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लद्दाख के नेताओं ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के फैसले को SC में चुनौती दी

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Published : Aug 12, 2021, 3:21 AM IST

धारा 370 और 35ए को खत्म करने के खिलाफ कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (Kargil Democratic Alliance) के कमर अली अखून (Qamar Ali Akhoon), असगर अली करबलाई और सज्जाद हुसैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. याचिका में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति (President of India ) द्वारा जारी आदेश और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act 2019) असंवैधानिक हैं क्योंकि इसमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने पालन नहीं किया गया.

लद्दाख के नेताओं ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के फैसले को SC में चुनौती दी
लद्दाख के नेताओं ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के फैसले को SC में चुनौती दी

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस (National Conference) के दो सांसदों के बाद अब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश (Ladakh Union Territory ) के तीन राजनीतिक नेताओं ने धारा 370 और 35ए को खत्म करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है.

कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (Kargil Democratic Alliance) के कमर अली अखून (Qamar Ali Akhoon), असगर अली करबलाई और सज्जाद हुसैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति (President of India ) द्वारा जारी आदेश और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act 2019) असंवैधानिक हैं क्योंकि इसमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने पालन नहीं किया गया.

याचिका में आगे कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा जारी आदेशों ने न केवल क्षेत्र की विधायिका और कार्यकारी अंगों (legislature and the executive organs) को बल्कि लोगों के संवैधानिक अधिकारों (constitutional rights) को भी समाप्त कर दिया है. उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है. वर्तमान प्रशासन जवाबदेह नहीं है.

गौरतलब है कि अखून विधानसभा के पूर्व सदस्य हैं, करबलाई कारगिल के वरिष्ठ नेता हैं और करगली पत्रकार हैं और संसदीय चुनाव लड़ चुके हैं.

करबलाई ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया, 'हम इस बारे में अपने वकीलों से लंबे समय से बात कर रहे थे आऱ फिर हम कल शीर्ष अदालत गए.'

यहां के लोगों की परेशानी बढ़ गई है. पांच अगस्त का फैसला असंवैधानिक था. आप किसी राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करते हैं, फिर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करते हैं. यह सही निर्णय नहीं है.

उन्होंने कहा, 'हम मांग करते हैं कि लद्दाख का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए.'

मामले में अखून के विचार भी अलग नहीं थे. उन्होंने कहा, 'हम हमेशा लद्दाख को केंद्र के नियंत्रण ( control of the Center) में लाने के खिलाफ रहे हैं. लेह के लोग इसे चाहते थे, लेकिन आज वे भी चिंतित हैं. देखिए, एक सांसद भी लेह से है, लेकिन वे अभी भी चिंतित हैं.'

जम्मू कश्मीर के दो सांसदों ने पहले ही पांच अगस्त के फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की है. हालांकि महामारी के कारण अभी तक सुनवाई नहीं हुई है, हमें विश्वास है कि जल्द ही सुनवाई होगी और निर्णय जनहित में होगा. हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.'

इस संबंध में जब ईटीवी भारत ने लेह के राजनेताओं से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा (special status of Jammu Kashmir) खत्म किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. हालांकि इसके बादकोर्ट ने नोटिस जारी किया, लेकिन अभी तक इस मामले में सुनवाई नहीं हो पाई है.

पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट मांगेगा विशेष अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधाओं की जानकारी

पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के 1954 के संविधान को बदलने के आदेश जारी किए गए. 1954 के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि कौन से भारतीय कानून जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होंगे. नए आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि सभी भारतीय कानून अब कुछ संशोधनों के साथ जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे.

यद्यपि भारत के राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 में संशोधन करने की शक्ति है, यह तभी किया जा सकता है जब जम्मू कश्मीर में संविधान सभा का सत्र चल रहा हो. दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा (Constituent Assembly ) 1950 के बाद से अस्तित्व में नहीं है.

इसे देखते हुए, भारत के राष्ट्रपति के आदेश में अनुच्छेद 367 में संशोधन किया गया और संविधान सभा की जगह विधानसभा ने ले ली, जिसके बाद 6 अगस्त को भारत के राष्ट्रपति ने दूसरा आदेश जारी किया.

