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Sedition law 124 A: कानून मंत्री बोले- विधि आयोग की रिपोर्ट बाध्यकारी नहीं, कांग्रेस ने उठाए सवाल

विधि आयोग की रिपोर्ट पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राजद्रोह कानून पर विचार-विमर्श किया. वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट में वकील डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को इसे विश्वासघाती और चिंताजनक बताया है.

Law Minister Arjun Ram Meghwal
देशद्रोह कानून का समर्थन
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Published : Jun 3, 2023, 12:14 PM IST

नई दिल्ली: भारत के विधि आयोग ने देशद्रोह कानून का समर्थन किया है. विधि आयोग ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है. आयोग के मुताबिक आंतरिक सुरक्षा खतरों और राज्य के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए यह जरूरी है. विधि आयोग की रिपोर्ट पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राजद्रोह कानून पर विचार-विमर्श किया. वहीं, कांग्रेस ने इसे विश्वासघाती और चिंताजनक बताया. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी दुबे ने ईटीवी भारत से कहा कि सबसे पहले, कानून आयोग की सिफारिश सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है और यह देखने की जरूरत है कि सरकार इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगी?

अश्विनी दुबे ने कहा कि जस्टिस रमना के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पिछले साल जब इस मामले की सुनवाई की थी, तो कहा था कि इस कानून को खत्म करने की जरूरत है, क्योंकि अगर आप दोषसिद्धि की दर के साथ-साथ दुरुपयोग और दुरुपयोग को भी बढ़ावा देंगे. वह आगे कहते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को दबाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ उपनिवेशवादियों द्वारा कानून लाया गया था. अब मुझे लगता है कि कुछ मापदंडों को तैयार करने की जरूरत है और कानून में कुछ ठोस संशोधन होने चाहिए क्योंकि आप वर्तमान संदर्भ में उसी मौजूदा कानून को जारी नहीं रख सकते हैं.

विधि आयोग ने राजद्रोह कानून के उपयोग पर अपनी 279वीं रिपोर्ट में औपनिवेशिक युग के कानून को निरस्त करने के खिलाफ राय दी है और इसके बजाय सिफारिश की है कि कानून को 'बरकरार' रखा जाना चाहिए. इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय से मीडिया को संबोधित करते हुए इस घटनाक्रम को बेहद 'चिंताजनक' और 'विश्वासघाती' करार दिया है.

लॉ कमीशन की ताजा रिपोर्ट में न केवल इस औपनिवेशिक युग के कानून को बनाए रखने की राय दी गई है, बल्कि इसने इसे और अधिक कठोर बना दिया है. अब सजा को तीन से बढ़ाकर सात साल कर दिया गया है. यह बेहद चिंताजनक है और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है. विधि आयोग की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 मई, 2022 को देशद्रोह कानून रखने और केंद्र और राज्य सरकारों को कानून के तहत किसी भी प्राथमिकी या जबरदस्ती के उपायों को दर्ज करने से परहेज करने का निर्देश देने के एक साल बाद आई है. इसने कानून के तहत दर्ज मामलों की सभी जारी जांच को भी निलंबित कर दिया है और आदेश दिया कि सभी लंबित मुकदमे, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए.

इसके बाद सिंघवी ने भाजपा पर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि लोकसभा और अन्य विधानसभा चुनावों से पहले विकास आता है. लिहाजा अब बीजेपी सरकार पूरे विपक्ष को धमकाना चाहती हैं. यदि आप उन लोगों की संख्या का विश्लेषण करें जो 2014 से राजद्रोह के आरोप का सामना कर रहे हैं, तो यह दर चिंताजनक और खतरनाक है.

राजद्रोह का इस्तेमाल सिर्फ विपक्ष के खिलाफ नहीं बल्कि किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ किया गया है, जो इस सरकार का विरोधी है. जिन लोगों ने सीएए-एनआरसी का विरोध किया, जिन्होंने महामारी के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी का मुद्दा उठाया, कृषि कानून का विरोध किया, उन पर देशद्रोह का हमला किया गया. उन्होंने कहा कि इस भाजपा सरकार ने इस पर सुप्रीम कोर्ट की पिछले साल की टिप्पणी को नजरअंदाज कर दिया है.

