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हिमाचल प्रदेश के इस मंदिर में कृष्णा के साथ विराजमान हैं मीरा, सुनाई देती है घुंघरुओं की आवाज! - पंजाब के साथ सटा नूरपुर

नूरपुर का श्री बृजराज मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है जिसमें काले संगमरमर की श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ अष्टधातु से निर्मित मीराबाई की मूर्ति श्री कृष्ण के साथ विराजमान हैं. नूरपुर को प्राचीनकाल में धमड़ी के नाम से जाना जाता था, लेकिन बेगम नूरजहां के आने के बाद इस शहर का नाम नूरपुर पड़ा.

मंदिर
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Published : Aug 29, 2021, 10:31 PM IST

शिमला : पंजाब के साथ सटा नूरपुर यूं तो कई मायनों में प्रसिद्ध है, लेकिन इसे सबसे अलग और इसे सबसे विशेष बनाता है इसके किला परिसर में स्थापित श्री बृजराज मंदिर. शहर के किला मैदान में स्थापित श्री बृजराज मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है, जिसमें काले संगमरमर की श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ अष्टधातु से निर्मित मीराबाई की मूर्ति श्री कृष्ण के साथ विराजमान हैं. यह पूरे विश्व में एक मात्र मंदिर है जिसमें कृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि मीराबाई विराजमान हैं.

नूरपुर को प्राचीनकाल में धमड़ी के नाम से जाना जाता था, लेकिन बेगम नूरजहां के आने के बाद इस शहर का नाम नूरपुर पड़ा. इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा है कि जब नूरपुर के राजा जगत सिंह (1619 से 1623) में अपने पुरोहित के साथ चित्तौडगढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गये, तो उन्हें रात्री विश्राम के लिए जो महल दिया गया. उसके साथ ही एक मंदिर था, जहां रात के समय राजा को घुंघरुओं की आवाजें सुनाई दी. जब राजा ने मंदिर में बाहर से झांक कर देखा तो एक औरत मंदिर में स्थापित कृष्ण की मूर्ति के सामने गाना गाते हुए नाच रही थी.

मंदिर में कृष्णा के साथ विराजमान हैं मीरा

राजा को उसके पुरोहित ने उपहार स्वरूप इन्हीं मूर्तियों की मांग करने का सुझाव दिया जिसपर राजा द्वारा रखी मांग पर चितौड़गढ़ के राजा ने खुशी खुशी उन मूर्तियों को उपहार में दे दिया. उसके साथ ही एक मौलसिरी का पेड़ भी राजा को उपहार में दिया जो आज भी मंदिर प्रांगण में विद्यमान है.

इन मूर्तियों को भी राजा ने किले में स्थापित किया था, लेकिन जब आक्रमणकारियों ने किले पर हमला किया तो राजा ने इन मूर्तियों को रेत में छुपा दिया. लंबे समय तक यह मूर्तियां रेत में ही रहीं. जिसके बाद राजा को स्वप्न में भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर हमें रेत में रखना था, तो हमें यहां लाया ही क्यों गया. इस पर राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का रूप देकर उन्हें वहां स्थापित किया.

पढ़ें - योगी सरकार का मास्टर स्ट्रोक, जानिए क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

मंदिर पुजारी की मानें तो इस मंदिर में स्थापित मूर्ति वही मूर्ति है जिसकी पूजा मीराबाई करती थी. यही कारण है कि मंदिर में रात को घुंघुरुओं की आवाजें भी कभी कभी सुनाई देती हैं. वहीं, रात को शैया के पास रखा पानी हमेशा कम होता है, वहीं शैया में भी सलवटें पड़ी हुई होती हैं जो साफ दर्शाता है इस कि मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था यूं ही नहीं है. यहां पर प्रदेश के श्रद्धालुओं के अलावा सीमांत राज्य पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्यों से भी हजारों की संख्या में लोग सारा साल मंदिर में शीश झुकाते हैं.