इससे पहले मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ (constitutional bench of Supreme Court) ने स्पष्ट किया था कि इस संबंध में दायर याचिकाओं को सात सदस्यीय पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है. हालांकि उसके बाद से इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है. नवंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में मामले की जल्द सुनवाई के लिए अर्जी दाखिल की गई थी.

श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस (National Conference) के दो सांसदों के बाद अब लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश (Ladakh Union Territory ) के तीन राजनीतिक नेताओं ने धारा 370 और 35ए को खत्म करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है.

कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (Kargil Democratic Alliance) के कमर अली अखून (Qamar Ali Akhoon), असगर अली करबलाई और सज्जाद हुसैन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति (President of India ) द्वारा जारी आदेश और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 (Jammu and Kashmir Reorganization Act 2019) असंवैधानिक हैं क्योंकि इसमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया ने पालन नहीं किया गया.

याचिका में आगे कहा गया है कि भारत के राष्ट्रपति और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 द्वारा जारी आदेशों ने न केवल क्षेत्र की विधायिका और कार्यकारी अंगों (legislature and the executive organs) को बल्कि लोगों के संवैधानिक अधिकारों (constitutional rights) को भी समाप्त कर दिया है. उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है. वर्तमान प्रशासन जवाबदेह नहीं है.

गौरतलब है कि अखून विधानसभा के पूर्व सदस्य हैं, करबलाई कारगिल के वरिष्ठ नेता हैं और करगली पत्रकार हैं और संसदीय चुनाव लड़ चुके हैं.

करबलाई ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया, 'हम इस बारे में अपने वकीलों से लंबे समय से बात कर रहे थे आऱ फिर हम कल शीर्ष अदालत गए.'

यहां के लोगों की परेशानी बढ़ गई है. पांच अगस्त का फैसला असंवैधानिक था. आप किसी राज्य के विशेष दर्जे को रद्द करते हैं, फिर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करते हैं. यह सही निर्णय नहीं है.

उन्होंने कहा, 'हम मांग करते हैं कि लद्दाख का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए.'

मामले में अखून के विचार भी अलग नहीं थे. उन्होंने कहा, 'हम हमेशा लद्दाख को केंद्र के नियंत्रण ( control of the Center) में लाने के खिलाफ रहे हैं. लेह के लोग इसे चाहते थे, लेकिन आज वे भी चिंतित हैं. देखिए, एक सांसद भी लेह से है, लेकिन वे अभी भी चिंतित हैं.'

जम्मू कश्मीर के दो सांसदों ने पहले ही पांच अगस्त के फैसले के खिलाफ एक याचिका दायर की है. हालांकि महामारी के कारण अभी तक सुनवाई नहीं हुई है, हमें विश्वास है कि जल्द ही सुनवाई होगी और निर्णय जनहित में होगा. हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.'

इस संबंध में जब ईटीवी भारत ने लेह के राजनेताओं से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा (special status of Jammu Kashmir) खत्म किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं. हालांकि इसके बादकोर्ट ने नोटिस जारी किया, लेकिन अभी तक इस मामले में सुनवाई नहीं हो पाई है.

पढ़ें - सुप्रीम कोर्ट मांगेगा विशेष अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधाओं की जानकारी

पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के 1954 के संविधान को बदलने के आदेश जारी किए गए. 1954 के आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि कौन से भारतीय कानून जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होंगे. नए आदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि सभी भारतीय कानून अब कुछ संशोधनों के साथ जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे.

यद्यपि भारत के राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 में संशोधन करने की शक्ति है, यह तभी किया जा सकता है जब जम्मू कश्मीर में संविधान सभा का सत्र चल रहा हो. दिलचस्प बात यह है कि संविधान सभा (Constituent Assembly ) 1950 के बाद से अस्तित्व में नहीं है.

इसे देखते हुए, भारत के राष्ट्रपति के आदेश में अनुच्छेद 367 में संशोधन किया गया और संविधान सभा की जगह विधानसभा ने ले ली, जिसके बाद 6 अगस्त को भारत के राष्ट्रपति ने दूसरा आदेश जारी किया.

इससे पहले मार्च 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ (constitutional bench of Supreme Court) ने स्पष्ट किया था कि इस संबंध में दायर याचिकाओं को सात सदस्यीय पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है. हालांकि उसके बाद से इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है. नवंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट में मामले की जल्द सुनवाई के लिए अर्जी दाखिल की गई थी.

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