यहां यह ध्यान देने योग्य है कि राजनीतिक दलों पर कई बार राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए राजद्रोह कानून का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है, जबकि कई विपक्षी, शिक्षाविद, वकील और अन्य इस औपनिवेशिक युग के कानून को संविधान के साथ विरोध में देखते हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार को कहा कि सरकार राजद्रोह कानून पर अंतिम फैसला लेने से पहले सभी पक्षों से विचार-विमर्श करेगी.

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उन्होंने ट्वीट किया कि राजद्रोह पर विधि आयोग की रिपोर्ट व्यापक परामर्श प्रक्रिया में एक कदम है. रिपोर्ट में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं और बाध्यकारी नहीं हैं. अंतत: सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने आगे यह भी कहा कि अब जब हमें रिपोर्ट मिल गई है, तो हम अन्य सभी हितधारकों के साथ भी परामर्श करेंगे ताकि हम जनहित में एक सूचित और तर्कपूर्ण निर्णय ले सकें.

इस विवाद पर पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा ने विधि आयोग की सराहना की और कहा कि मैं राजद्रोह कानून पर अपनी रिपोर्ट इतनी तेजी से लाने के लिए विधि आयोग की सराहना करना चाहता हूं. अब विधि आयोग ने सिफारिश की है कि किस तरह के सुरक्षा उपायों को अंतर्निहित करने की आवश्यकता है. यह भी कि धारा 124ए के प्रावधान में ही क्या बदलाव किए जाने की आवश्यकता है, ताकि कानून का दुरुपयोग अधिकारियों द्वारा नहीं किया जा सके, जो इस विशेष कानून को क्रियान्वित करने के लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने आगे कहा कि वे यह भी सिफारिश कर रहे हैं कि यह देखने के लिए कि कानून का दुरुपयोग न हो, कुछ सुरक्षा उपाय अंतर्निहित होने चाहिए.

नई दिल्ली: भारत के विधि आयोग ने देशद्रोह कानून का समर्थन किया है. विधि आयोग ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए को बनाए रखने की आवश्यकता है. आयोग के मुताबिक आंतरिक सुरक्षा खतरों और राज्य के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए यह जरूरी है. विधि आयोग की रिपोर्ट पर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने राजद्रोह कानून पर विचार-विमर्श किया. वहीं, कांग्रेस ने इसे विश्वासघाती और चिंताजनक बताया. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी दुबे ने ईटीवी भारत से कहा कि सबसे पहले, कानून आयोग की सिफारिश सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है और यह देखने की जरूरत है कि सरकार इस पर कैसे प्रतिक्रिया देगी?

अश्विनी दुबे ने कहा कि जस्टिस रमना के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने पिछले साल जब इस मामले की सुनवाई की थी, तो कहा था कि इस कानून को खत्म करने की जरूरत है, क्योंकि अगर आप दोषसिद्धि की दर के साथ-साथ दुरुपयोग और दुरुपयोग को भी बढ़ावा देंगे. वह आगे कहते हैं कि स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को दबाने के एकमात्र उद्देश्य के साथ उपनिवेशवादियों द्वारा कानून लाया गया था. अब मुझे लगता है कि कुछ मापदंडों को तैयार करने की जरूरत है और कानून में कुछ ठोस संशोधन होने चाहिए क्योंकि आप वर्तमान संदर्भ में उसी मौजूदा कानून को जारी नहीं रख सकते हैं.

विधि आयोग ने राजद्रोह कानून के उपयोग पर अपनी 279वीं रिपोर्ट में औपनिवेशिक युग के कानून को निरस्त करने के खिलाफ राय दी है और इसके बजाय सिफारिश की है कि कानून को 'बरकरार' रखा जाना चाहिए. इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस नेता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय से मीडिया को संबोधित करते हुए इस घटनाक्रम को बेहद 'चिंताजनक' और 'विश्वासघाती' करार दिया है.