प्रेम और आस्था के संगम के प्रतीक इस मंदिर का नूर जन्माष्टमी को छलक उठता है. लोगों में इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था को देखते हुए प्रदेश सरकार ने यहां के कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को राज्य स्तरीय महोत्सव का दर्जा प्रदान किया है. हालांकि, कोविड के चलते प्रशासन ने जन्माष्टमी के इस पर्व को इस वर्ष पूरी सादगी और परंपरागत तरीके से सभी मानक संचालन प्रक्रियायों की अनुपालना करते हुए मनाने का निर्णय किया है.

शिमला : पंजाब के साथ सटा नूरपुर यूं तो कई मायनों में प्रसिद्ध है, लेकिन इसे सबसे अलग और इसे सबसे विशेष बनाता है इसके किला परिसर में स्थापित श्री बृजराज मंदिर. शहर के किला मैदान में स्थापित श्री बृजराज मंदिर विश्व का एकमात्र मंदिर है, जिसमें काले संगमरमर की श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ अष्टधातु से निर्मित मीराबाई की मूर्ति श्री कृष्ण के साथ विराजमान हैं. यह पूरे विश्व में एक मात्र मंदिर है जिसमें कृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि मीराबाई विराजमान हैं.

नूरपुर को प्राचीनकाल में धमड़ी के नाम से जाना जाता था, लेकिन बेगम नूरजहां के आने के बाद इस शहर का नाम नूरपुर पड़ा. इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा है कि जब नूरपुर के राजा जगत सिंह (1619 से 1623) में अपने पुरोहित के साथ चित्तौडगढ़ के राजा के निमंत्रण पर वहां गये, तो उन्हें रात्री विश्राम के लिए जो महल दिया गया. उसके साथ ही एक मंदिर था, जहां रात के समय राजा को घुंघरुओं की आवाजें सुनाई दी. जब राजा ने मंदिर में बाहर से झांक कर देखा तो एक औरत मंदिर में स्थापित कृष्ण की मूर्ति के सामने गाना गाते हुए नाच रही थी.

मंदिर में कृष्णा के साथ विराजमान हैं मीरा

राजा को उसके पुरोहित ने उपहार स्वरूप इन्हीं मूर्तियों की मांग करने का सुझाव दिया जिसपर राजा द्वारा रखी मांग पर चितौड़गढ़ के राजा ने खुशी खुशी उन मूर्तियों को उपहार में दे दिया. उसके साथ ही एक मौलसिरी का पेड़ भी राजा को उपहार में दिया जो आज भी मंदिर प्रांगण में विद्यमान है.

इन मूर्तियों को भी राजा ने किले में स्थापित किया था, लेकिन जब आक्रमणकारियों ने किले पर हमला किया तो राजा ने इन मूर्तियों को रेत में छुपा दिया. लंबे समय तक यह मूर्तियां रेत में ही रहीं. जिसके बाद राजा को स्वप्न में भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर हमें रेत में रखना था, तो हमें यहां लाया ही क्यों गया. इस पर राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का रूप देकर उन्हें वहां स्थापित किया.

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मंदिर पुजारी की मानें तो इस मंदिर में स्थापित मूर्ति वही मूर्ति है जिसकी पूजा मीराबाई करती थी. यही कारण है कि मंदिर में रात को घुंघुरुओं की आवाजें भी कभी कभी सुनाई देती हैं. वहीं, रात को शैया के पास रखा पानी हमेशा कम होता है, वहीं शैया में भी सलवटें पड़ी हुई होती हैं जो साफ दर्शाता है इस कि मंदिर में श्रद्धालुओं की आस्था यूं ही नहीं है. यहां पर प्रदेश के श्रद्धालुओं के अलावा सीमांत राज्य पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और अन्य राज्यों से भी हजारों की संख्या में लोग सारा साल मंदिर में शीश झुकाते हैं.

प्रेम और आस्था के संगम के प्रतीक इस मंदिर का नूर जन्माष्टमी को छलक उठता है. लोगों में इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था को देखते हुए प्रदेश सरकार ने यहां के कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व को राज्य स्तरीय महोत्सव का दर्जा प्रदान किया है. हालांकि, कोविड के चलते प्रशासन ने जन्माष्टमी के इस पर्व को इस वर्ष पूरी सादगी और परंपरागत तरीके से सभी मानक संचालन प्रक्रियायों की अनुपालना करते हुए मनाने का निर्णय किया है.

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