कोरबा: छत्तीसगढ़ के 11 जिलों में हाथियों की मौजूदगी है. आधा दशक पहले तक हाथी कोरबा, कोरिया, रायगढ़, जशपुर और सरगुजा तक ही सीमित थे (Lessons of companionship to stop elephant human conflict ). अब हाथियों का दायरा बढ़कर महासमुंद, धमतरी, बलौदाबाजार, गरियाबंद तक भी फैल चुका है. हाथियों ने लगातार अपने क्षेत्र का विस्तार किया है (elephant human conflict in Chhattisgarh). सरकार को न सिर्फ जनहानि बल्कि फसल और घरों को नुकसान होने पर भी मुआवजा राशि के तौर पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है. हाथी मानव द्वंद कम करने के लिए ही अब वनविभाग विभाग साहचर्य की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में काम कर रहा है.
क्या है साहचर्य: साहचर्य का नियम भी गणित के नियमों की तरह काम करता है. ऐसा माना जाता है कि साहचर्य करने वाले जंतु परस्पर मेलजोल के साथ एक साथ रहते हैं. पारस्परिक समझदारी साहचर्य का सबसे प्रमुख बिंदु है. यह नियम तभी साकार होगा, जब हम एक दूसरे को डिस्टर्ब ना करें. हाथी किसी क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तो उन्हें परेशान न किया जाए (elephant attacks in chhattisgarh) .
क्या करें और क्या ना करें: कोरबा वन मंडल डीएफओ प्रियंका पांडे कहती हैं कि "यदि हम दक्षिण के राज्यों की छत्तीसगढ़ से तुलना करें तो वहां पढ़े लिखों की तादाद बहुत ज्यादा है. जब हाथी किसी एक क्षेत्र विशेष में पहुंचता है तो लोगों से यह अपील की जाती है कि हाथियों से दूर रहें. जंगलों में ना जाएं. वे इस बात का शब्दश: पालन करते हैं. क्या करना है और क्या नहीं करना, उन्हें इसका ज्ञान होता है. जबकि छत्तीसगढ़ में हाथियों को भगाने के लिए लोग सड़क पर उतर आते हैं. विपरीत तरह से व्यवहार करते हैं, जिससे पता चलता है कि हम ज्यादा स्ट्रेस में हैं. अब हम लोगों को इसी दिशा में जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं कि जब हाथी आता है तो आपको क्या नहीं करना है. प्रशिक्षित लोगों को सूचना दें. हाथियों के पास इंसानों से 5 गुना ज्यादा दिमाग होता है. उन्हें सब कुछ याद रहता है."
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छत्तीसगढ़ में इस परिकल्पना को साकार करना बड़ी चुनौती: छत्तीसगढ़ में साहचर्य की परिकल्पना के साकार होने के सवाल पर शासकीय ईवीपीजी कॉलेज में बॉटनी के प्रोफेसर संदीप शुक्ला कहते हैं कि "छत्तीसगढ़ में साहचर्य की परिकल्पना को साकार करना एक बड़ी चुनौती है. यहां इस नियम का पालन करवाना आसान नहीं होगा. दक्षिण में हाथी आस्था से जुड़े हैं. वहां बड़े बड़े मंदिर हैं. सभी मंदिरों ने अपने आसपास हाथियों को रखा है. वहां यह एक कल्चर बन चुका है. जबकि छत्तीसगढ़ में ऐसा नहीं है. हाथी जब करीब आते हैं तो हुल्ला पार्टी और कई तरह से उन्हें डिस्टर्ब किया गया है. हाथियों के आक्रामक होने के पीछे भी कारण हम ही हैं. हाथी एक बहुत ही बुद्धिमान जानवर होता है. हाथी का दिमाग तेज होता है. वह जिस रास्ते का इस्तेमाल आने जाने के लिए करता है, वह पीढ़ी दर पीढ़ी उसी रास्ते का इस्तेमाल करते हैं. उसे वह रास्ता याद रहता है. इसे हम हाथी कॉरिडोर कहते हैं. पिछले कई वर्षों में INDUSTRIALISATION का विस्तार हुआ है. जंगल कटे हैं. हाथियों को व्यवस्थित करने का सबसे बेहतर तरीका है कि जंगल के भीतर ही उनके लिए चारा, पानी का इंतजाम किया जाए. यह सबसे कारगर उपाय है.''
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कटघोरा वनमंडल में ज्यादा नुकसान: दरअसल बीते कुछ महीनों के दौरान खास तौर पर कटघोरा वन मंडल में हाथियों की धमक बनी हुई है. यहां हाथियों की तादाद लगभग 50 के आसपास है. दो से तीन अलग अलग दल अलग अलग क्षेत्रों में विचरण कर रहे हैं, जिसमें लोगों में भय का माहौल है. हाथी कभी खेतों को बर्बाद कर रहे हैं तो कभी ग्रामीणों के घर तोड़ रहे हैं. 12 मामले तो हाल फिलहाल में ऐसे भी हुए जब हाथियों ने हाइवे जाम कर दिया या खेतों को बर्बाद करते हुए जब हाथियों ने युवकों को भी दौड़ाया. इस साल जनवरी से लेकर मार्च तक वन विभाग ने हाथियों के द्वारा जनहानि फसल मकान और अन्य संपत्तियों के नुकसान के लिए 2244 प्रकरण दर्ज किये हैं. जिसके एवज में ग्रामीणों को विभाग की ओर से 12 लाख रुपए का भुगतान किया गया है. इसी तरह अप्रैल से लेकर 10 मई तक की स्थिति में 279 प्रकरण और दर्ज किए गए. जिसके एवज में 2 लाख 46 हजार 953 रुपये की मुआवजा राशि ग्रामीणों को दी गई है. इस दौरान हाथी के हमले से 7 लोगों की मौत भी हुई है.