लॉ कमीशन की ताजा रिपोर्ट में न केवल इस औपनिवेशिक युग के कानून को बनाए रखने की राय दी गई है, बल्कि इसने इसे और अधिक कठोर बना दिया है. अब सजा को तीन से बढ़ाकर सात साल कर दिया गया है. यह बेहद चिंताजनक है और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है. विधि आयोग की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 मई, 2022 को देशद्रोह कानून रखने और केंद्र और राज्य सरकारों को कानून के तहत किसी भी प्राथमिकी या जबरदस्ती के उपायों को दर्ज करने से परहेज करने का निर्देश देने के एक साल बाद आई है. इसने कानून के तहत दर्ज मामलों की सभी जारी जांच को भी निलंबित कर दिया है और आदेश दिया कि सभी लंबित मुकदमे, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए.

इसके बाद सिंघवी ने भाजपा पर तीखा हमला किया. उन्होंने कहा कि लोकसभा और अन्य विधानसभा चुनावों से पहले विकास आता है. लिहाजा अब बीजेपी सरकार पूरे विपक्ष को धमकाना चाहती हैं. यदि आप उन लोगों की संख्या का विश्लेषण करें जो 2014 से राजद्रोह के आरोप का सामना कर रहे हैं, तो यह दर चिंताजनक और खतरनाक है.

राजद्रोह का इस्तेमाल सिर्फ विपक्ष के खिलाफ नहीं बल्कि किसी भी ऐसे व्यक्ति के खिलाफ किया गया है, जो इस सरकार का विरोधी है. जिन लोगों ने सीएए-एनआरसी का विरोध किया, जिन्होंने महामारी के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी का मुद्दा उठाया, कृषि कानून का विरोध किया, उन पर देशद्रोह का हमला किया गया. उन्होंने कहा कि इस भाजपा सरकार ने इस पर सुप्रीम कोर्ट की पिछले साल की टिप्पणी को नजरअंदाज कर दिया है.

यहां यह ध्यान देने योग्य है कि राजनीतिक दलों पर कई बार राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए राजद्रोह कानून का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है, जबकि कई विपक्षी, शिक्षाविद, वकील और अन्य इस औपनिवेशिक युग के कानून को संविधान के साथ विरोध में देखते हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार को कहा कि सरकार राजद्रोह कानून पर अंतिम फैसला लेने से पहले सभी पक्षों से विचार-विमर्श करेगी.

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सावरकर ने गांधी को नहीं मारा और न ही ऐसा करने वालों का समर्थन किया- केंद्रीय कानून मंत्री

उन्होंने ट्वीट किया कि राजद्रोह पर विधि आयोग की रिपोर्ट व्यापक परामर्श प्रक्रिया में एक कदम है. रिपोर्ट में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं और बाध्यकारी नहीं हैं. अंतत: सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने आगे यह भी कहा कि अब जब हमें रिपोर्ट मिल गई है, तो हम अन्य सभी हितधारकों के साथ भी परामर्श करेंगे ताकि हम जनहित में एक सूचित और तर्कपूर्ण निर्णय ले सकें.

इस विवाद पर पूर्व विधि सचिव पीके मल्होत्रा ने विधि आयोग की सराहना की और कहा कि मैं राजद्रोह कानून पर अपनी रिपोर्ट इतनी तेजी से लाने के लिए विधि आयोग की सराहना करना चाहता हूं. अब विधि आयोग ने सिफारिश की है कि किस तरह के सुरक्षा उपायों को अंतर्निहित करने की आवश्यकता है. यह भी कि धारा 124ए के प्रावधान में ही क्या बदलाव किए जाने की आवश्यकता है, ताकि कानून का दुरुपयोग अधिकारियों द्वारा नहीं किया जा सके, जो इस विशेष कानून को क्रियान्वित करने के लिए जिम्मेदार हैं. उन्होंने आगे कहा कि वे यह भी सिफारिश कर रहे हैं कि यह देखने के लिए कि कानून का दुरुपयोग न हो, कुछ सुरक्षा उपाय अंतर्निहित होने चाहिए.

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