम का विरोध करेंगे. पहले ही पार्टियां इस कदम की आलोचना और सवाल उठा चुकी हैं. 18 तारीख से शुरू होने जा रही संसद, निश्चित तौर पर ये सारे सवाल उठेंगे.'
संसद के आगामी सत्र में विपक्षी दलों द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दों पर डी राजा ने कहा कि कई मुद्दे हैं जैसे अर्थव्यवस्था इतनी खराब स्थिति में है, डॉलर की तुलना में रुपया गिर रहा है, मुद्रास्फीति, मूल्य वृद्धि और बढ़ती बेरोजगारी जैसे मुद्दे हैं ऊपर से सरकार का एक और विनाशकारी कदम अग्निपथ लाना है. देश में बढ़ती सांप्रदायिक नफरत और संघर्ष, सब मुद्दे उठाए जाएंगे.
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